अमरीका के साथ अंतरिक्ष में साझेदारी के बढ़ते कदम

अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन और भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एक ऐसे समझौते पर पहुंचे, जिसे विशेषज्ञों ने ऐतिहासिक बताया है और जो चीन का मुकाबला करने के प्रयास में भारत को लड़ाकू विमानों के लिए अमरीकी ड्रोन और इंजन प्रदान करेगा। अगले दरवाज़े वाले पड़ोसी चीन के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बीच मोदी भारत की अंतर्राष्ट्रीय स्थिति का विस्तार करने का प्रयास कर रहे हैं, जो वर्तमान में 1.4 अरब नागरिकों के साथ पृथ्वी पर सबसे अधिक आबादी वाला देश है। द न्यूयॉर्क टाइम्स के लिए अपने लेख में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की इतिहास की प्रोफेसर माया जासनॉफ  ने घोषणा की कि अमरीका चीन के साथ नये शीत युद्ध में सक्रिय रूप से भारत का समर्थन मांग रहा है। फिर संकेत भी साफ हैं!
अमरीकी राष्ट्रपति द्वारा भारतीय प्रधानमंत्री के सम्मान में व्हाइट हाउस को लाल कालीन से सजाया गया था, दक्षिण एशियाई और हिंद महासागर क्षेत्रों में चीन के सैन्य विकास के आलोक में संबंधों को मज़बूत करने के प्रयास में। हालांकि डेमोक्रेट बाइडन पर ज़ोर देते रहे हैं कि वह अपनी चर्चाओं के दौरान मोदी के साथ मानवाधिकार के मुद्दों को संबोधित करें। मोदी की यात्रा के दौरान बाइडन ने मोदी के स्वागत के लिए व्हाइट हाउस के साउथ लॉन में लगभग 7,000 अतिथियों की उपस्थिति के साथ एक स्वागत समारोह की व्यवस्था की थी।
मोदी को कांग्रेस के संयुक्त सत्र में बोलने और व्हाइट हाउस के भव्य रात्रिभोज में भाग लेने का सम्मान मिला। उन्होंने अपनी राय व्यक्त करते हुए कहा कि अंतर्राष्ट्रीय ध्यान भारत और अमरीका दोनों पर केंद्रित है, क्योंकि वे दो सबसे बड़े लोकतंत्र हैं। उन्होंने दृढ़तापूर्वक सुझाव दिया कि उनकी रणनीतिक साझेदारी बहुत महत्वपूर्ण है और उनके बीच सहयोग एक सफल प्रयास होगा। बाइडन का कहना है कि वह मौजूदा सदी में अमेरिका-भारत संबंधों को एक महत्वपूर्ण कारक मानते हैं। इस सदी में भारत और अमरीका को एक साथ आना चाहिए और दुनिया के सामने आने वाली कठिनाइयों और संभावनाओं से निपटने में मदद करनी चाहिए।
यूनाइटेड स्टेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ  पीस ने एक रिपोर्ट में कहा है, ‘भारत चीनी आक्रामकता का मुकाबला करने के लिए अमरीका से अत्याधुनिक रक्षा प्रणाली हासिल करने का लाभ उठाने में सक्षम रहा है, जिसमें पहाड़ी क्षेत्रों में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर तैनात अपने सैनिकों के परिवहन और पुन: आपूर्ति के लिए रणनीतिक लिफ्ट भी शामिल है और इसके साथ ही समुद्री चौकसी के लिए विभिन्न प्रकार के उन्नत समुद्री गश्ती विमान शामिल हैं।’
भारत के साथ अमरीकी रक्षा व्यापार 2008 में लगभग शून्य से बढ़कर 2020 में 20 अरब डॉलर से अधिक हो गया। भारत ने प्रमुख रूप से अमरीका से सी-130 परिवहन विमान, लम्बी दूरी के समुद्री गश्ती विमान, मिसाइल और ड्रोन की खरीदारी की। हिंद-प्रशांत क्षेत्र और चीन के साथ 3,488 किलोमीटर लम्बी वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर चीन की बढ़ती आक्रामकता के बीच पिछले कुछ वर्षों में भारत-अमरीका संबंधों में सुधार हो रहा है।
समझौतों की हालिया शृंखला के हिस्से के रूप में अमरीकी नौसैनिक जहाज़ अब सर्विसिंग के लिए भारतीय शिपयार्ड में डॉक करने के लिए अधिकृत हैं, क्योंकि अमरीका चीन की सीमा पर गठबंधन को मज़बूत करने के लिए एक रक्षात्मक घेरा बना रहा है। लेन-देन एक महत्वपूर्ण क्षण में सम्पन्न हुआ, क्योंकि यूक्रेन में युद्ध के बीच रूस के साथ भारत के निरन्तर गठबंधन से अमरीका हतोत्साहित हो गया था। 
जनरल इलेक्ट्रिक कम्पनी (जीई) का एयरोस्पेस डिवीजन मुख्य समझौते के हिस्से के रूप में तेजस लड़ाकू विमानों के लिए एफ-414 इंजन बनाने के लिए भारत के हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स के साथ सहयोग करेगा। भारत तीन अरब डॉलर से अधिक में 31 यूएस-निर्मित एमक्यू-9बीसी गार्जियन ड्रोन खरीदने पर भी सहमत हुआ है।इस बीच इडाहो स्थित माइक्रोनटेक्नोलॉजी ने मोदी के गृह राज्य गुजरात में सेमीकंडक्टर परीक्षण और पैकेजिंग सुविधा बनाने के लिए ़2.7 अरब डालर का फंड अलग कर रखा है। व्हाइट हाऊस ने बताया कि भारत ने आर्टेमिस समझौते में शामिल होने के आह्वान का जवाब दिया है, जो शांतिपूर्ण अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए समर्पित देशों का एक समूह है और अमरीका के राष्ट्रीय वैमानिकी और अंतरिक्ष प्रशासन (नासा) के साथ एक सहयोगी मिशन अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन में 2024 में भाग लेगा। ओवल कार्यालय में मोदी-बाइडन शिखर सम्मेलन से ठीक पहले अमरीकी प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने खुलासा किया था कि भारत आर्टेमिस समझौते पर हस्ताक्षर करेगा जो अंतरिक्ष अन्वेषण के लिए एक अंतर्राष्ट्रीय पहल को कायम रखता है जिससे सभी पक्षों को लाभ होगा। अब आखिरकार भारत ने हस्ताक्षर कर दिये हैं जिससे चीनी नेतृत्व में घबराहट पैदा हो गयी है।
चीन आर्टेमिस समझौता-1967 की बाहरी अंतरिक्ष संधि और अंतरिक्ष अन्वेषण को नियंत्रित करने वाले अंतर्राष्ट्रीय कानून की नींव को बाहरी अंतरिक्ष पर नियंत्रण करने के अमरीका के प्रयास के रूप में देखता है। इसलिए भारत द्वारा इस समझौते की बिंदीदार रेखा पर हस्ताक्षर करना दोनों देशों के बीच पहले से ही अस्थिर संबंधों को और भड़काने का काम करेगा। आर्टेमिस समझौते मंगल, चंद्रमा और उससे आगे की सुरक्षित और टिकाऊ खोज सुनिश्चित करने के लिए सिद्धांतों, दिशा-निर्देशों और सर्वोत्तम प्रथाओं का एक समूह है। इन्हें नासा द्वारा 2020 में विकसित किया गया था और ये आर्टेमिस कार्यक्रम में भाग लेने में रुचि रखने वाले सभी देशों और निजी कम्पनियों के लिए खुले हैं। 

(संवाद)