शक्तिहीन पड़ोसी सरकार

एक तरफ गोवा में शंघाई सहयोग संगठन के सदस्य देशों के विदेश मंत्रियों की आपस में सहयोग बढ़ाने तथा आतंकवाद को नकेल डालने जैसे मुद्दों पर बैठक हो रही है जिसमें पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टो भी शामिल हुये हैं, दूसरी तरफ जम्मू-कश्मीर के राजौरी क्षेत्र में पाकि स्थित आतंकवादी संगठन जैश-ए-मोहम्मद से संबंधित आतंकवादियों ने 5 भारतीय सैनिकों पर घात लगा हमला कर उन्हें शहीद कर दिया है। विगत मास पुंछ में भी इसी तरह आतंकवादी हमले में 5 सैनिकों को शहीद कर दिया गया था। बिलावल भुट्टो के भारत आने से पूर्व पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शाहबाज़ शऱीफ ने यह बयान भी दिया था कि इस क्षेत्र में शांति लाने हेतु पाकिस्तान अपनी भूमिका निभाने के लिए प्रतिबद्ध है।
इससे यही अभिप्राय लिया जा सकता है कि पाकिस्तान की सरकार के नियन्त्रण में वहां के आतंकवादी संगठन नहीं हैं, जिससे स्पष्ट ज़ाहिर होता है कि अभी भी इस देश की कमांड सरकार के हाथ में नहीं, अपितु सेना के हाथ में है। जिस प्रकार के हालात वहां बने हुये हैं, जिस तरह से जन-साधारण रोटी से मोहताज हो रहे हैं, जिस तरह से यह देश बेहद आर्थिक कठिनाइयों में से गुज़र रहा है, उसे देखते हुए यह ज़रूर प्रतीत होता है कि इस देश को अपनी विदेश नीतियां बदलने के लिए विवश होना पड़ेगा। ऐसी नीतियों के कारण ही न सिर्फ यह विश्व भर के आतंकवादी संगठनों का अड्डा बन चुका है, अपितु यह अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग भी पड़ गया है। यह बात जग-ज़ाहिर है कि जहां आज भारत का अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर प्रत्येक पक्ष से प्रभाव बढ़ा है वहीं कुछेक देशों को छोड़ कर सभी पाकिस्तान कन्नी कतराने में लगे हैं। ऐसे में इस देश का भविष्य और भी धूमिल होता प्रतीत हो रहा है। इस समय भारत को दो तरफ से बड़ी चुनौतियां मिल रही हैं। चीन के साथ भारत के संबंधों में सीमांत मामले को लेकर तनाव बना हुआ है। गोवा में शंघाई सहयोग संगठन के हो रहे सम्मेलन के दौरान भारत तथा चीन के विदेश मंत्रियों ने इस संबंध में अलग तौर पर लम्बी बैठक की थी क्योंकि मई, 2020 में पूर्वी लद्दाख में दोनों देशों के सैनिकों में झड़पें हुई थीं। उसके बाद प्रत्येक स्तर पर सैनिक कमांडरों की आपस में समय-समय पर वार्ता होती रही, जिसमें दोनों देशों ने पेंगांग झील के उत्तर तथा दक्षिण तट तथा गोगरा क्षेत्र में अपने-अपने सैनिकों को पीछे हटाने की सहमति भी प्रकट की थी परन्तु इसके बावजूद अभी इस क्षेत्र में नियन्त्रण रेखा संबंधी मामले सन्तोषजनक ढंग से सुलझ नहीं सके।
शंघाई सहयोग संगठन की स्थापना रूस, चीन, किर्गिस्तान, कज़ाकिस्तान, तज़ाकिस्तान तथा उज़्बेकिस्तान के राष्ट्रपतियों ने वर्ष 2001 में की थी। वर्ष 2017 में भारत तथा पाकिस्तान भी इसके स्थायी सदस्य बने थे। यदि चीन और पाकिस्तान दोनों देशों के साथ भारत के मसले उलझे रहते हैं तो ऐसे संगठन का अर्थ पूर्ण हो पाना कठिन होगा। पाकिस्तान के साथ भारत का टकराव विभाजन के समय से ही शुरू हो गया था जब उसकी सेना ने मुजाहिद्दीनों के साथ मिल कर कश्मीर के बड़े भाग पर कब्ज़ा कर लिया था। इसके चलते दूसरा युद्ध 1965 में हुआ था, जिसके बाद 1971 में पाकिस्तान दो भागों में बंट गया था, क्योंकि पूर्वी पाकिस्तान में ब़गावत हो गई थी। इस संघर्ष में भारतीय सेना ने मुजीब-उर-रहमान तथा उनके समर्थकों का साथ दिया था। इसके उपरांत स्वतंत्र देश के रूप में  बंगलादेश अस्तित्व में  आया था, परन्तु इसके बाद भी भारत ने अपने पड़ोसी देश पाकिस्तान के साथ संबंध सुधारने के लिए लगातार यत्न जारी रखे हैं। इसी क्रम में प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने लाहौर तक बस में यात्रा भी की थी, जहां उनका उस समय के पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ ने पूरे उत्साह के साथ स्वागत किया था परन्तु नवाज़ शऱीफ को इस बात का अहसास नहीं था कि उसी समय जनरल परवेज़ मुशर्रफ के नेतृत्व में पाकिस्तानी सेना कारगिल पर कब्ज़ा करने की योजना बना रही थी।
इसी तरह वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री बनते ही श्री नरेन्द्र मोदी ने न सिर्फ वहां के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शऱीफ को अपने शपथ ग्रहण समारोह के लिए निमंत्रण ही दिया था, अपितु उन्होंने स्वयं भी एकाएक पाकिस्तान का दौरा करके विश्व भर को आश्चर्यचकित कर दिया था परन्तु इसके बावजूद  पाकिस्तानी सेना अपने इरादों से बाज़ नहीं आई। विगत 34 वर्ष से वह अपनी धरती पर आतंकवादियों को प्रशिक्षण दे कर भारत में रक्तिम होली खेल रही है। हम पाकिस्तान की तत्कालीन सरकार को इसके लिए प्रत्यक्ष रूप से दोषी तो नहीं मानते परन्तु उस समय आतंकवादी संगठनों तथा अपनी सेना के इरादों पर नियन्त्रण न कर पाने के कारण उस पर ऐसे आरोप लगने स्वभाविक हैं। ऐसी स्थिति में जहां एक बार फिर अन्तर्राष्ट्रीय मंच पर पाकिस्तान को बड़ी नमोशी सहन करनी पड़ी है, वहीं इस देश की छवि और भी धूमिल होते दिखाई दे रही है, जिसे वहां के करोड़ों लोगों के लिए एक बुरा सन्देश माना जा सकता है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द