बड़ी चुनौती है शुद्ध पेयजल और स्वच्छता 

वायु है तो प्राण हैं, स्वच्छता है तो स्वास्थ्य है, जल है तो जीवन है, नदियां हैं तो संस्कृति है। यदि ये बातें सत्य हैं तो फिर भी हम अनजान क्यों बने हुए हैं? जीवन से खिलवाड़ क्यों कर रहे हैं? 142 करोड़ का आंकड़ा पार कर भारत अब विश्व का सर्वाधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। क्या जनसंख्या में लगातार बढ़ोतरी चिंता का कारण नहीं है? पेयजल, स्वच्छता, शिक्षा, चिकित्सा, आवास, यातायात के साधन, सुरक्षा आदि मनुष्य की मूलभूत आवश्यकताएं हैं। संविधान प्रत्येक नागरिक को मूलभूत सुविधाओं के साथ सम्मान के जीवन का अधिकार देता है। क्या आज वर्ष 2023 तक भी सभी को ये मूलभूत आवश्यकताएं उपलब्ध हैं? स्वच्छ पेयजल, स्वच्छता एवं चिकित्सा के अभाव में प्रतिवर्ष लाखों लोगों की मौत हो जाती है। वर्ष 2019 में जारी पेयजल शुद्धता रिपोर्ट के आंकड़े चिंताजनक थे। भारत के विभिन्न राज्यों में अधिकतर ग्रमीण क्षेत्रों के लोग दूषित पानी पीने के लिए मज़बूर हैं। पेयजल में आयरन, खारापन, आर्सैनिक, फ्लोराइड एवं नाइट्रेट जैसे घातक रसायन मिल रहे हैं। बड़ी चुनौती यह है कि नदियां, कुएं, तालाब, ट्यूबेल आदि प्रमुख जल स्त्रोत गंभीर प्रदूषण का शिकार हो रहे हैं। नदियां मर रही हैं, भूजल स्तर घट रहा है। जहां जल अच्छी मात्रा में उपलब्ध है, वहां इसके इस्तेमाल को लेकर लापरवाही देखी जा रही है। अनेक स्थानों पर टूटी हुई पानी की पाइप लाइन से बड़ी मात्रा में जल व्यर्थ बहता रहता है। 
गर्मी के दिनों में जैसे-जैसे तापमान बढ़ता है वैसे-वैसे पेयजल के लिए हाहाकार आरंभ हो जाता है। ऐसे में बढ़ती जनसंख्या को स्वच्छ जल कहां से मिलेगा? हाल ही में अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने भारत सरकार के जल जीवन मिशन को लेकर अपने अध्ययन में यह स्पष्ट किया कि यह मिशन दुनिया के लिए एक मिसाल बन रहा है। अध्ययन से स्पष्ट हुआ है कि यदि सभी लोगों तक स्वच्छ जल पहुंचता है तो प्रतिवर्ष लगभग 101 अरब डॉलर की बचत होगी और प्रतिवर्ष डायरिया जैसी बीमारियों से लगभग 4 लाख लोगों का जीवन भी बच सकेगा। यह मिशन महिलाओं के लिए वरदान है, इससे उनके समय की बचत होगी। सरकारी आंकड़ों के अनुसार जल जीवन मिशन से अब तक 62 फीसदी ग्रामीण घरों में नल से जल की आपूर्ति की व्यवस्था हो चुकी है। उल्लेखनीय है कि भारत सरकार ने जुलाई 2019 में जल जीवन मिशन की शुरुआत की थी, जिसके सुखद परिणाम आ रहे हैं। विचारणीय है कि पिछले कुछ वर्षों में न केवल भारत अपितु वैश्विक स्तर पर जल की खपत में बढ़ोतरी के कारण जल संकट और विमर्श केंद्र में आया है। संयुक्त राष्ट्र ने 22 मार्च को विश्व जल दिवस घोषित किया है। स्वयं में वह बदलाव लाएं जो बदलाव आप दुनिया में देखना चाहते हैं। संभवत यह जल के विषय में दुनिया की सोच में बदलाव लाने का काम करेगा। आंकड़ों के अनुसार विश्व की लगभग 7.90 अरब आबादी में से लगभग 2 अरब लोगों के पास पीने का साफ  पानी उपलब्ध नहीं है और 2050 तक दुनियाभर में पानी की मांग में 55 प्रतिशत तक बढ़ोतरी का अनुमान है। स्पष्ट है शुद्ध पेयजल एक बड़ी चुनौती है।
