पृथ्वी पर जीवन का आधार हैं वन

आज पूरी दुनिया प्रकृति के असंतुलन का बड़ा खामियाजा भुगत रही है। प्रकृति के असंतुलन का सबसे बड़ा कारण वनों तथा वन्य जीवों की घटती संख्या ही है, इसीलिए इनके संरक्षण हेतु दुनियाभर में औपचारिक अथवा अनौपचारिक प्रयास किए जा रहे हैं। वन न केवल जीव-जंतुओं की हजारों-लाखों प्रजातियों के प्राकृतिक आवास हैं बल्कि प्रकृति और मानव जीवन में संतुलन बनाए रखने में भी इनकी भूमिका सर्वाधिक महत्वपूर्ण है, इसीलिए प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने के लिए वनों के संरक्षण की ज़रूरत पर बल दिया जाता रहा है। वन पृथ्वी पर जीवन के आधार हैं और इनके बिना मानव जाति का कल्याण असंभव है। यही कारण है कि पर्यावरण विशेषज्ञों द्वारा वन क्षेत्रों के विस्तार के लिए गंभीर प्रयासों की ज़रूरत पर जोर दिया जा रहा है। मानव जीवन में वनों की महत्ता और पर्यावरण संरक्षण में वनों की भूमिका को लेकर आज व्यापक जन-जागरण अभियान की ज़रूरत है ताकि आमजन को आभास हो कि मानव जीवन के लिए वन किस-किस प्रकार लाभदायक हैं। वनों की महत्ता को देखते हुए ही भारत के तत्कालीन कृषि मंत्री के.एम. मुंशी ने 1950 के दशक में पर्यावरण संरक्षण और प्राकृतिक परिवेश के प्रति संवेदनशीलता अभिव्यक्त करने के लिए ‘वन महोत्सव’ नामक एक आंदोलन का सूत्रपात किया था, तभी से भारत सरकार द्वारा वृक्षारोपण को प्रोत्साहन देने के लिए प्रति वर्ष जुलाई के प्रथम सप्ताह में वन महोत्सव का आयोजन किया जाता है। दरअसल वनों की कटाई से पर्यावरण पर तो भयानक दुष्प्रभाव पड़ता ही है, वन्यजीवों के अस्तित्व पर भी संकट के बादल मंडरा रहे हैं। जुलाई महीने के प्रथम सप्ताह में ही वन महोत्सव मनाए जाने का प्रमुख कारण यही है कि जुलाई-अगस्त का महीना वर्षा ऋतु का होता है और पेड़-पौधों के उगने के लिए नमी का यह मौसम अच्छा माना जाता है क्योंकि इस मौसम में पेड़-पौधे जल्दी उगते हैं।
भारत की वन स्थिति रिपोर्ट 2021 (आईएसएफआर) के अनुसार देश का कुल वन आच्घ्छादित क्षेत्र आठ लाख नौ हजार वर्ग किलोमीटर हो गया है, जोकि देश के कुल भौगोलिक क्षेत्र का करीब 24 प्रतिशत है। यह 2019 के आकलन की तुलना में 2261 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि दर्शाता है। यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के तहत कार्यरत संगठन ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ द्वारा भारत के वनों का 17वां द्विवार्षिक मूल्यांकन है। आईएसएफआर देश के वन आवरण और वृक्ष आवरण की नवीनतम स्थितिए बढ़ते स्टॉक का अनुमान, जंगलों के बाहर वृक्षों की सीमा, मैंग्रोव कवर, बांस संसाधन और वन कार्बन स्टॉक का आकलन प्रस्तुत करता है। इस रिपोर्ट के अनुसार कुल वन और वृक्ष आवरण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 24.62 प्रतिशत है, जिसमें कुल वन आवरण 713789 वर्ग किलोमीटर है, जो देश के भौगोलिक क्षेत्र का 21.71 प्रतिशत है जबकि वृक्ष आवरण देश के भौगोलिक क्षेत्र का 2.91 प्रतिशत है। 
