मोदी काल में पहली बार अर्थ-व्यवस्था ने भरी हुंकार

मोदी काल में अर्थव्यवस्था ने पहली बार पूरी तरह से सुव्यवस्थित रूप लिया है। यदि यूं कहें कि मोदी काल की अर्थव्यवस्था का यह स्वर्णकाल चल रहा है, तो इसमे कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। सबसे पहले तो बीते वित्त वर्ष 2022-23 को लेकर बजट भाषण में अर्थव्यवस्था की विकास दर 6.75 प्रतिशत होने का जो अनुमान लगाया गया था, वह वास्तविक रूप में कम न होकर और ज्यादा यानी 7.2 प्रतिशत दर्ज हुआ है। अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर जो दूसरी अनुकूल घटना मोदी सरकार में दर्ज हुई, वह है- जीएसटी वसूली में रिकार्ड बढ़ोत्तरी। अप्रैल 2023 में जीएसटी की 1.87 लाख करोड़ रुपये की रिकार्ड वसूली के बाद मई 2023 में भी 1.65 लाख करोड़ की वसूली हुई। वसूली की यह मात्रा बीते साल के इन्हीं महीनों की तुलना में करीब दस प्रतिशत की ज्यादा बढ़ोत्तरी दर्शा रही हैं। बताते चलें जीएसटी की वसूली कोविड काल में एक लाख करोड़ के आंकड़े को भी नहीं छू पा रही थी। ये बढ़ोत्तरी इस बात को भी इंगित कर रही है कि अर्थव्यवस्था में कारोबार की मात्रा में तेज़ी से विस्तार हो रहा है। जीएसटी की इस बढ़ी वसूली ने केन्द्र और राज्य सरकारों को राजस्व तरलता प्रदान की है, जिससे वे अपने खर्चों को भलीभांति पूरा कर अपने बजट व वित्तीय घाटे को कम कर सकें।
मैक्रो इकोनामिक सूचकांकों में मुद्रास्फीति का नियंत्रित होना एक बड़ा कारक माना जाता है। इस मोर्चे पर मोदी सरकार को अभी मिली सफलता काफी राहत प्रदान करने वाली है। पिछले साल त्यौहारी सीजन में मुद्रास्फीति की दर खुदरा मूल्य और थोक मूल्य सूचकांक दोनों मामलों में 8 से 10 प्रतिशत तक चली गई थी। यह मोदी सरकार के 9 साल के कार्यकाल की सर्वाधिक मुद्रास्फीति दर थी। पर सराहना करनी होगी रिजर्व बैंक की जिसने मुद्रास्फीति को लेकर बड़े ही सतत कठोर फैसले लिये। बैंक द्वारा रेपो दर को हर तिमाही में करीब एक चौथाई प्रतिशत बढ़ाने का निर्णय लिया गया। अभी रेपो दर साढ़े 6 प्रतिशत है, जो सामान्य से करीब दो प्रतिशत ज्यादा है। इससे बैंको के लोन महंगे ज़रूर हुए पर वृहत्तर अर्थव्यवस्था के एक बड़े मानक के उद्देश्य पूरे हुए। दूसरी तरफ खुदरा मूल्य सूचकांक जिसकी सामान्य स्थिति में मानक दर पांच प्रतिशत मानी जाती है वह उससे भी घटकर 4.3 प्रतिशत पर आ चुका है। राष्ट्रीय सांखियकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के मुताबिक खुदरा मूल्य सूंचकांक की यह दर पिछले पच्चीस महीने की सबसे न्यूनतम दर है। मजे की बात यह है कि इसमें लगातार गिरावट दर्ज हो रही है; क्योंकि इससे पूर्व अप्रैल में यह दर 4.7 प्रतिशत थी। कहना होगा सरकार की तरफ से मांग और आपूर्ति के बीच का लाया गया संतुलन भी इस नियंत्रण कार्य में सहायक सिद्ध हुआ है।
 वर्ष 2022 में अर्थव्यवस्था के पूरी तरह से खुलने के उपरांत इनपुट उत्पादों खासकर रियल एस्टेट के तमाम जिंसों मसलन सीमेंट, इस्पात, कोयला की अचानक तीव्र मांग की वजह से इनकी कीमतों में काफी ज्यादा बढ़ोत्तरी हुई पर इन जिंसों के उत्पादन में हुई बढ़ोत्तरी से इस स्थिति पर अब काबू पाया चुका है। कृषि उत्पादन की दर भले तीन प्रतिशत के आसपास रहती है, पर इसमें कोविड काल और उसके उपरांत निरंतरता कायम रही है। अभी आशाजनक तस्वीर बुनियादी क्षेत्र के उत्पादों व औद्योगिक क्षेत्र को लेकर उभरी है। अप्रैल 2023 के