किसानों की बेहतरी के लिए फसलों के दाम स्वामीनाथन आयोग के अनुसार तय किये जाएं

आज़ादी के बाद गत शताब्दी के छठे-सांतवें दशक के दौरान सब्ज़ इन्कलाब के समय पंजाब ने कृषि क्षेत्र में शानदार तरक्की की और उसके बाद भी किसानों की कड़ी मेहनत के परिणामस्वरूप उत्पादन में वृद्धि होती रही, परन्तु इसके बावजूद आज किसान मायूस हैं। कृषि संकट में है। प्रतिदिन किसानों द्वारा रोष रैलियां की जा रही हैं। कृषि को संकट से निकालने के लिए नई दिशा तथा सरकार द्वारा स्पष्ट नीतियां बनाने की आवश्यकता है। छोटे तथा सीमावर्ती किसान मुश्किल दौर से गुज़र रहे हैं। उनकी आय बढ़ाने की आवश्यकता है। इसके लिए सरकार की नीतियों, कार्यक्रमों तथा व्यवस्था को नई दिशा देने की ज़रूरत है। नई नीतियां किसानों की आय बढ़ाने तथा कृषि खर्च में कमी लाने पर केन्द्रित हों। इस समय टमाटर मंडी में 90-100 रुपये प्रति किलो बिक रहा है। अधिकतर किसानों ने अपनी उपज 2.50 रुपये प्रति किलो तक बेच दी। सरकार द्वारा किसानों को ऐसी फसलों को कुछ समय तक संभाल कर मंडीकरण के लिए ठंडी चेन की सुविधा उपलब्ध करवाने की आवश्यकता है। 
अब पंजाब की पूरी कृषि का मशीनीकरण हो चुका है। किसानों की भारी लागत मशीनों पर आती है। गेहूं-धान का फसली-चक्कर होने के कारण भी बहुत-से किसान ट्रैक्टर खरीदने के लिए मजबूर हो गए। इन दोनों फसलों की काश्त के लिए ट्रैक्टरों तथा मशीनों का होना ज़रूरी था। फसलों के मध्य समय कम होने के कारण मशीनों के बगैर कृषि करना सम्भव नहीं था। कस्टम सेवा तथा किराये पर मशीनें छोटे तथा सीमावर्ती किसानों को उपलब्ध नहीं हुईं। फिर ट्रैक्टर किसानों के लिए ‘स्टेटस सिंबल’ भी बन गए। बैंकों ने ट्रैक्टरों के लिए प्राथमिक तौर पर ऋण दिए, क्योंकि उन्हें सामने खड़ी मशीन की स्कियोरिटी नज़र आती थी जबकि खाद, बीज, दवाईयों से उनको सुरक्षित स्कियोरिटी नज़र नहीं आती थी। ट्रैक्टरों पर भारी लागत के कारण तथा कम इस्तेमाल में आने के कारण भी किसानों पर ऋण बढ़ गया। एक ट्रैक्टर को कम से कम 1000 से 1400 घंटे वार्षिक चलना चाहिए, जबकि एक सर्वेक्षण के अनुसार पंजाब में अधिकतर ट्रैक्टर मात्र 585 घंटे ही चलते हैं।
अधिक उत्पादन देने वाली, लम्बे समय में पकने वाली धान की किस्में किसानों द्वारा अपनाए जाने से पानी भी कृषि के लिए एक अहम सामग्री बन गया। पानी के बगैर इनका पालन-पोषण नहीं हो सकता था। फिर बिजली मुफ्त होने के कारण किसानों की ज़रूरत ट्यूबवैल हो गई और आज पंजाब में 14.50 लाख से अधिक ट्यूबवैल हैं, जिन पर किसानों की एक बड़ी राशि लागत के रूप में लगी हुई है। सरकार द्वारा भी 110201 कृषि मशीनें किसानों को रियायत पर दी गई हैं। इस प्रकार किसान ऋण के जाल में फंस गये। इनमें छोटे तथा सीमावर्ती किसान अधिक फंसे हुए हैं। इस समय पंजाब के किसानों पर तीन लाख करोड़ से अधिक ऋण है। प्रत्येक किसान के घर पर औसतन दो लाख रुपये का ऋण है, जबकि देश के किसानों के सिर पर औसत ऋण 74000 रुपये है। 
किसी समय पंजाब की प्रति सदस्य आय भारत के अन्य सभी राज्यों से अधिक होती थी। आज पंजाब प्रति सदस्य आय में 10वें स्थान पर है। नौ राज्यों की प्रति सदस्य आय, जिसमें हरियाणा भी शामिल है, पंजाब से अधिक है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अधिक आय वाले राज्यों में उद्योग का अधिक विकास हुआ है और उद्योग की आय भी प्रति सदस्य आय का हिस्सा बनती है। सब्ज़ इन्कलाब के बाद उत्पादन बढ़ने के बावजूद किसानों की शुद्ध आय नहीं बढ़ी, क्योंकि उन्हें अपनी उपज की उचित कीमत भी नहीं मिल रही। फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के अनुसार निर्धारित नहीं किया गया। इस रिपोर्ट के अनुसार कृषि के सभी खर्च, जिनमें पूरी लागत तथा किसानों के परिवार द्वारा की गई मज़दूरी तथा भूमि के खर्च शामिल हैं, को गेहूं-धान के न्यूनतम समर्थन मूल्य निर्धारित करते समय खर्च के तौर पर नहीं लिया गया। इस वर्ष 143 रुपये की वृद्धि करके धान का समर्थन मूल्य 2203 रुपये प्रति क्ंिवटल निर्धारित किया गया है। किसान नेताओं के अनुसार बढ़ रहे खर्च को देखते हुए यह वृद्धि नाकाफी है। किसान इससे संतुष्ट नहीं। प्रत्येक तरफ से मांग की जा रही है कि फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य स्वामीनाथन अयोग की रिपोर्ट के अनुसार निर्धारित किया जाए, तभी किसानों विशेषकर छोटे एवं सीमांत किसानों का कल्याण हो सकता है।