आईएसएफआर 2019 की तुलना में वर्तमान मूल्यांकन में वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय स्तर पर वन आवरण में 1540 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि हुई है। हालांकि दो वर्षों में यह वृद्धि ऊंट के मुंह में जीरे के समान हैं क्योंकि वन नीति, 1988 के अनुसार भूमि के कुल क्षेत्रफल का 33 प्रतिशत भाग वन-आच्छादित होना चाहिए। कई राज्य ऐसे हैं, जहां वन आवरण लगातार कम हो रहा है। आईएसएफआर रिपोर्ट के मुताबिक वन क्षेत्र में उल्लेखनीय वृद्धि दर्शाने वाले राज्यों में आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, उड़ीसा, कर्नाटक, झारखंड शामिल हैं, जहां पहाड़ी ज़िलों में वन आवरण इन ज़िलों के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 40.17 प्रतिशत है। वन क्षेत्र में कमी दर्शाने वाले राज्यों में अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर, नागालैंड, मिजोरम, मेघालय हैं। चिंतनीय स्थिति यह है कि देश के 140 पहाड़ी ज़िलों में वन क्षेत्र में 902 वर्ग किलोमीटर की कमी आई है।
संयुक्त राष्ट्र का खाद्य और कृषि संगठन (एफएओ) भी सभी सदस्य देशों में जंगल की स्थिति और उनके प्रबंधन का आकलन करते हुए 1990 के बाद से हर पांच साल में एक व्यापक मूल्यांकन रिपोर्ट ‘वैश्विक वन संसाधन मूल्यांकन’ (एफआरए) जारी करता है। एफआरए 2020 के अनुसार 2010.20 के दशक के दौरान वन क्षेत्र में बढ़ोतरी करने वाले 10 देशों में भारत का तीसरा स्थान था। इन 10 देशों में चीन पहले स्थान पर है और भारत के अलावा अन्य देशों में आस्ट्रेलिया, चिली, वियतनाम, तुर्की, संयुक्त राज्य अमरीका, फ्रांस इटली और रोमानिया शामिल हैं।  वर्ष 1990 में यह वन क्षेत्र शून्य था, जो 2015 में बढ़कर करीब 2.5 करोड़ हेक्टेयर हो गया। एफआर, 2020 के अनुसार पिछले एक दशक में प्राकृतिक रूप से पुनर्जीवित वन में वृद्धि की दर मात्र 0.38 प्रतिशत रही।
‘नेचर’ जर्नल की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में करीब 35 अरब वृक्ष हैं और प्रत्येक व्यक्ति के हिस्से में करीब 28 वृक्ष आते हैं। यह आंकड़ा पढ़ने-सुनने में जितना सुखद दिखता है, उतना है नहीं क्योंकि 35 अरब वृक्षों में से अधिकांश सघन वनों में हैं, न कि देश के विभिन्न शहरों या कस्बों में। वृक्षों की अंधाधुध कटाई के चलते सघन वनों का क्षेत्रफल भी तेजी से घट रहा है। रूस, कनाडा, ब्राजील, अमरीका इत्यादि देशों में स्थिति भारत से कहीं बेहतर है, जहां क्रमश: 641, 318, 301 तथा 228 अरब वृक्ष हैं।
 इस रिपोर्ट के मुताबिक सभ्यता की शुरूआत के समय पृथ्वी पर जितने वृक्ष थे, उनमें से करीब 46 प्रतिशत का विनाश हो चुका है और दुनिया में प्रतिवर्ष करीब 15.3 अरब वृक्ष नष्ट किए जा रहे हैं। सभ्यता की शुरूआत से अभी तक ईंधन, इमारती लकड़ी, कागज इत्यादि के लिए तीन लाख करोड़ से भी अधिक वृक्ष काटे जा चुके हैं। बहरहाल, धरती पर पर्याप्त वन होंगे, तभी जीवन संभव है क्योंकि मनुष्य को जीवित रहने के लिए सांस लेने की ज़रुरत है और यदि सांस लेने में ऑक्सीजन नहीं होगी तो हम जीवित भी नहीं होंगे। ऑक्सीजन का सबसे प्रमुख स्रोत वृक्ष ही हैं। वृक्ष हमसे कुछ लेते नहीं है बल्कि हमें नया जीवन प्रदान करते हैं। हमें यह अच्छी तरह समझ लेना होगा कि यदि पृथ्वी घने वनों से आच्छादित रहेगी, तभी हमें स्वच्छ और स्वस्थ जीवन मिल सकेगा।

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