दौरान बुनियादी क्षेत्र व निर्माण क्षेत्र के इनपुट आइटमों की विकास दर में 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज हुई है। राष्ट्रीय सांखियकी संगठन के मुताबिक वर्ष 2021 से लेकर 2022 की पहली छमाही तक औद्योगिक व मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र की विकास दर निरंतर बढते हुए अधिकतम बीस प्रतिशत तक गई 2022 की दूसरी छमाही के बाद औद्योगिक विकास नकारात्मक होने लगी। नवम्बर 2022 में औद्योगिक विकास दर 7 प्रतिशत पर पहुंची पर फिर इसमे गिरावट आयी। मार्च 2023 में औद्योगिक विकास दर महज 1.7 प्रतिशत थी परंतु अप्रैल 2023 में अब यह दर चार प्रतिशत से उपर चली गई है। मैन्यूफैक्चरिंग क्षेत्र में विकास दर 5.3 प्रतिशत दर्ज हुई है जो गत वर्ष 4.9 थी। कहना होगा कि मैन्यूफैक्चरिंग व औद्योगिक क्षेत्र किसी भी अर्थव्यवस्था को उसका मजबूत आधार प्रदान करते है। ऐसे में औद्योगिक विकास दर का ऊपर उठना एक शुभ संकेत है।
रियल इस्टेट क्षेत्र में नोटबंदी के बाद से ही जो मंदी का दौर चला और जो कोविडकाल में और भी गिरावट की ओर अग्रसर हुआ, वह क्षेत्र अब फिर से कुलांचे भरने लगा है। मुंबई को छोड़ देश के करीब हर महानगर में रियल एस्टेट के निर्माण, बिकवाली और आक्युपेंसी अनुपात सभी में बढ़ोत्तरी दर्ज हो रही है। वास्तव में रियल एस्टेट एक ऐसा सेक्टर है, जिसकी भारत की अर्थव्यवस्था में अगले पच्चीस सालों तक निरंतर अग्रणी भूमिका रहने वाली है। बीस साल पूर्व भारत की जीडीपी में रियल एस्टेट का अनुपात महज दो प्रतिशत था, जो अब बढ़कर सात प्रतिशत हो गया है और अगले तीन साल में यह दस प्रतिशत तक जाने वाला है। रोज़गार की बात करें तो अभी असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों की औद्योगिक क्षेत्र, रियल एस्टेट और महानगरीय विकासधारा में फिर से जबरदस्त मांग शुरू हो गई है और कोविड पूर्व काल की तरह ग्रामीण श्रमिकों का शहरी इलाकों में तेज़ी से पलायन शुरू हो चुका है। इस वजह से देश के परिवहन क्षेत्र को भी तीव्र गति मिली है। 
मोदी सरकार की मंत्री स्मृति ईरानी ने पिछले नौ साल में आठ लाख सरकारी नौकरी नियुक्ति पत्र देने का दावा किया है। पर यहां दो सवाल पैदा हो रहे हैं- पहला सरकार यदि अपने सभी विभागों व कार्यक्रमों की ज़रूरत की आडिट कर रोज़गार प्रदान करती है, तो इसमें न तो बेरोज़गारों पर कोई एहसान की बात है और न ही इससे सरकार पर किसी वित्तीय बोझ के कारण आर्थिक नुकसान वाली बात है, यह तो अर्थव्यवस्था की ज़रूरत है। यही बात निजी क्षेत्र द्वारा प्रदत्त रोज़गारों पर लागू होती है। दूसरी बात मुद्रा लोन स्कीम के जरिये मोदी सरकार ने जो यह दावा किया कि उसने पिछले नौ साल में बीस करोड़ लोगों को करीब पैतालीस लाख करोड़ रुपये के कारोबारी लोन दिये हैं, तो इस बाबत यह जानना ज़रूरी है कि आखिर इसमें से कितने लोन चुकाए जा रहे हैं? क्या ये लोन अर्थव्यवस्था में पहले की तरह फिर से भारी एनपीए उत्पन्न कर नया संकट तो पैदा नहीं करने वाले हैं? कुल मिलाकर देखें तो मोदी सरकार के नौ साल में शुरू के ढाई वर्ष को छोड़ नोटबंदी, बिना पूरी तैयारी के लायी गई जीएसटी, कोविड के दौरान लाई गई अचानक देशबंदी और किसानों के एमएसपी की कानूनी मांग की उपेक्षा जैसी गलतियों से अर्थव्यवस्था को हुए नुकसान के उपरांत अभी अर्थव्यवस्था पूरी तरह से पटरी पर आती दिखायी दे रही है।


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