वोट के लिए मतदाताओं को उपहार भेंट करने की होड़

मध्य प्रदेश में आजकल पांच माह बाद होने वाले चुनाव में वोट प्राप्त करने के लिए मतदाताओं को उपहार भेंट करने की होड़ सी लगी हुई है। अब यह प्रवृत्ति इसलिए और घातक हो गई है, क्योंकि राज्य सरकारें ऋण लेकर मुफ्त की रेवड़ियां बांट रही हैं और मतदाताओं की आदतें खराब कर रही हैं। जब कोई वस्तु या सुविधा व्यक्ति को मुफ्त मिलने लग जाती है तो वह आलसी हो जाता है। मध्य प्रदेश में सत्ता में बने रहने में लगी भाजपा और  सत्ता में आने के लिए कांग्रेस मतदाताओं के लिए निशुल्क उपहारों की झड़ी लगा रही हैं। जबकि प्रदेश सरकार तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक के ऋण में पहले से ही डूबी हुई है।
सत्तारुढ़ दल भाजपा के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राज्य की संस्कारधानी जबलपुर में प्रदेश की सवा करोड़ लाडली बहनों के खाते में प्रतिमाह 1000 रुपये डालने की शुरूआत कर दी है। साथ ही यह वायदा भी कर दिया कि आगे यह राशि 3000 रुपये तक बढ़ा दी जाएगी। यही नहीं बहनों को स्व-सहायता समूह से जोड़कर लखपति बना देने का भरोसा भी चतुर-सुजान शिवराज ने जता दिया। 12 हज़ार करोड़ रुपये प्रति माह लाडली बहनों को देकर शिवराज कितने मतदाताओं को लुभा पाएंगे, यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में है, लेकिन इसके ज़रिए उन्होंने यह तो तय कर दिया है कि जो राज्य फिलहाल तीन लाख करोड़ के ऋण में डूबा हुआ है, यह लोक-लुभावन योजना उसे और ज्यादा ऋण में डुबो देगी। अब बात कांग्रेस की करते हैं। इसी जबलपुर में कांग्रेस की राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी का 12 जून को आगमन हुआ। पहले उन्होंने नर्मदा नदी के गौरी घाट पर देवी की पूजा-अर्चना की, फिर वीरांगना रानी दुर्गावती की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया और फिर सभा प्रांगण में पहुंचकर पांच प्रकार की मुफ्त में रेवड़ियां बांटने की गारंटी मतदाताओं को मंच से दे दी। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद महिलाओं को 1500 रुपये प्रतिमाह, रसोई गैस सिलेंडर में 500 रुपये की छूट, 100 यूनिट बिजली माफ, पुरानी पेंशन योजना की बहाली के साथ किसानों का ऋण भी माफ करेंगे। गोया, प्रदेश के दोनों प्रमुख दल ‘मुफ्त का चंदन, घिस मेरे नंदन’ कहावत चरितार्थ करके चुनावी वैतरणी पार करने की होड़ में लगे हुए हैं। तय है कि मुफ्त की इन मुनादियों से जनता को कितना और कब तक लाभ मिलेगा, यह तो संदेह के घेरे में है, लेकिन इतना तय है कि योजनाओं पर क्रियान्वयन हुआ और पांच साल निरन्तर जारी रहीं तो उधार की यह अर्थ व्यवस्था प्रदेश को बर्बाद कर   देगी। इन वायदों में विलक्षण एकरूपता है कि दोनों दलों में से किसी ने भी बेरोज़गारों को रोज़गार और नया उद्योग लगाने की बात नहीं कही।
जरूरतमंद गरीबों को निशुल्क राशन, बिजली, पानी और दवा देने में किसी को कोई एतराज नहीं होता, लेकिन वोट पाने के लिए प्रलोभन देना मतदाता को लालची बनाने का काम तो करता ही है, व्यक्ति को आलसी एवं परावलंबी बनाने का काम भी करता है।  हालांकि अब मतदाता इतना जागरूक हो गया है कि वह खोखले वायदों और वचन-पत्रों के आधार पर मतदान नहीं करता। वह जानता है कि चुनावी वायदों का पुलिंदा जारी करना राजनीतिक दलों के लिए एक रस्म अदायगी भर है। दरअसल, केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार, ईमानदारी से रोज़गार के अवसर पैदा करने के उपाय किसी ने किए ही नहीं। इस बहाने प्राकृतिक संपदा के दोहन का सिलसिला तेज़ करने की ज़रूर कोशिशें की जाती रही हैं। जबकि हकीकत है कि अंतत: आधुनिक और औद्योगिक विकास का पूरा अजेंडा कृषि और खनिज पर टिका है, परन्तु विडम्बना है कि कृषि घाटे का सौदा हो गई है और किसान आत्महत्याएं कर रहे हैं। कृषि से जुड़े 70 करोड़ लोगों में से 10 करोड़ लोग आजीविका का यदि वैकल्पिक साधन मिल जाए तो तुरंत खेती छोड़ने को तैयार खड़े हैं। लेकिन दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि किसान की आर्थिक हालत सुधारने की बात किसी भी दल के राजनीतिक एजेंडे में  दिखाई नहीं दे रही है। उद्यमिता और कौशल विकास के नाम पर हमने जो ढांचा खड़ा किया गया है और बेवजह के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं, अच्छा हो उस धन को छोटी जोत वाले किसानों को पेंशन के रूप में दिया जाए। इसी तरह शिक्षित बेरोज़गारों के लिए नौकरी की उम्र घटाई जाए।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब चुनाव नीतियों और कार्यक्रम की बजाय प्रलोभनों का फंडा उछालकर लड़े जाने लगे हैं। राजनेताओं की दानवीर की यह भूमिका स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की जड़ों में मट्ठा घोलने का काम कर रही है। अपना उल्लू सीधा करने के लिए मतदाता को बरगलाना आदर्श चुनाव संहिता को ठेंगा दिखाने जैसा है। सही मायनों में वायदों की घूस से निर्वाचन प्रक्रिया दूषित होती है, इसलिए इस घूसखोरी को आदर्श आचार संहिता के दायरे में लाना ज़रूरी है। 
प्रियंका गांधी ने जो पांच गारंटी मध्य प्रदेश में दी हैं, कमोबेश यही कर्नाटक में दी गई थीं। सत्तारूढ़ होने के बाद प्रति कनेक्शन सौ यूनिट बिजली मुफ्त दी तो दूसरे उपभोक्ताओं पर बिजली का यह बोझ डाल दिया। इस पहल को उचित नहीं कहा जा सकता।
 देश में मध्य प्रदेश के दिवंगत मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने निर्धन परिवारों को मुफ्त में एक बत्ती कनेक्शन देने के वादे के साथ मुफ्तखोरी की शुरूआत आठवें दशक में की थी। तमिलनाडू की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता ने तो चुनावी वायदों का इतना बड़ा पिटारा खोल दिया था कि यह मामला सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गया था। इस याचिका में अन्नाद्रमुक की चुनावी घोषणा पत्र को भ्रष्ट  आचरण मानते हुए असंवैधानिक ठहराने की मांग की गयी थी, लेकिन न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी थी। उस समय न्यायालय ने दलील दी थी कि घोषणा-पत्रों में दर्ज प्रलोभनों को भ्रष्ट आचरण नहीं माना जा सकता। चुनाव का नियमन जन-प्रतिनिधित्व कानून के जरिए होता है और उसमें ऐसा कोई प्रावधान नहीं है जिसके तहत इसे गैर-कानूनी या भ्रष्ट कदाचरण ठहराया जा सके। 


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