प्रेरणादायक शख्सियत के मालिक थे जवाहरलाल दर्डा 

कुछ ऐसी विभूतियां होती हैं, जिनका लक्ष्य स्पष्ट होता है। ऐसी विभूतियां समाज को बेहतर बनाना चाहती हैं, राष्ट्र को मज़बूत बनाना चाहती हैं। खुद को नींव का पत्थर बनाने में उन्हें जरा भी संकोच नहीं होता है। स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों में से ऐसी ही एक विभूति थे श्री जवाहरलाल जी दर्डा ‘बाबूजी’। हालांकि मुझे उनसे मिलने का सौभाग्य नहीं मिला लेकिन राजनीति में होने के कारण कई सारी बातें जानता हूं। जवाहरलाल जी दर्डा महाराष्ट्र की राजनीति के एक प्रमुख व्यक्तित्व थे और महाराष्ट्र से जुड़े किसी भी संदर्भ में यदि स्पष्ट राय की ज़रूरत होती थी, तो मेरी दादी श्रीमती इंदिरा गांधी जी और मेरे पिता श्री संजय गांधी जी उनसे बातचीत करते थे। इसका कारण बाबूजी की स्पष्टवादिता थे। राजनीति में रहकर भी वे कभी छलकपट नहीं करते थे। उनका उद्देश्य कभी भी किसी को नीचा दिखाना या किसी का अहित करना नहीं रहता था। सो सच है, वे वही बोलते थे। मुझे किसी ने बताया था कि जवाहरलाल जी दर्डा के कहने पर ही ए.आर. अंतुले जी को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया था।
 जवाहरलाल दर्डा के साथ मेरे पिता श्री संजय गांधी का अत्यंत करीबी रिश्ता था। महाराष्ट्र के यवतमाल में मेरे पिता जी की पहली सभा बाबूजी ने ही कराई थी। संकट के एक दौर में जब बहुत से लोग कांग्रेस छोड़ कर चले गए तब भी दर्डा जी कांग्रेस के साथ पूरी शक्ति के साथ डटे रहे। यहां तक कि इंदिरा जी जब जेल से बाहर आईं तो उनकी पहली सभा यवतमाल में उन्होंने ही कराई थी। वाकई बाबूजी वचन के धनी व्यक्ति थे। राजनीति के मौजूदा दौर में ऐसे लोग मिलना मुश्किल हैं। वे हर किसी के लिए काम करते थे। उनकी सोच बहुत बड़ी थी। यह कितनी बड़ी बात है कि जिस उम्र में बच्चे खेलने कूदने में लगे रहते हैं, वे उस उम्र में महात्मा गांधी से प्रभावित होकर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। उन्हें जेल भी जाना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। ऐसे ही समर्पित विभूतियों के कारण ही तो हमारा देश आज़ाद हुआ।
 मैं जवाहरलाल जी दर्डा के बारे में पड़ रहा था, तो उनकी विलक्षण दूरदर्शिता का मुझे एहसास हुआ। देश को आज़ादी मिल गई लेकिन उनका लक्ष्य खत्म नहीं हुआ। उनके सामने सबसे बड़ा सवाल था कि इस आज़ादी का असली लाभ आम आदमी तक कैसे पहुंचे? सत्ता को बताना ज़रूरी होता है कि आम आदमी के हालात क्या हैं? उसकी चाहत क्या है? चूंकि अखबार एक ऐसा सेतु होता है जो आम आदमी की बात को सत्ता तक पहुंचा सके और सत्ता के प्रयासों की जानकारी आम आदमी को दे सके इसलिए उन्होंने लोकमत अखबार प्रारंभ किया। वे पाठकों की नब्ज से वाकिफ  थे इसलिए लोकमत बड़ी तेज़ी से पाठकों का प्यारा अखबार बन गया। लोकमत ने वट वृक्ष का स्वरूप धारण कर लिया। मुझे लगता है कि इसमें उनके दोनों पुत्रों विजय दर्डा जी और राजेंद्र दर्डा जी की मेहनत और समर्पण तो है ही लेकिन मुख्य राह तो वही है जो जवाहरलाल जी दर्डा ने दिखाई। उनकी एक और खूबी मुझे प्रभावित करती है। जब वे सत्ता में थे, मंत्री थे, तब ऐसे कई मौके आए जब उनके अखबार ने उनकी ही सरकार को कटघरे में खड़ा कर दिया लेकिन उन्होंने तटस्थता बनाए रखी। यह कितनी बड़ी बात है। क्या आज किसी राजनेता में ऐसी पवित्रता है?
 महाराष्ट्र के राजनेता मुझे बताते हैं कि आज महाराष्ट्र यदि औद्योगिक रूप से इतना आगे है तो उसकी नींव में श्री जवाहरलाल जी दर्डा का प्रयास और उनकी दूरदृष्टि थी। उन्होंने अपने साथी नेताओं के साथ विचार-विमर्श के साथ ऐसा माहौल बनाया कि महाराष्ट्र के हर ज़िले में उद्योग पहुंचें। उद्योगों को आकर्षित करने के लिए वे सारे साधन उपलब्ध कराए गए जिनकी ज़रूरत उद्योगों को होती है। बड़े-बड़े उद्योग आने शुरू हुए। पूंजी आई, उद्योग बढ़े तो उसके साथ ही रोज़गार भी बढ़ा। आज महाराष्ट्र दूसरे राज्यों के लोगों को भी रोज़गार दे रहा है। ऐसी महान शख्सियत, महाराष्ट्र के जन-जन में बाबूजी के नाम से श्रद्धापूर्वक याद किए जाने वाले श्री जवाहरलाल जी दर्डा की जन्मशती निश्चय ही हम सबके लिए प्रेरणा का वक्त है। मैं उन्हें प्रणाम करता हूं और उम्मीद करता हूं कि उनके बताए रास्ते पर दर्डा परिवार हमेशा ही समर्पित और सक्रिय रहे।