डॉक्टर व मरीज़ के बीच विश्वास ज़रूरी


आज राष्ट्रीय डाक्टर दिवस पर विशेष

भारत में डॉक्टर विधान चन्द्र राय की समृति में एक जुलाई को प्रति वर्ष डॉक्टर्स दिवस के रूप में मनाया जाता है। कहा जाता है डॉक्टर की मुस्कुरहट में छिपा है मरीज़ का इलाज। डॉक्टर को धरती का भगवान माना और स्वीकार किया जाता है। पीड़ित मानवता की सेवा के कारण समाज में डॉक्टरों का विशेष आदर और सम्मान है। वर्तमान में डॉक्टरी ही एक ऐसा पेशा है, जिस पर लोग विश्वास करते हैं। इसे बनाए रखने की ज़िम्मेदारी सभी डॉक्टरों पर है। डॉक्टर दिवस स्वयं डॉक्टरों के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, क्योंकि यह दिवस उन्हें अपने चिकित्सकीय प्रैक्टिस को पुनर्जीवित करने का अवसर देता है। धरती के भगवान कहे जाने वाले डॉक्टर कोरोना महामारी के दौरान पीड़ित मानवता की सेवा में जी-जान से जुटे और अभी भी सेवा पथ पर सबसे आगे हैं। डॉक्टर ज़िंदगी और मौत के बीच जूझ रहे मरीज़ों का न सिर्फ इलाज करते हैं, बल्कि उन्हें एक नया जीवन भी देते हैं।  कोरोना महामारी के दौरान मरीज़ों की सेवा करते वक्त बहुत से डॉक्टर भी संक्रमित हो गए थे, अनेक अकाल मौत का शिकार भी हुए। फिर भी जनता की सेवा का जज़्बा कम नहीं हुआ है। भारत में आम आदमी छोटी-मोटी बीमारियां होने पर दवाखाना अथवा डॉक्टर के पास जाना पसंद नहीं करता है। सर्दी-जुकाम, खांसी-बुखार आदि मौसमी बीमारियों के दौरान घरेलू उपचार पर वह ज्यादा ध्यान देता है। जब मर्ज बढ़ जाता है और बीमारी बिगड़ जाती है, तब वह डाक्टरों की शरण में जाता है और डॉक्टर को भगवान मानकर अपने परिजन को स्वस्थ करने की याचना करता है। कमोबेश हमारे देश के आम आदमी की यही स्थिति है।
आज हमें निष्पक्ष भाव से डॉक्टर और मरीज़ के बीच पनपे अविश्वास की चुनौतियों पर विचार करना होगा। दरअसल इन दिनों डॉक्टरों के लिए सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि कई बार मरीज़ बेहतरीन इलाज मिलने के बावजूद भड़क जाते हैं और डॉक्टर या हॉस्पिटल को नुकसान भी पहुंचा देते हैं। ऐसा हाल के वर्षों में कई जगह देखने को मिला है। ऐसी खबरें अखबारों या टीवी पर पढ़ी या देखी जा सकती हैं। दरअसल डॉक्टरों की ज़िम्मेदारी मरीज़ों के हित में सर्वश्रेष्ठ कार्य करना होता है, लेकिन कई बार लाख कोशिश के बावजूद वे मरीज़ को सन्तुष्ट नहीं कर पाते। कई बार मरीज़ के परिजन अस्पताल के खर्चे को देखकर भड़क जाते हैं, वह भी तब जब मरीज़ बजाय ठीक होने के अधिक बीमार होता चला जाता है। उस समय परिजन समझते हैं कि अस्पताल अपने खर्चे निकलने में जुटा है और उसे मरीज़ के स्वास्थ्य की चिंता कम है। मरीज़ और डॉक्टर के बीच विश्वास की भावना का अभाव है जिसके कारण अस्पतालों में कभी-कभी मारपीट की घटनाएं हो जाती हैं। इस समस्या से निजात पाने के लिए ज़रूरी है कि मरीज़ डॉक्टर पर विश्वास करें, वहीं डॉक्टर का भी यह कर्त्तव्य है कि वह मरीज़ और उसके परिजनों को विश्वास में लेकर ही अपने कार्य को अंजाम दें ताकि किसी भी अप्रिय स्थिति को टाला जा सके।

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