समान नागरिक संहिता—सिख पंथ का दृष्टिकोण क्या हो ?

आजकल पूरे भारत के समाचार पत्रों एवं टी.वी. चैनलों तथा इंटरनैट पर समान नागरिक संहिता बारे चर्चा चल रही है। विगत मास के आरम्भ में भारत सरकार के विधि आयोग ने एक बयान जारी किया था कि भारत के सभी धार्मिक एवं सामाजिक संगठन 12 जुलाई तक भारत में समान नागरिक संहिता लागू करने बारे लिखित रूप में अपने विचार भेजें। आम लोगों को इस बारे जानकारी नहीं है। यह संहिता जब भारत में लागू हो जाएगी तो सभी कौमों के अलग विवाह कानून बंद हो जाएंगे।
इस समय 30 लाख से अधिक सिख विदेशों में रह रहे हैं और वे विगत 100 वर्षों से अधिक समय से उन देशों में वहां के कानून के अनुसार सभी कार्य करते हैं। मुझे कई बार रिश्तेदारी या मित्रों के विवाह में शामिल होने का अवसर मिला है। सभी विवाह सिख रीति-रिवाज़ों के अनुसार गुरुद्वारों में पूरी शान से करवाये जाते हैं और फिर दोनों परिवार सरकार के नियुक्त अधिकारी के पास हस्ताक्षर करते हैं और जब वह समय तय करता है, दोनों परिवार वहां जाकर कोर्ट मैरिज की रस्म पूरी करते हैं और पूर्ण कागज़ी कार्रवाई होने पर वह अधिकारी विवाह का सर्टिफिकेट दे देता है। कनाडा, अमरीका तथा पूरे देश में एक जैसा कानून है और किसी भी धर्म का अलग कानून नहीं है।
जब विधि आयोग ने इस एक्ट के बारे में बयान जारी किया तो मैंने इस बारे एक ई-मेल स. हरजिन्दर सिंह धामी, अध्यक्ष एस.जी.पी.सी. को भेजी और यह सुझाव दिया कि वह विद्वानों तथा सेवामुक्त सिख जजों की बैठक बुलाएं तथा इस मामले पर उनके विचार लें ताकि समूची कौम द्वारा समान विचार बन सके, परन्तु मुझे बड़े अफसोस से लिखना पड़ रहा है कि उसी समय महासचिव एस.जी.पी.सी. द्वारा समान नागरिक संहिता के खिलाफ बयान प्रकाशित हो गया। शायद भारत में हमने यह पहल की है कि हमें यह संहिता स्वीकार नहीं है। इसके बाद शिरोमणि अकाली दल द्वारा भी ऐसे बयान कई बार दिये गए हैं। अन्य किसी कौम के धार्मिक नेताओं द्वारा इस तरह की जल्दबाज़ी नहीं दिखाई गई और वे सभी इस पर विचार कर रहे हैं। हमारा दुर्भाग्य है कि हम हमेशा सरकार के साथ टकराव की नीति को सम्मुख रखते हैं। कमाल यह है कि अभी तक विधि आयोग ने इस नई संहिता बारे कोई जानकारी प्रैस में नहीं दी। किसी को पता नहीं है कि नये विधेयक में सरकार क्या नीति अपनाती है। हम बिना पढ़े तथा बिना विद्वानों के परामर्श के सरकार के खिलाफ बयानबाज़ी करने में बड़ी सफलता समझते हैं।
पाठकों को यह भलीभांति पता है कि भारत में हिन्दु संहिता कानून 1955 में लागू हुआ, जिसमें हिन्दू, सिख, जैन व बौद्ध  भी शामिल किए गए थे और जितने भी विवाह उस दिन से इन कौमों में हुए, उन्हें जो सर्टिफिकेट मिलता है, उसमें लिखा जाता है कि यह विवाह हिन्दू संहिता कानून के तहत हुआ है। विश्व भर में रहते सिखों के पास ये सर्टिफिकेट हैं।  मैं जब हरियाणा की तरफ से 2004 में सांसद बना तो मैंने 2006 में आनंद मैरिज एक्ट का प्रस्ताव पेश किया था। यह बिल मैंने जत्थेदार अकाल तख्त साहिब जोगिन्दर सिंह वेदांती और एस.जी.पी.सी. से स्वीकृत करवाया। सभी पार्टियों के सिख सांसदों से मैंने इस बिल के पक्ष में हस्ताक्षर करवाए। 6 वर्ष मुझे इस काम में लगे और कामयाबी 2012 में मिली जब संसद के दोनों सदनों में यह बिल पास हुआ, जिसको आनंद मैरिज एक्ट 2012 कहते हैं। इसके अनुसार जो सिख विवाह 2012 के बाद से भारत में हो रहे हैं, उनको सरकारी तौर पर आनंद मैरिज का सर्टिफिकेट मिलता है। प्रत्येक प्रदेश को यह आदेश हुआ है कि अपने नियम (कानून) बना कर इसको लागू करे।
सात जुलाई को दिल्ली में भारत के सभी प्रदेशों के सिख प्रतिनिधियों की एक एकत्रता दिल्ली गुरुद्वारा कमेटी ने की। यह शायद पहली बार है कि किसी मामले के लिए ऐसा प्रयत्न किया गया है। इस बैठक में प्रदेशों के प्रवक्ता, सेवामुक्त जज, आई.ए.एस. अधिकारी और सेना के अधिकारी और यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर भी शामिल थे। मुझे भी वहां पर विचार रखने का मौका मिला। पूरी बैठक में यह फैसला हुआ कि समान नागरिक संहिता बारे 11 सदस्यीय कमेटी बनाई जाए ताकि विचार करके लॉ कमिशन के साथ बैठक की जाए। सभी की ओर से इस बात पर रोष प्रकट किया गया कि पंजाब का नेतृत्व कभी भी प्रदेश के सिखों की राय नहीं लेता। मैंने शिरोमणि कमेटी प्रधान को यह भी लिखा है कि समान नागरिक संहिता बनाने का अधिकार हर प्रदेश को मिल चुका है। स. नरिन्दर सिंह बिंदरा चैयरमैन, हेमकुंट ट्रस्ट ने बैठक में कहा कि उत्तराखंड सरकार इस बिल का प्रारूप तैयार कर चुकी है कि भारत में यह पहला प्रदेश होगा, जिसमें यह कानून लागू हो जाएगा। गुजरात और उत्तर प्रदेश में भी यह प्रक्रिया चल रही है। वहां रहने वाले सिखों को सरकार अपनी राय देने के लिए बुला रही है। इस बैठक में सभी ने खुल कर विचार रखे और इस बात पर भी ज़ोर दिया गया कि पंजाब से बाहर रहते सिख सरकारों के साथ अनावश्यक लड़ाई के विरुद्ध हैं। बातचीत का रास्ता अपनाया जाए और बाहर के सिखों की राय भी ली जाए। इस समय सिख नेतृत्व को बयानबाज़ी से दूर रहने की ज़रूरत है और केवल अपनी सिख-मर्यादा और अपनी अलग धार्मिक हस्ती को कायम रखने के हित में ही प्रयत्न करने चाहिएं। जैसे दिल्ली में सिखों की एकत्रता को सुझाव दिए हैं, उस पर अमल करना चाहिए।

-पूर्व राज्यसभा सदस्य