पशुओं पर भी टूटता है गर्मी का कहर

मई-जून की गर्मी सिर्फ इंसान के स्वास्थ्य का ही भुर्ता नहीं बनाती बल्कि पशुओं को भी झकझोर कर रख देती है। ज्यादा गर्मी होने पर पशुओं के शरीर में पानी के साथ-साथ कई तरह के खनिज पदार्थों की कमी होने लगती है। विशेषकर दुधारू पशुओं पर गर्मी का ज्यादा और सीधा प्रभाव पड़ता है। इस प्रभाव के चलते दुधारू पशु दूध कम देने लगते हैं। यही नहीं ज्यादा गर्मी से पशुओं में बीमारी से लड़ने की क्षमता कम हो जाती है और वे शारीरिक तौर पर कमजोर हो जाते हैं। जिस तरह इंसान को हीट स्ट्रोक लगता है, इसी तरीके से पशुओं को भी लू लगती है और पशु भी कई बार इंसानों की तरह फेंट हो जाते हैं। सवाल है गर्मियों में पशुओं की देखभाल कैसे करें?
उन्हें धूप से बचाएं
पशुओं को ध्यान से गर्मियों के दिनों में छायादार स्थानों पर बांधें। धूप में चरने के लिए न छोड़ें। अगर चराना ही है तो सुबह 6-7 बजे से लेकर 9 बजे तक और शाम को 5 बजे के बाद जब धूप कम हो जाती है, तब चराएं। क्योंकि पशुओं को भी ज्यादा गर्मी में इंसानों की तरह लू लग जाती है, उनके शरीर में भी पानी कम हो जाता है और कई बार वो भी चक्कर खाकर गिर पड़ते हैं। अगर धूप के दिनों में उन्हें काफी दूर से लेकर आए हैं तो तुरंत पानी न पिलाएं, कुछ देर तक उन्हें छाया में बांधें, शरीर का तापमान कुछ गिरने दें, तब पानी पिलाएं। जहां पशु बड़े पैमाने पर रहते हों, वहां गर्मी के दिनों में छतों पर ढेर सारा पुआल रख दें। इससे नीचे छनकर गर्मी कम जाती है। इस सबके साथ इस बात का विशेष तौर पर ध्यान रखें कि गर्मी में पशुओं को छायादार जगहों पर ही बांधें और जहां उन्हें बांधे वह जगह हवादार भी होनी चाहिए। 
इन दिनों दें उन्हें हरा चारा
ज्यादा गर्मी पड़ने से इस मौसम में पैदा की गई चरी यानी पशुओं का हरा भोजन जहरीला भी हो सकता है। इसलिए अगर चरी बोने से लेकर उसे खिलाने के बीच तक बारिश नहीं हुई है, तो पशुओं को यह चरी जब खिलाएं तब कम से कम दो या तीन बार अच्छी तरह से इसमें पानी लगाया जा चुका हो। कोशिश करें कि गर्मियों में पशुओं को हरा चारा ही दें। अगर हरा चारा उपलब्ध न हो तो ऐसे पेड़ों की पत्तियां भी खिलायी जा सकती हैं, जो सामान्यत: पशुओं का चारा नहीं होतीं, जैसे बबूल और आम व जामुन के पत्ते। गर्मियों में इंसान की तरह ही पशुओं की खुराक भी कम हो जाती है। पशु कम चारा खाने लगते हैं इसलिए उन्हें संतुलित राशन देना चाहिए ताकि उनकी दूध देने की क्षमता बनी रहे। अगर संभव हो तो जहां पशुओं को दिन में रखते हैं, खासकर अगर वो टिन शेड में है, तो कूलर और पंखा चलाकर रखने चाहिए। दोपहर के समय पशु जहां पर बंधे हों, उसका मुख्यद्वार पर जूट या टाट से ढका होना चाहिए और समय-समय पर उसमें पानी का छिड़काव भी करते रहना चाहिए और हां अगर आप सम्पन्न हैं तो पशुओं को जरा फव्वारे से नहाने की व्यवस्था कर दें।
पशु को लू तो नहीं लगी, ऐसे जानें
अगर पशु पेशाब न कर रहा हो, गोबर न कर रहा हो, तो हो सकता है उसे लू लग गई हो। जितना जल्दी हो सके किसी योग्य पशु चिकित्सक को दिखाएं। सुबह के समय यदि किसी मवेशी के शरीर का तापमान 100 से 102 डिग्री फॉरेन हाइट रहता है और दोपहर से शाम तक 104 से 106 डिग्री फॉरेन हाइट तक हो जाता है तो साफ पता चलता है कि उस मवेशी को हीट स्ट्रोक लगी हुई है। क्योंकि शरीर इतना गर्म तभी रहता है। गर्मी के मौसम में खासकर जब लू चल रही होती है, उन दिनों पशु हांफने लगते हैं, उनके मुंह से अकसर लार गिरने लगती है। अगर ऐसा है तो समझ लें कि पशु समस्या में है। जब शरीर का तापमान बढ़ता है तो ज्यादातर पशु खाना पीना छोड़ देते हैं। वे कमजोर हो जाते हैं। दूध देने वाले पशुओं की दूध देने की क्षमता कम रह जाती है और शरीर में पानी की कमी के कारण गोबर रूक जाता है। नर पशुओं के देर तक गर्मी में रहने के कारण उनके वीर्य की गुणवत्ता कमजोर हो जाती है और ज्यादा गर्मी के चलते मादा पशुओं की प्रजनन क्षमता गड़बड़ा जाती है। इसलिए इंसानों की तरह पशुओं को भी गर्मियों में भीषण गर्मी से हर हाल में बचाना चाहिए। 
उन्हें भी पिलाएं ठंडा पानी
अगर संभव हो तो पशुओं के पीने के लिए भी गर्मियों के दिनों में साफ सुथरे और ठंडे पानी की व्यवस्था करनी चाहिए। भैंसों को गर्मियों में तीन से चार बार और गायों को कम से कम दो बार नहलाना चाहिए। इससे उनके शरीर का तापमान कम होता है और सबसे ज़रूरी बात यह है कि पशुओं को गर्मी के दिनों में बहुत कंजेस्टेड जगहों में न रखें।          

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