पुलिस हिरासत में हत्याएं राज़ दफनाने की साज़िश तो नहीं ?

माफिया डॉन एवं राजनीतिज्ञ अतीक अहमद एवं उसके भाई अशरफ अहमद की प्रयागराज में पुलिस हिरासत में पिछले दिनों बड़े ही रहस्य्मयी तरीके से हत्या कर दी गयी। हत्यारों ने बड़ी आसानी के साथ पुलिस हिरासत की परवाह किये बिना अतीक अहमद के सिर में गोली मारी एवं उसके भाई अशरफ की भी बिल्कुल गरीब से गोली मारकर हत्या की, उसे लेकर पुलिस की चौकसी पर सवाल उठना स्वभाविक है। सवाल उठाया जा रहा है कि अतीक व अशरफ के हत्यारों ने जब लगभग 22 सैकेंड तक इन दोनों पर गोलियां बरसाईं, तब इस दौरान सुरक्षाकर्मियों द्वारा हत्यारों पर जवाबी फायरिंग क्यों नहीं की गई? इस गोलीबारी में अतीक अहमद को आठ और अशरफ अहमद को नौ गोलियां लगीं। खबरों के अनुसार गोलीबारी अंजाम देने के 22 सेकेंड बाद हमलावरों ने अपने हथियार स्वयं ज़मीन पर फेंक दिये और आत्म-समर्पण कर दिया। उसके बाद पुलिस उन्हें बड़ी तत्परता से गाड़ी में बिठाकर घटनास्थल से चलती बनी। उत्तर प्रदेश में पुलिस हिरासत में यहां तक कि जेल और अदालतों में हत्याएं होना कोई नई बात नहीं है। इसी प्रयागराज में उच्च न्यायालय परिसर में 25 सितम्बर, 1981 को लटूरी सिंह नमक एक विधायक को गोली मार दी गयी थी। जिस समय लटूरी सिंह पर गोलियां बरसाई गयीं, उस समय कम से कम 50 सशस्त्र पुलिसकर्मी उसकी सुरक्षा के लिये उसके साथ व उच्च न्यायालय परिसर में तैनात थे। इसके बावजूद लटूरी सिंह को गोली मार दी गई थी। उस समय केवल एक हमलावर को ही मौके पर गिरफ्तार किया जा सका था जबकि शेष 13 हमलावर फरार हो गये थे। इसके अलावा भी ऐसी दर्जनों घटनाएं प्रदेश में हो चुकी हैं। परन्तु ऐसी हर घटना के बाद पुलिस की कारगुज़ारी पर संदेह भी जताए जाते रहे हैं।
अदालती आदेश पर अतीक को कड़ी सुरक्षा में रखा गया था ताकि पुलिस उमेश पाल हत्याकांड की जांच के अलावा अतीक के आपराधिक साम्राज्य के और गहरे राज़ जान सके। परन्तु उसकी हत्या से कई रहस्य तो उसके साथ ही दफ्न हो गये। वैसे भी इस हत्याकांड ने वर्तमान मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के उन दावों की भी हवा निकाल कर रख दी है जिसमें वह उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था चाक चौबंद होने की बात करते हैं। अदालती आदेश पर पुलिस हिरासत में सौंपे गये एक गैंगस्टर की सुरक्षा जो पुलिस सुनिश्तित नहीं कर सकती, वह कानून व्यवस्था चाक चौबंद होने का दावा कैसे कर सकती है। पिछले दिनों जालौन में बाइक सवार बदमाशों ने परीक्षा देकर वापस आ रही एक बी.ए. की छात्रा की दिन-दिहाड़े गोली मारकर हत्या कर दी थी। क्या यह है योगी राज में कानून व्यवस्था का आलम और बेटियों को संरक्षण देने के दावों की सच्चाई?
बहरहाल इसी उत्तर प्रदेश में कानपुर के निकट बिकरू गांव में 2 जुलाई, 2020 की रात एक दिल दहलाने वाला हादसा हुआ था। उत्तर प्रदेश पुलिस उस दिन गैंगस्टर विकास दुबे को पकड़ने के लिए छापेमारी करने बिकरू गांव गई थी। तभी विकास दूबे व उसके साथियों ने पूरे पुलिस बल पर गोलियों की बौछार कर दी। इस गोली काण्ड में एक डी.एस. पी. व एक थानेदार सहित 8 पुलिसकर्मियों की हत्या कर दी गयी थी। इस घटना के बाद विकास दुबे के कई साथी पुलिस मुठभेड़ में मारे गये थे। उसका घर बुल्डोज़र से गिरा दिया गया था। परन्तु इस पूरे प्रकरण में सबसे चर्चित मोड़ तब आया था जबकि उत्तर प्रदेश पुलिस विकास दूबे को उज्जैन के महाकाल मंदिर से गिरफ्तार कर सड़क मार्ग से कानपुर ला रही थी। और कानपुर के करीब पहुंचकर पुलिस ने उसे मुठभेड़ बताकर मार गिराया। पुलिस की ओर से बताया गया कि जिस गाड़ी में विकास दुबे सवार था, वह पलट गयी और गाड़ी पलटने के बाद विकास दूबे ने पुलिस हिरासत से भागने के कोशिश की। जिसके बाद पुलिस ने उसे मुठभेड़ में मार गिराया।                                       
विकास दूबे की पुलिस हिरासत में हुई कथित मुठभड़ के बाद भी यह सवाल उठने लगे थे कि वह उज्जैन किसके निमंत्रण पर और क्या उम्मीदें लेकर गया था? उसी समय सवाल यह भी उठा था कि जो पुलिस राज्य सरकार का विमान लेकर विकास दुबे को हिरासत में लेने उज्जैन गयी थी वह फोर्स उसे विमान से वापस लाने के बजाय सड़क मार्ग से लेकर क्यों आई थी? इस तरह के और भी कई राज़ विशेषकर उसको राजनीतिक संरक्षण दिया जाना आदि उसकी की कथित मुठभेड़  के साथ ही हमेशा के लिये राज़ ही बने रह गए। उत्तर प्रदेश में किसी अपराधी की गाड़ी पलटना गोया एक मुहावरा सा बन गया है। विकास दूबे की कथित मुठभेड़ हो या अतीक व उसके की पुलिस हिरासत में हुई हत्या, इतने बड़े अपराधियों का पुलिस की मौजूदगी में इतनी आसानी से निपट जाना या निपटा दिया जाना यह सवाल ज़रूर खड़े करता है कि पुलिस हिरासत में होने वाली इस तरह की हत्याएं वास्तव में आपराधिक घटनाएं ही हैं या फिर किन्हीं बड़े रहस्य को दफनाने की साज़िश और इन रहस्य्मयी हत्याओं या तथाकथित मुठभेड़ों के पीछे के रहस्यों से क्या कभी पर्दा उठ भी सकेगा?