उत्साहहीन चुनाव परिदृश्य

दक्षिण-पश्चिमी प्रदेश कर्नाटक के विधानसभा चुनावों में जहां 72 प्रतिशत से अधिक मतदान हुआ, वहीं जालन्धर की एकमात्र लोकसभा सीट के लिए हुये उप-चुनाव में मतदान सिर्फ 54 प्रतिशत के लगभग ही रहा, जबकि वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों में इस सीट पर मतदान 63 प्रतिशत के लगभग था। यह बात एक गम्भीर सवाल खड़ा करती है कि इस बार लोगों में उत्साह न होने के कारण यह चुनाव क्यों फीका रहा, जबकि पंजाब की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियों ने पूरी दिलचस्पी से इस चुनाव में भाग लिया। यहीं बस नहीं, बड़ी पार्टियों के ज्यादातर राष्ट्रीय नेता भी लम्बी अवधि तक शहर में डेरा जमाये बैठे रहे। राजनीतिक पार्टियों के लिए यह सीट कितनी महत्त्वपूर्ण है, इसका अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि चुनावों से पूर्व तथा चुनाव होने के बाद भी इस सीट के परिणामों संबंधी राजनीतिक अनुमान लगाये जा रहे हैं।
मैदान में उतरी ज्यादातर पार्टियां स्वयं को अपने आकलनों के अनुसार आगे बता रही हैं। इस बार उत्साह शायद इसलिए भी कम दिखाई दिया हो क्योंकि आगामी लोकसभा चुनावों में एक वर्ष से भी कम का समय रह गया है। उस समय भी इस क्षेत्र को पुन: ऐसी प्रक्रिया में से गुज़रना पड़ेगा। कुछ चीज़ें स्पष्ट रूप में सामने दिखाई दे रही हैं। गत वर्ष इस ज़िले के 9 विधानसभा क्षेत्रों में विधानसभा के लिए हुये चुनावों के दौरान, नई उभरी आम आदमी पार्टी में जितना लोगों ने उत्साह दिखाया था, वह इस चुनाव में दिखाई नहीं दिया। विधानसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी को यहां के 9 क्षेत्रों में से 4 सीटें प्राप्त हुई थीं परन्तु अन्य सीटों पर भी मतदाताओं ने इस पार्टी को भरपूर समर्थन दिया था। इस बार यदि लोगों में उत्साह की बड़ी कमी नज़र आई है तो इसके लिए प्रदेश सरकार को अपने भीतर झांकने की ज़रूरत होगी। इस बार चुनावी लाभ के लिए सरकार ने मुफ़्त घरेलू बिजली देने का प्रचार ज़रूर किया परन्तु ऐसा करते हुये उसे जितना आर्थिक नुकसान सहन करना पड़ रहा है, उसकी भरपाई कैसे होगी, इस संबंध में उसके पास ऋण लेने के सिवा और कोई ठोस योजना नहीं है। पहले भी उसकी ओर से लोगों को कुछ सुविधाएं मुफ़्त देने के किए गये वायदों तथा उन पर किये गये क्रियान्वयन से प्रदेश का हर पक्ष से नुकसान होता दिखाई दे रहा है। पैदा हो रही आर्थिक मंदहाली में विकास योजनाएं कैसे पूरी हो सकेंगी, इसका जवाब भी मौजूदा समय में सरकार के पास दिखाई नहीं देता। प्रत्येक क्षेत्र में प्राथमिक सुविधाओं की कमी बुरी तरह खटकती है। इन्हें कैसे बहाल किया जाएगा, इस संबंध में अब तक सरकार की कोई स्पष्ट नीति सामने नहीं आई।
यदि मुफ़्त बिजली देने से सरकार को इस चुनाव में कुछ लाभ मिला भी हो, तो भी ऐसी घोषणाओं से प्रदेश को प्रत्येक पक्ष से पड़ रहे घाटे की भरपाई किया जाना बेहद कठिन है। अभी तो पिछले विधानसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी के नेताओं द्वारा महिलाओं को 1000 रुपये प्रति मास देने के वायदे को पूरा किया जाना शेष है। इसका इंतजार किया जा रहा है परन्तु ऐसे खर्च करके ़खज़ाने की भरपाई कौन करेगा? प्रदेश के चुनावों से पूर्व आम आदमी पार्टी के नेताओं ने प्राकृतिक स्रोतों तथा अर्थ-व्यवस्था के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में जिस तरह अधिक राजस्व हासिल करने के बयान दिए थे, उस ओर भी अभी तक इसने कोई कदम नहीं बढ़ाया परन्तु पहले इन क्षेत्रों में जो वित्तीय आय होती थी, अब तो उस सीमा तक पहुंचना भी प्रशासन के लिए कठिन प्रतीत हो रहा है। दूसरी तरफ प्राप्त सूचनाओं के अनुसार जिस तरह प्रदेश सरकार द्वारा ़खज़ाने की शेष बची राशि भी फिज़ूलखर्ची पर लुटाई जा रही है, उससे सरकार की ‘पुख़्ता’ योजनाबंदी की झलक मिल जाती है। सरकार को लोगों ने भारी बहुमत से जीत दिलाई थी। अभी इस शासन का लगभग 4 वर्ष का समय शेष रहता है। सामने पैदा हुईं कठिन परिस्थितियों से गुज़रते हुए यह समय कैसे व्यतीत होगा, तथा सामने खड़ी बड़ी चुनौतियों पर सरकार कैसे नियन्त्रित करेगी, इस संबंध में उसे बेहद गम्भीर होकर सोचने की ज़रूरत होगी।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द