जलवायु परिवर्तन के अजब गजब नज़ारे

जलवायु परिवर्तन ने इस साल देशवासियों को चौंका दिया है। जलवायु परिवर्तन के कारण विगत कुछ वर्षों में मौसम की चरम प्रतिकूल परिस्थितियों गर्मी, सूखा, बाढ़, ओलावृष्टि आदि घटानाओं में काफी बढ़ोतरी हुई है। इस वर्ष फरवरी मार्च में जलवायु के अजब-गजब नज़ारे देखने को मिले। मार्च- अप्रैल में कहीं ओले बारिश तो कहीं आंधी तूफान से लोगों को दो-दो हाथ करने पड़े। मई माह का पहला सप्ताह भी इंद्रधनुषी रहा। दूसरे सप्ताह में लोगों ने गर्मी का प्रकोप देखना शुरू किया। इस दौरान किसानों की फसल नष्ट हुई। वैज्ञानिक मानते हैं कि मौसम में जैसी तब्दीली इस बार देखने को मिली है, ऐसा पूर्व में बहुत कम देखने को मिला है। जलवायु परिवर्तन को सामान्य घटना के रूप में लेना कोई समझदारी नहीं है।
 जलवायु परिवर्तन वास्तव में पृथ्वी पर जलवायु की परिस्थितियों में बदलाव को कहा जाता है। भूमि, वातावरण, उसके ताप, जल प्रणाली के क्रिया-कलापों में ऐसे परिवर्तन हों जो जलवायु के कारण मानव के जीवन, उसके रहन-सहन को प्रभावित करने लगें तो उसे जलवायु परिवर्तन कहते हैं। जलवायु परिवर्तन पिछले कुछ सालों से बहुत ही गंभीर समस्या के रूप में उत्पन्न होता जा रहा है। जलवायु परिवर्तन के कई कारण होते हैं, जो बहुत से तरीकों से पृथ्वी में चल रहे जीवन को प्रभावित करते है। बदल रहे मौसम के कारण वर्षा के स्वरूप में भी बहुत बड़ा परिवर्तन हुआ है। 
वर्तमान में जलवायु परिवर्तन को लेकर देश और दुनिया में बहुत ज्यादा चर्चा हो रही है क्योंकि बदलती जलवायु न केवल इंसानों पर असर डाल रही है, इससे अन्य पेड़-पौधों और जीव-जंतुओं पर भी असर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन यानी ग्लोबल वार्मिंग सरल शब्दों में कहें तो हमारी धरती के तापमान में लगातार बढ़ोतरी होना है। ग्लोबल वार्मिंग जीवाश्म ईंधन उत्सर्जन में वृद्धि के कारण पृथ्वी के वायुमंडल के तापमान में वृद्धि को दर्शाता है। कोयले और तेल जैसे जीवाश्म ईंधन को जलाने से हमारे वातावरण में कार्बनडाइ ऑक्साइड अधिक होता है। इन ग्रीनहाउस गैसों में से अधिकांश पृथ्वी के वायुमंडल में अधिक गर्मी का कारण बनती हैं। इससे पृथ्वी गर्म होती है। यानि जब सर्दी पड़नी चाहिए थी तब गर्मी हो रही है। तापमान में बदलाव आ रहा है। दुनियाभर में  सैकड़ों वर्षों से जो औसत तापमान बना हुआ था, वह अब बदल रहा है। भारत की बात करें तो इस वर्ष मई-जून में पड़ने वाली तेज़ गर्मी मार्च से ही शुरू हो गई। बताया जाता है एक बार जब ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा बढ़ने लगती है तो वो ज्यादा मात्रा में सूर्य की ऊर्जा को सोखने लगती है उसके चलते वैश्विक तापमान में वृद्धि होने लगती है इसी को ग्लोबल वार्मिंग कहते हैं। 
 जलवायु आंदोलन के समर्थकों का कहना है विश्व के राष्ट्र इस खतरे को कमतर आंक रहे है और निकट भविष्य में यही उन पर भारी पड़ने वाला है। जब पूरी मानवता संकट में पड़ जाएगी तब जिम्मेदार चेतेंगे और तब तक चिड़िया खेत चुग जाएगी। यह भी कहा जा रहा है पहले कोरोना महामारी और अब रूस -यूक्रेन के युद्ध से अर्थव्यवस्था के साथ जलवायु परिवर्तन पर गहरी चोट हुई है। तीसरे विश्व युद्ध का खतरा बढ़ता जा रहा है जो जलवायु के लिए किसी महा तबाही से कम नहीं है।
भारत अपनी जलवायु कार्रवाई को पूरा करने में सक्षम रहा है। नेट जीरो का अर्थ है कि सभी देशों को जलवायु परिवर्तन रोकने के लिए कार्बन के उत्सर्जन में तटस्थता लानी है। उपयोग करो और फैंकने की मानसिकता ग्रह के लिए नकारात्मक है। उपभोग उन्मुख दृष्टिकोण से बाहर निकलना आवश्यक है और पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को बढ़ावा देना समय की ज़रूरत है। वैश्विक जलवायु कार्रवाई अभी तक सफल होती नहीं दिख रही है। ऐसा लगता है कि दुनिया अपने रास्ते पर रुक गई है लेकिन भारत हर एक भारतीय के प्रयासों के कारण अपने लक्ष्यों को समय से पहले हासिल कर रहा है।


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