किसानों का असंतोष दूर करने के लिए उनकी आय बढ़ाई जाए

 

कृषि पंजाब की आर्थिकता का केन्द्र है। यह 68-70 प्रतिशत लोगों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से रोज़गार उपलब्ध कराती है। 1947 के बाद पंजाब की कृषि विकास के पथ पर रही है। गत शताब्दी के 70वें दशक में सब्ज़ इन्कलाब के बाद पंजाब ने भारत को अनाज के पक्ष से आत्मनिर्भर बनाया और फिर अनाज का निर्यात करने के योग्य बना दिया। इस वर्ष (2022-2023 में) कटाई के समय बारिश होने तथा तेज़ हवाओं से जो गेहूं की फसल का नुकसान हुआ, उसके बावजूद 47.25 क्ंिवटल प्रति हैक्टेयर के हिसाब से 166 लाख टन उत्पादन  हुआ। गत वर्ष धान का उत्पादन 182.45 लाख टन हुआ था और बासमती 18.76 लाख टन मंडियों में आई थी। केन्द्रीय अनाज भण्डार में गेहूं का योगदान (2020-21) कुल भण्डार का 31 प्रतिशत तथा चावल का (2021-22) 21 प्रतिशत था। नरमे का उत्पादन भी गत वर्ष संतोषजनक था। इसी प्रकार मछली के उत्पादन में पंजाब देश के सभी राज्यों से ऊपर है और शहद का उत्पादन भी अधिक है। ये उपलब्धियां किसानों द्वारा की गई कड़ी मेहनत तथा उनके द्वारा अपनाई गईं कृषि अनुसंधान की नई तकनीकों तथा नई विकसित की गईं किस्मों के संशोधित बीज, कीमियाई खाद एवं कीटनाशकों के इस्तेमाल के परिणामस्वरूप सम्भव हुईं।
इन उपलब्धियों के बावजूद तथा धान का खरीद मूल्य 2203 रुपये निर्धारित किए जाने के बाद भी किसानों में मायूसी की लहर दौड़ रही है, क्यों? उत्पादन तो बढ़ा परन्तु किसानों की आय नहीं बढ़ी। जब तक उनके द्वारा उत्पादन में की गई वृद्धि, उनकी आय बढ़ाने का साधन न बने, उनके लिए ये उपलब्धियां व्यर्थ हैं। जब तक उनकी ओर से फसलों पर आई लागत पर प्रो. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार 50 प्रतिशत लाभ नहीं मिलता, तब तक उनमें असंतोष रहेगा। 
कई बार जो सब्ज़ इन्कलाब के उपरांत कीमियाई खाद, कीटनाशकों तथा नई किस्मों के इस्तेमाल को किसानों में आए असंतोष के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, वह सही नहीं। आय बढ़ाने के लिए जो लागत कम करने की दलीलें दी जा रही हैं, उसके संबंध में किसान नेताओं का विचार है कि यदि इन तकनीकों तथा वैज्ञानिकों द्वारा सिफारिश की जा रही कृषि सामग्री को छोड़ कर या घटा कर लागत कम की गई तो देश आज़ादी से पहले की भांति खाने के लिए अनाज भी दूसरे देशों से मंगवाने के लिए मजबूर हो जाएगा। इस समय 25-30 प्रतिशत तक कृषि उत्पादन कीड़ों-मकौड़ों तथा बीमारियों के कारण खराब हो जाता है, जिसे कीटनाशकों का उचित इस्तेमाल करके बचाया जा सकता है और उत्पादन बढ़ाया जा सकता है। कीटनाशकों के इस्तेमाल को रोकना कृषि विकास के पक्ष से उचित नहीं है। कीटनाशकों का इस्तेमाल फसलों की सुरक्षा तथा उत्पादन बढ़ाने के लिए ज़रूरी है। इनका इस्तेमाल समझदारी तथा उचित ढंग से किया जाना चाहिए, परन्तु इस संबंध में किसानों को उचित एवं समय पर प्रशिक्षण नहीं मिल रहा। 
यह भी नहीं कहा जा सकता कि अधिकतर कीटनाशक मंडी में नकली तथा गैर-स्तरीय बिक रहे हैं। विभिन्न राज्यों के कृषि विभागों उद्योग तथा डीलरों से लिए गए 54932 नमूनों में से सिर्फ 1527 (2.7 प्रतिशत) गैर-स्तरीय पाए गए। भारत का कीटनाशक उद्योग 65 हज़ार करोड़ रुपये का है, जिसमें 36 हज़ार करोड़ रुपये के कीटनाशक 138 देशों को निर्यात किए जा रहे हैं। इससे पता चलता है कि भारत में बड़े उद्योगों द्वारा बनाए जा रहे कीटनाशक गुणवत्ता के पक्ष से बढ़िया हैं। आवश्यकता है किसानों को कीटनाशकों के इस्तेमाल की पूरी जानकारी देने की। केन्द्र सरकार द्वारा 50 प्रतिशत नाइट्रोजन कम करने संबंधी कहा गया है, परन्तु विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा करने से उत्पादन कम होगा। फसलें जो ज़मीन से नाइट्रोजन लेती हैं, यदि नाइट्रोजन ज़मीन को वापस न की गई तो ज़मीन की उपजाऊ शक्ति बुरी तरह प्रभावित होगी। 
किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि उत्पादों का निर्यात बढ़ाने की आवश्यकता है। पंजाब की बासमती इसके ज्योग्राफीकल इंडीकेटर (जी.आई.) ज़ोन में होने के कारण गुणवत्ता वाली गिनी जाती है। 
वर्ष 2021-22 में भारत से लगभग 39.48 लाख टन 30 हज़ार करोड़ रुपये की बासमती खाड़ी देशों, यूरोप तथा अन्य दूसरे देशों को निर्यात की गई, जिसमें पंजाब की बासमती का लगभग 40 प्रतिशत हिस्सा है। पंजाब में इसकी काश्त बढ़ा कर तथा अन्य निर्यात किए जा रहे पदार्थों का उत्पादन करके निर्यात बढ़ाने की आवश्यकता है, ताकि किसानों की आय बढ़े। पंजाब के किसान अब भलिभांति जानते हैं कि प्रतिबंधित कीटनाशकों का इस्तेमान न किया जाए ताकि विदेशों को भेजी हुई बासमती तथा अन्य कृषि पदार्थ वहां की सरकारों तथा उपभोक्ताओं की पसंद बने रहें। भारत में लगभग 20 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती किस्मों की काश्त, उन राज्यों में की जा रही है, जिनके पास जी.आई. टैग है। इसमें 6 लाख हैक्टेयर रकबे पर बासमती पंजाब में पैदा की जाती है और पंजाब का प्रति हैक्टेयर उत्पादन दूसरे सभी राज्यों से अधिक होने के कारण इसकी काश्त बढ़ाना किसानों के लिए लाभदायक है, जिससे पानी की बचत भी होगी।