विपक्षी दलों का एकजुट होना अभी भी आसान नहीं

सभी थे एकता के हक में लेकिन
सभी ने अपनी-अपनी शर्त रख दी।
(दीपक जैन दीप)
देश भर के विपक्षी दलों की बैंग्लुरु में हुई बैठक के बाद नि:सन्देह भाजपा के ़खेमे में घबराहट साफ दिखाई दे रही है परन्तु जो कुछ इस बैठक में एकता दिखाने के बाद आम आदमी पार्टी के प्रवक्ता तथा नेता कह रहे हैं, वह स्थिति को स्पष्ट करने के स्थान पर और जटिल बना रही है। एक तरफ तो आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेता तथा राज्यसभा सांसद राघव चड्ढा जो स्वयं इस बैठक में शामिल थे, यह कह रहे हैं कि यदि 2024 में भाजपा तीसरी बार भी जीत गई तो सम्भावना है कि फिर कभी चुनाव ही न हों तथा भारत में भी चीन तथा रूस जैसा लोकतंत्र या राजतंत्र लागू हो जाएगा परन्तु दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी के पंजाब प्रवक्ता टी.वी. पर बैठ कर स्पष्ट घोषणा कर रहे हैं कि 2024 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस तथा ‘आप’ के मध्य दिल्ली, पंजाब, गुजरात तथा गोवा में सीटों की बांट नहीं होगी। अर्थात वे इन प्रदेशों में चुनाव अपने-अपने दम पर ही लड़ेंगे तथा आपस में मुकाबला भी होगा। दूसरी तरफ आम आदमी पार्टी दिल्ली में प्रशासनिक सेवाओं संबंधी जारी केन्द्रीय अध्यादेश को कानून बनाने से रोकने हेतु कांग्रेस की सहायता भी तलाश रही है, जो अब मिलना लगभग सुनिश्चित है।
विपक्ष की पहली बैठक में यह स्पष्ट कहा गया था कि विपक्षी दलों में सहमति बन गई है कि भाजपा के नेतृत्व वाले एन.डी.ए. (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) के उम्मीदवारों के मुकाबले में विपक्ष का एक ही सांझा उम्मीदवार खड़ा किया जाएगा परन्तु आश्चर्यजनक बात है कि जैसे ‘आप’ के प्रवक्ता स्पष्ट कह रहे हैं कि हम सीटों की बांट नहीं करेंगे तो इस एकता का अर्थ क्या रह जाएगा? कुछ इसी तरह के स्वर पश्चिम बंगाल से भी सुनाई दे रहे हैं कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी भी वामपंथियों के साथ सीटों की बांट को लेकर इन्कार कर रही हैं। फिर पंजाब तथा दिल्ली के कांग्रेसी नेता भी चाहे एक तरफ कह रहे हैं कि केन्द्र में हाईकमान का फैसला स्वीकार है परन्तु पंजाब तथा दिल्ली में हम स्थिति के अनुसार ‘आप’ के विरोध में खड़े हैं। ऐसी स्थितियों के दृष्टिगत यही प्रतीत होता है कि विपक्षी दलों की एकता इतनी आसान नहीं जितना कि प्रचार किया जा रहा है।
पर्दे के पीछे कुछ और खेल है?
हमारी जानकारी के अनुसार वास्तव में पर्दे के पीछे कुछ और खेल खेला जा रहा है। यही कारण है कि इन पार्टियों के बड़े नेता तो एकजुटता के पक्ष में खुल कर बयान दे रहे हैं परन्तु इनके निचले स्तर के नेता तथा प्रवक्ता कुछ और ही भाषा बोल रहे हैं। हालांकि चर्चा है कि यदि विपक्षी दल अपनी भिन्नताओं के चलते कुल 543 सीटों में से 400 पर भी एक उम्मीदवार के मुकाबले अपना एक सांझा उम्मीदवार खड़ा करने में सफल रहती हैं तो यह भाजपा के लिए ़खतरे की घंटी होगी परन्तु उनका प्रयास तो सभी सीटों पर ही एक उम्मीदवार देने का होना चाहिए। हमारे सूत्रों के अनुसार नि:सन्देह कांग्रेस तथा ‘आप’ में सीटों की बांट न करने संबंधी निचले स्तर के नेता ज़ोरदार ढंग से बोल रहे हैं, परन्तु वास्तव में दोनों दलों के हाईकमान सीटों की इस बांट के लिए गोपनीय रूप में सहमत हो चुके हैं तथा इसके लिए ये दोनों पार्टियां एक सांझी कमेटी बनाने पर भी सहमति बना चुकी हैं परन्तु इस संबंधी घोषणा समझौता सम्मन्न के उपरांत ही की जाएगी। इतने समय तक दोनों दलों के प्रदेश स्तरीय नेता एक-दूसरे का विरोध जारी रखेंगे। 
जानकार सूत्रों के अनुसार आम आदमी पार्टी को भी यह एहसास है कि वह अपने दम पर पंजाब तथा दिल्ली की सभी 20 सीटें जीतने में समर्थ नहीं है जबकि गुजरात, गोवा, राजस्थान व हरियाणा में अकेले तौर पर खाता खोलना भी आसान नहीं है। इस लिए दोनों पक्ष एक सोची-समझी रणनीति के तहत ही शोर मचा रहे हैं ताकि दूसरे पक्ष पर अधिक सीटें छोड़ने का दबाव बनाया जा सके। हमारी जानकारी के अनुसार ‘आप’ दिल्ली तथा पंजाब में छोड़ी हर सीट के बदले राजस्थान, गुजरात, गोवा तथा हरियाणा में दोगुणा सीटें छोड़ने के लिए कहेगी। बंगाल में नया विपक्षी गठबंधन सीटों की बांट के बिना भी लड़ सकता है, परन्तु समझा जा रहा है कि ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस राष्ट्रीय स्तर पर अपनी स्थिति मज़बूत करने के लिए अंत में 42 में से 30 सीटें रख कर 12 सीटें छोड़ने के लिए सहमत हो सकती है। 
चर्चा है कि ऐसा तब ही होगा यदि विपक्षी दलों के नये बने गठबंधन ‘इंडिया’ का सीटों की बांट हेतु समझौता ‘आप’ के साथ होगा। वास्तव में ममता बनर्जी तथा ‘आप’ प्रमुख अरविन्द केजरीवाल की आपस में सहमति बताई जाती है। इस दौरान उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के साथ सीटों के बंटवारे में अब कोई बड़ी अड़चन आने के आसार कम ही हैं क्योंकि बसपा प्रमुख मायावती ने अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी है। इससे सपा जितनी कम से कम सीटों पर लड़ना चाहती है, उसके लिए रखना कठिन नहीं होगा।  
कोई अच्छा नज़र आ जाए तो कुछ बात भी है,
यूं तो पर्दे में सभी पर्दानशीं अच्छे हैं।
             (मुज़तर ़खैराबादी)
कई प्रमुख दल अभी भी दोनों पक्षों से दूर 
चाहे विपक्षी दलों द्वारा ‘इंडिया’ नामक गठबंधन बना कर भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन को सीधी टक्कर देने तथा तीसरे गठबंधन की सम्भावना को काफी कम कर दिया गया है, परन्तु अभी भी लगभग 10-11 प्रमुख दल ऐसे हैं, जो दोनों पक्षों से दूर हैं। बसपा प्रमुख ने तो अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा कर ही दी है, परन्तु वाई.एस.आर. कांग्रेस, बी.आर.एस., बी.जे.डी. जो तीनों दल क्रमश: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना तथा ओडिशा में शासक दल हैं, के अतिरिक्त टी.डी.पी., अकाली दल, ए.आई.एम.आई.एम., यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट, जनता दल (सैकुलर) तथा नैशनल डेमोक्रेटिक पार्टी अभी तक किसी भी पक्ष के साथ नहीं गए। हालांकि दोनों पक्ष इन्हें अपने साथ जोड़ने का प्रयास करेंगे। फिर भी जनता दल (सैकुलर), वाई.एस.आर. कांग्रेस तथा अकाली दल के भाजपा की ओर जाने के अधिक आसार हैं, परन्तु बी.जे.डी. जिसका झुकाव पहले भाजपा की ओर होता था और बी.आर.एस. विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की ओर नरम रवैया अपना सकते हैं। 
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