कांग्रेस की सम्भावनाएं

कर्नाटक में नेतृत्व के पेचीदा तथा गम्भीर हुये मामले को हल करके पार्टी ने परिपक्वता का प्रमाण दिया है। वहां के लोगों ने इस बार कांग्रेस को भारी बहुमत से जीत दिलाई है। इससे पूर्व भाजपा की सरकार थी, जिस पर कई तरह के आरोप लगते रहे थे। इनमें बड़ा आरोप भ्रष्टाचार का था, जिसने भाजपा की राष्ट्रीय छवि को भी धूमिल किया था। इस दौरान ही साम्प्रदायिक मुहाज़ पर सरकार की नीतियों की कड़ी आलोचना भी होती रही थी। सरकार पर ये आरोप भी लगते रहे थे कि उसके द्वारा एक बड़े समुदाय को अपने पक्ष में रखने के लिए ऐसी नीतियों का सहारा लिया जाता था। प्रदेश का माहौल भी इन मसलों से काफी सीमा तक तनावपूर्ण बना रहा था। कांग्रेस ने चाहे इन चुनावों में 5 ऐसे वायदे भी किये थे, जिनमें ज्यादातर को मुफ़्त की सुविधाएं देने वाले कहा जा सकता है। पार्टी सरकार बनाने के बाद इन्हें किस सीमा तक पूरा करने में सफल होती है, यह देखने वाली बात होगी।
यदि कर्नाटक के राजनीतिक तथा सामाजिक ढांचे की बात करें तो इस प्रदेश में जातियों, बिरादरियों का बोलबाला है। ज्यादातर वोटों का आधार बिरादरियों को ही बनाया जाता रहा है। इस बार भी चुनावों के दौरान ऐसा ही खेल खेला गया परन्तु कांग्रेस ने धर्म तथा बिरादरियों के नाम पर दरार डालने की नीति की लगातार आलोचना की तथा इसके लिए भाजपा को निशाना भी बनाये रखा। इस जीत में राहुल गांधी की ‘भारत जोड़ो यात्रा’ का भी बड़ा योगदान कहा जा सकता है। राहुल ने कई सप्ताह तक इस प्रदेश में अपनी यह यात्रा जारी रखी थी, जिसका उन्हें भारी समर्थन भी मिलता रहा था। इसके अलावा उन्होंने बड़ी सीमा तक चुनावों के दौरान स्थानीय मुद्दों को ही प्राथमिकता दी थी। प्रदेश में सिद्धारमैया तथा शिवकुमार दो ऐसे नेता बन कर उभरे थे जो लोगों में लोकप्रिय भी हुये तथा उन्होंने लोगों का विश्वास भी जीता। चाहे इस बार प्रदेश में कांग्रेस की जीत के अनुमान तो ज़रूर लगाये जा रहे थे परन्तु ये आकलन भाजपा को व्यापक स्तर पर पीछे छोड़ जाएंगे, इसका अनुमान नहीं लगाया जाता था। इसके साथ ही एच.डी. देवगौडा के नेतृत्व वाले जनता दल (सैकुलर) जिसका कभी प्रदेश में बोलबाला रहा था, के सिर्फ 19 सीटों पर ही सिकुड़ जाने ने भी कांग्रेस की सीटों में इतनी बड़ी वृद्धि  की, परन्तु जीत के बाद चार दिन तक दिल्ली में जिस तरह पार्टी के भीतर आपसी कशमकश बनी रही तथा जिस तरह मुख्यमंत्री की कुर्सी के दो दावेदार अपना हक जताने लगे, उससे यह आशंका पैदा होती थी कि इतनी बड़ी जीत नेतृत्व की आपसी कशमकश  से कहीं नमोशी में न बदल जाये, परन्तु अब मुख्यमंत्री के पद संबंधी पार्टी के बीच एक फैसले पर सहमति के बाद पार्टी को और भी उत्साह मिला है तथा इसमें मज़बूती आई प्रतीत होती है, जिसका प्रभाव किसी न किसी रूप में कुछ मास तक एक और बड़े प्रदेश राजस्थान, जहां कांग्रेस की सरकार है, में भी पड़ने की सम्भावनाएं बन गई हैं। 
नई सरकार से यह आशा की जाने लगी है कि वह लोगों को बेहतर प्रशासन देने में समर्थ होगी। यदि ऐसा सम्भव हो सका तो इसका प्रभाव जहां आगामी वर्ष होने जा रहे लोकसभा चुनावों पर भी पड़ेगा, वहीं इससे भाजपा के विरुद्ध एकजुट हो रही बड़ी प्रांतीय तथा राष्ट्रीय पार्टियों के लिए एक साझा मंच पर एकत्रित होने की सम्भावना भी मज़बूत होती दिखाई दे रही है, जिसमें कांग्रेस बड़ी तथा विशेष भूमिका निभाने के समर्थ हो सकती है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द