प्रतिबंधों के बावजूद यूरोपीय देशों तक पहुंच रहा है रूसी तेल

प्रसंस्कृत पेट्रो-उत्पादों के निर्यात के लिए आयातित रूसी तेल का उपयोग करने वाला भारत एकमात्र देश नहीं है। सऊदी अरब के नेतृत्व में पश्चिम एशियाई तेल दिग्गज यूरोपीय संघ (ईयू) में खरीदारों को उत्पाद बेचने के लिए लाखों बैरल रूसी तेल खरीद रहे हैं, जो यूरोप में प्रतिबंधित है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) यूरोप को उच्च कीमतों पर तेल निर्यात बढ़ाने के लिए कम कीमत वाले रूसी तेल का आयात कर रहे हैं। इससे पहले रिपोर्टों में कहा गया था कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा उपभोक्ता और कच्चे तेल का आयातक, यूरोप और एशिया के देशों को शोधन के बाद रूसी तेल का निर्यात कर रहा था। ये रिपोर्ट केवल आंशिक रूप से सच हैं क्योंकि भारत कई वर्षों से रिफांइड तेल उत्पादों का निर्यात करता रहा है।
 भारत ने 2021 तक रूस से बहुत कम ही कच्चे तेल का आयात किया। विशाल परिवहन लागत ने रूसी कच्चे तेल को पश्चिम एशिया से भारत के नजदीकी आयात स्रोतों की तुलना में बहुत महंगा बना दिया था। पिछले साल फरवरी में रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद स्थिति बदल गयी। रूस पर पश्चिमी व्यापार और वित्तीय प्रतिबंध ने उसे अपने तेल और अन्य उत्पादों को भारी छूट पर बेचने के लिए मजबूर किया। रूस से तेल का आयात अचानक काफी सस्ता हो गया। इसने भारत को रूसी कच्चे तेल के लिए प्रेरित किया क्योंकि देश का ऊर्जा बाज़ार 87 प्रतिशत आयातित तेल पर निर्भर है। 2020-21 तक भारत की रूस से कच्चे तेल की खरीद उसके कुल तेल आयात के एक प्रतिशत से भी कम थी। भारत ने 2020-21 के पहले 10 महीनों में रूस से केवल 4,19,000 टन कच्चा तेल खरीदा, जो कुल आयात 175.9 मिलियन टन का 0.2 प्रतिशत था। भारत ने 2021 में 49 बिलियन अमरीकी डॉलर के रिफाइंड पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात किया, जिससे देश दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा रिफाइंड पेट्रोलियम निर्यातक बन गया। मुख्य निर्यात गंतव्य सिंगापुर (4.59 बिलियन डालर), यूएस (3.56 बिलियन डालर), नीदरलैंड्स (2.89 बिलियन डालर) और ऑस्ट्रेलिया (2.62 बिलियन डालर) थे।
रूस-यूक्रेन युद्ध से काफी पहले, 2020 और 2021 के दौरान रिफाइंड पेट्रोलियम के लिए भारत के सबसे तेजी से बढ़ते निर्यात बाज़ार अमरीका, ऑस्ट्रेलिया और टोगो थे। रूस-यूक्रेन युद्ध के प्रकोप के बाद से सस्ते रूसी कच्चे तेल और परिष्कृत उत्पादों की उच्च निर्यात मांग के कारण भारत के परिष्कृत पेट्रो-उत्पादों का निर्यात बढ़ रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि रूस ने चीन के शीर्ष तेल आपूर्तिकर्ता के रूप में सऊदी अरब को भी पीछे छोड़ दिया है। इसके विपरीत सऊदी अरब जो दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडार में से एक है और हर साल तेल निर्यात से अरबों डॉलर कमाता है, नाटो देशों को निर्यात बढ़ाने के लिए रातों-रात रूसी तेल का एक बड़ा आयातक बन गया है।
अमरीका की आपत्तियों के बावजूद पेट्रोलियम से समृद्ध खाड़ी देश रूसी तेल कीमतों में कटौती का फायदा उठा रहे हैं। सऊदी अरब का वार्षिक कच्चे तेल का निर्यात 140 अरब डॉलर का होगा। इसके अलावा यह रिफाइंड पेट्रोलियम, एथिलीन और प्रोपलीनपॉलिमर और एसाइक्लिक अल्कोहल का निर्यात करता रहा है। यह ज्यादातर चीन, भारत, जापान, दक्षिण कोरिया और यूएई को निर्यात करता है। रूस से अरब साम्राज्य के अचानक बड़े आयात के पीछे एकमात्र कारण मूल्य अंतर को भुनाना है।
सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात भारी मात्रा में रूसी तेल कम कीमत पर खरीद रहे हैं ताकि यूरोप को ऊंचे दामों पर निर्यात किया जा सके और अमरीका असहाय होकर देख रहा है। सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के माध्यम से यूरोपीय संघ, अमरीका के दो विश्वसनीय पश्चिम एशियाई सहयोगियों तक रूसी तेल पहुंच रहा है।
सऊदी अरब ने अप्रैल में रूस से 174,000 बैरल डीज़ल और गैस-तेल का आयात किया और पिछले महीने के दौरान और भी अधिक। सऊदी साम्राज्य यूरोप का शीर्ष आपूर्तिकर्ता बन गया है। मार्च में रूसी डीज़ल की रिकॉर्ड मात्रा पश्चिम एशिया में डाली गयी क्योंकि व्यापारियों ने संयुक्त अरब अमीरात के फुजैराहब और सऊदी अरब में ईंधन का स्टॉक करने के लिए कम कीमतों को भुनाया। पश्चिम एशिया तेजी से यूरोप और अफ्रीका के लिए औद्योगिक ईंधन का प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया है। कुल मिलाकर अमरीका के नेतृत्व वाले पश्चिमी व्यापार और वित्तीय प्रतिबंधों ने रूस को शायद ही प्रभावित किया है।

(संवाद)