स्वच्छता स्वास्थ्य का पर्याय है। गंदगी बढ़ना अथवा स्वच्छता न होना मानवीय प्रकृति में विकृति का द्योतक है। आंकड़ों के अनुसार विश्व की 3.6 अरब आबादी के पास स्वच्छता की पर्याप्त व्यवस्था नहीं है। इसी प्रकार घरों से निकलने वाले 44 फीसदी अपशिष्ट जल के लिए शोधन की भी उचित व्यवस्था नहीं है। भारत में जैसे-जैसे जनसंख्या वृद्धि हो रही है वैसे-वैसे स्वच्छता एक बड़ी चुनौती बन रही है। महानगरों में कूड़े के ढेर सहज ही देखे जा सकते हैं। भारत की अनेक प्रमुख नदियां अशोधित अपशिष्ट के कारण गंदी हो रही हैं। फैक्टरियों और घरों का कचरा खुले में व नदियों के किनारे सहज ही देखा जा सकता है। भारत के लोग विदेश में जाने पर वहां की स्वच्छता और कानून के कड़े प्रावधानों की बात करते हैं, किंतु भारत में ऐसे कानून और दंड का न होना अथवा लचीलापन भी इस गंदगी फैलाने की प्रवृत्ति को बढ़ा रहा है। बढ़ती जनसंख्या के साथ-साथ कचरा निस्तारण भी एक बड़ी चुनौती है। अस्पतालों, फैक्टरियों व घरों से निकलने वाला कचरा भी बहुत कम मात्रा में निस्तारित हो पाता है। कहीं उपकरणों की कमी है तो कहीं मानसिकता की। आज भी नियोजित नगरों और अनियोजित बस्तियों में स्वच्छता की समुचित व्यवस्था नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में शासन-प्रशासन एवं जनभागीदारी से देश का बड़ा हिस्सा खुले में शौच से मुक्त हुआ है, स्वच्छता के प्रति लोगों में जागरूकता बढ़ी है, कचरा प्रबंधन के क्षेत्र में स्टार्टअप बढे हैं, किंतु क्या चुनौतियां समाप्त हो गई, क्या राजधानी दिल्ली में कूड़े के पहाड़ गंदगी व विभिन्न प्रकार के प्रदूषण के प्रमाण नहीं है?
आज समय की मांग है कि हमें स्वच्छता को स्वभाव बनाना पड़ेगा, जल संरक्षण-संवर्धन हेतु प्रतिबद्ध होना पड़ेगा। जल, प्रकृतिक पर्यावरण एवं स्वच्छता से खिलवाड़ करने वालों के लिए कठोर दंड का प्रावधान करना होगा। हमें समझना होगा कि स्वच्छ पेयजल, स्वच्छ वायु एवं स्वच्छ वातावरण जीवन की अनिवार्यता है। भारतीय जीवन में विभिन्न पर्व, उत्सव अपने आसपास की स्वच्छता, जल स्रोतों एवं प्रकृति पर्यावरण की स्वच्छता एवं संरक्षण का संदेश देते हैं। आज पेयजल और स्वच्छता एक बड़ी चुनौती है। ध्यान रहे हमारी सजगता और निरन्तर प्रयास ही हमें इन चुनौतियों से निकालकर सुनहरे भविष्य का मार्ग दिखा सकते हैं। (युवराज)