मानव जीवन में जैव विविधता की अहम भूमिका

यह खूबसूरत दुनिया अकेले इन्सानों से नहीं बल्कि अनगिनत पौधों, जानवरों, ऐसे जीव-जन्तुयओं से बनी है, जो प्रकृति के मूलभूत तत्वों से मिलकर बने हैं। इसलिए इस दुनिया के ऐसे ही खूबसूरत बने रहने के लिए हर किसी का अस्तित्व में रहना यानी बने रहना ज़रूरी है। लेकिन ऐसा हो नहीं रहा। इन्सान की अनंत भूख और उपभोग की अंतहीन ललक के कारण दुनिया में बहुत-से जीव-जन्तु और बहुत-सी वनस्पतियां खत्म होने के कगार पर हैं। एक अंतर्राष्ट्रीय रिपोर्ट के मुताबिक धरती पर जानवरों की 25 फीसदी से ज्यादा प्रजातियां विलुप्त होने के कगार पर हैं। दुनिया के 3 अरब से ज्यादा लोग अपने लिए प्रोटीन मांस से हासिल करते हैं। संयुक्त राष्ट्र की एक चिंतित करने वाली रिपोर्ट है कि अगर इंसान पशुओं का मांस ऐसे ही खाता रहा तो साल 2050 तक दुनिया के 90 फीसदी पशु खत्म हो जाएंगे। दुनिया में 80 प्रतिशत से ज्यादा लोगों का भोजन वनस्पतियों पर निर्भर है और इस कारण हज़ारों वनस्पतियां अपने अस्तित्व पर संकट से जूझ रही हैं। हालांकि कुछ वनस्पतियों के मामले में एक राहत की बात यह है कि इन्सान इन्हें तेज़ी से पुन: पैदा कर लेता है, लेकिन जिन वनस्पतियों को पैदा नहीं किया जाता, उनका हाल वैसा ही हो रहा है, जैसे पशुओं का। इन्सान ने लगभग गत 100 वर्षों में दुनिया की करीब 65 फीसदी जड़ी-बूटियों को खत्म कर दिया है। हां, जड़ी बूटियां नये सिरे से पैदा भी की जा रही हैं, लेकिन जितने बड़े पैमाने पर उनका खात्मा हो चुका है, उसी अनुपात में पैदा नहीं हो सकीं। 
जैव विविधता को जिस क्रूरता से इन्सान ने पिछली एक सदी में तहस नहस किया है, उसी का नतीजा है कि आज इन्सानों को जागरूक करने के लिए संयुक्त राष्ट्र प्रत्येक वर्ष 22 मई को अंतर्राष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाता है, जिसे दुनिया के 110 से ज्यादा देश मान्यता देते हैं। जैव विविधता दिवस मनाने का विचार पिछली सदी के 90 के दशक में तब आया था, जब 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो शहर में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित हुआ था। तब इसे हर साल 29 दिसम्बर को मनाया जाना तय हुआ था और साल 2000 तक यह 29 दिसम्बर को ही मनाया जाता रहा। साल 2001 में यह दिवस 22 मई को मनाया जाना शुरु हुआ और इसका मुख्य उद्देश्य लोगों को जैव विविधता के बारे में ज्यादा से ज्यादा जागरूक करना है। इसलिए हर साल इस दिवस पर जैव विविधता के संरक्षण के लिए कोई विशेष नारा यानी थीम निर्धारित की जाती है। जैसे इस साल की थीम है- ‘एग्रीमेंट टू एक्शन: बिल्ड बैक बायोडायवर्सिटी’। इस दिवस से संबंधित यह विषय सीओपी-15 के परिणामों पर आधारित है।  इस थीम या विषय का लक्ष्य यही है कि दुनिया के पास अब जबकि ‘कुनमिंग मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क’ मौजूद है, तो जरूरी है कि जल्द से जल्द और ज्यादा से ज्यादा इसके कार्यान्वयन पर ध्यान दिया जाए। सीधे और साफ  शब्दों में कहा जाए तो हर प्रजाति को, चाहे वह जानवरों की हो या वनस्पतियों की, दुनिया को भव्य और जीवंत बनाये रखने के लिए इन सब के अस्तित्व का संरक्षण ज़रूरी है। मतलब यह कि दुनिया को सिर्फ  इन्सान ही नहीं चाहिए, अपितु सभी तरह के जानवर एवं जीव-जन्तु चाहिएं, खतरनाक जानवर एवं जीव-जन्तु भी दुनिया को खूबसूरत बनाये रखने के लिए उतने ही ज़रूरी हैं, जितने इन्सान। पारिस्थितिकी के दिन-प्रतिदिन क्षरित होने से चिंतित विशेषज्ञ आगाह कर रहे हैं कि हमें झीलें भी चाहिएं, जंगल भी चाहिएं, रेगिस्तान भी चाहिए, खेती की उन्नत परम्परा भी चाहिए, गैर-जरूरी पेड़ पौधे भी चाहिए। सिर्फ  रसीले और स्वादिष्ट फलों से लदे पेड़ों से दुनिया खूबसूरत नहीं रहती। दुनिया को खूबसूरत और धड़कती हुई बनाये रखने के लिए ऐसे पेड़ पौधे भी चाहिए, जिनमें कोई खास आकर्षण  न हो, जिन्हें फल न लगते हों। ये इंसानों के लिए भले खास न हाें, आकर्षक न हों, लेकिन इनमें कुदरत की जान बसती है। 
पिछले साल सम्पन्न कुनमिंग मॉन्ट्रियल ग्लोबल बायोडायवर्सिटी फ्रेमवर्क को दुनिया के 110 से ज्यादा देश स्वीकृत करते हैं, जो इस फ्रेमवर्क को लागू करेंगे, जैसा कि साल 2022 में मॉन्ट्रियल में तय हुआ था। इस फ्रेमवर्क के मुताबिक साल 2030 तक दुनिया को ग्लोबल बायोडायवर्सिटी संरक्षित करने के लिए चार तरह के मुख्य लक्ष्य और 23 तरह के उपलक्ष्यों को कड़ाई से हासिल करना होगा। लेकिन यह तभी संभव है, जब हर देश इसे प्राथमिकता दे। यह माने कि जमीन और समुद्र के भीतर जो पारिस्थितिकी तंत्र छिन्न-भिन्न हुआ है, उसमें कम से कम 30 फीसदी को वर्ष 2030 तक सुधार दिया जायेगा। यह तभी संभव है जब हम कीटनाशकों के अधिक इस्तेमाल से बचें। अपनी अंतहीन उपभोग की भूख को कम से कम 50 फीसदी कम करना होगा और सिर्फ  उपदेश देने के लिए ही अच्छी अच्छी बातें नहीं करनी होंगी बल्कि अपने व्यवहारिक जीवन में भी उन्हें लागू करना होगा।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर