रुपये को वैश्विक मुद्रा बनाने के प्रयास 

भारतीय मुद्रा रुपये की सशक्त वैश्विक मुद्रा के रूप में मान्यता के भारत सरकार के प्रयासों का अब परिणाम सामने आने लगा है। डालर (और एक हद तक यूरो) के एक मात्र वैश्विक मुद्रा के रूप में मान्यता के चलते डालर की कीमत में जब चाहे बढोत्तरी और कमी के रूप में अमरीका की दादागिरी जगजाहिर है। इसके कारण डालर में लेन-देन करने वाले देशों को कभी-कभी बड़े व्यापारिक घाटे का सामना करना पड़ता है। विशेष रूप से विदेशों से डालर में व्यापार करने वाला भारत हर दिन डालर के अंतर्राष्ट्रीय मूल्यन के मनमाने उतार-चढ़ाव से प्रभावित होता रहता है। अपने व्यापारिक और राष्ट्रहित को ध्यान में रखते हुए भारत ने रुपये में भुगतान के प्रस्ताव अपने व्यापारिक सम्बन्ध रखने वाले देशों से किये हैं। वर्तमान में अगर औपचारिक भुगतानों को छोड़ दें तो भारत के पड़ोसी देशों में आम नागरिक निर्धारित मूल्य के आधार पर रुपये में भुगतान कर सामान खरीद सकता है किन्तु जब तक संधि न हो तब तक अपनी-अपनी मुद्रा में औपचारिक भुगतान सम्भव नहीं है।
भारत और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के बीच स्थानीय मुद्रा में कारोबार के लिए पिछले दिनों महत्वपूर्ण समझौता हुआ। इसके बाद दोनों देश रुपये और यूएई की मुद्रा दिरहम में कारोबार करेंगे। दुनिया के किसी देश से भारत का यह इस तरह का पहला समझौता है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पिछले दिनों एक दिवसीय यात्रा पर यूएई पहुंचे थे। इस यात्रा में मोदी और यूएई के राष्ट्रपति व अबू धाबी के शासक शेख मोहम्मद बिन जायद अल नह्यान के बीच दोनों देशों के बहुआयामी संबंधों को और प्रगाढ़ करने पर व्यापक बातचीत हुई। व्यापार और निवेश, फिनटेक ऊर्जा, जलवायु परिवर्तन और उच्चतर शिक्षा के साथ-साथ कई क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर भी चर्चा हुई। भारत व यूएई के बीच तीन अहम समझौते भी हुए। अबू धाबी में प्रधानमंत्री मोदी और यूएई के राष्ट्रपति शेख मोहम्मद बिन जायेद अल नह्यान के समक्ष आरबीआई के गवर्नर डॉ. शक्तिकांत दास और रिजर्व बैंक ऑफ  यूएई के गवर्नर खालिद मोहम्मद बालमा ने हस्ताक्षर किए। यूएई के राष्ट्रपति से भेंट के बाद मोदी ने कहा कि पिछले साल व्यापक आर्थिक साझेदारी समझौते पर हस्ताक्षर के बाद से भारत यूएई व्यापार में बीस प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है। उन्होंने कहा दोनों देशों की मुद्राओं में व्यापार के लिए हुआ समझौता दोनों देशों के बीच मज़बूत आर्थिक सहयोग और आपसी विश्वास को दर्शाता है। इससे द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा मिलेगा और हम यूएई संघ व्यापार को 85 से बढ़ाकर 100 अरब डालर तक ले जाएंगे।
इंटरनेशनल स्टैंडर्ड ऑर्गेनाइज़ेशन लिस्ट के अनुसार दुनिया भर में कुल 185 करंसी हैं। हालांकि इनमें से ज़्यादातर मुद्राओं का इस्तेमाल अपने देश के भीतर ही होता है। कोई भी मुद्रा दुनिया भर में किस हद तक प्रचलित है, यह उस देश की अर्थव्यवस्था और उसकी आर्थिक व राजनीतिक शक्ति पर निर्भर करता है।
दुनिया की दूसरी ताकतवर मुद्रा यूरो है जो विश्व भर के केंद्रीय बैंकों के विदेशी मुद्रा भंडार में 19.9 फीसदी है। ज़ाहिर है डॉलर की मज़बूती और उसकी स्वीकार्यता अमरीकी अर्थव्यवस्था की ताकत को दर्शाती है। कुल डॉलर के 65 फीसदी डॉलर का इस्तेमाल अमरीका के बाहर होता है। स्मरणीय है कि दुनिया भर के 85 फीसदी व्यापार में डॉलर की संलिप्तता है। दुनिया भर के 39 फीसदी कज़र् डॉलर में दिए जाते हैं। इसलिए विदेशी बैंकों को अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में डॉलर की ज़रूरत होती है। 1944 में ब्रेटनवुड्स समझौते के बाद डॉलर की वर्तमान मज़बूती की शुरुआत हुई थी। उससे पहले ज़्यादातर देश केवल सोने को बेहतर मानक मानते थे। उन देशों की सरकारें वायदा करती थीं कि वे उनकी मुद्रा को सोने की मांग के मूल्य के आधार पर तय करेंगे।
1970 की शुरुआत में कई देशों ने डॉलर के बदले सोने की मांग शुरू कर दी थी, क्योंकि उन्हें मुद्रा स्फीति से लड़ने की ज़रूरत थी। उस समय राष्ट्रपति निक्सन ने फोर्ट नॉक्स को अपने सभी भंडारों को समाप्त करने की अनुमति देने के बजाय डॉलर को सोने से अलग कर दिया था। तब तक डॉलर दुनिया की सबसे खास सुरक्षित मुद्रा बन चुका था।
मार्च 2009 में चीन और रूस ने एक नई वैश्विक मुद्रा की मांग की। वे चाहते हैं कि दुनिया के लिए एक रिज़र्व मुद्रा बनाई जाए जो किसी इकलौते देश से अलग हो और लम्बे समय तक स्थिर रहने में सक्षम हो। इस प्रकार क्रेडिट आधारित राष्ट्रीय मुद्राओं के इस्तेमाल से होने वाले नुकसान को घटाया जा सकता है। चीन को चिंता है कि अगर डॉलर की मुद्रा स्फीति तय हो जाए तो उसके खरबों डॉलर किसी काम के नहीं रहेंगे। यह उसी सूरत में हो सकता है जब अमरीकी कज़र् को पाटने के लिए यूएस ट्रेज़ी नए नोट छापे। चीन ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष से डॉलर की जगह नई मुद्रा बनाए जाने की मांग की है।
2016 की चौथी तिमाही में चीन की युआन दुनिया की एक और बड़ी रिज़र्व मुद्रा बनी थी। 2017 की तीसरी तिमाही तक दुनिया के केंद्रीय बैंक में 108 अरब डॉलर थे। यह एक छोटी शुरुआत है। इसी कारण चीन चाहता है कि उसकी मुद्रा वैश्विक विदेशी मुद्रा बाज़ार में व्यापार के लिए पूर्ण तौर पर इस्तेमाल हो। यह ऐसा होगा जैसे डॉलर की जगह युआन को वैश्विक मुद्रा के रूप में इस्तेमाल किया जाए। इसके लिए चीन अपनी अर्थव्यवस्था को सुधार रहा है।
2007 में फेडरल रिज़र्व के चेयरमैन एलेन ग्रीनस्पैन ने कहा था कि यूरो डॉलर की जगह ले सकता है। 2006 के अंत तक दुनिया भर के केंद्रीय बैंकों के कुल विदेशी मुद्रा भंडार में यूरो 25 प्रतिशत हो गया था जबकि डॉलर 66 प्रतिशत था। दुनिया के कई भागों में यूरो का प्रभुत्व भी है। यूरो इसलिए भी मज़बूत है क्योंकि यूरोपीय यूनियन दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से यह एक है। वैसे वैश्विक अर्थव्यवस्था में अधिकांशत: एक्सचेंज रेट तय करते समय डॉलर को बेस करंसी के तौर पर माना जाता है। एक्सचेंज रेट फ्लोटिंग या फिक्स्ड होते हैं। फ्लोटिंग एक्सचेंज का मतलब यह है कि करंसी का मूल्य बाज़ार के रुख पर तय हो रहा है और समय-समय पर इसमें उतार-चढ़ाव आता रहता है। कुछ देशों में सरकार एक्सचेंज रेट तय करती है जिसे फिक्स्ड एक्सचेंज रेट कहते हैं। उदाहरण के लिए सऊदी अरब की मुद्रा रियाल, जिसकी कीमत वहां की सरकार तय करती है। कुल मिला कर स्थिति यह है कि रुपये को मित्र देशों से व्यापार विनिमय मुद्रा बनाने के क्षेत्र में पड़ोसी देशों के अतिरिक्त अन्य कई देशों से संधि की बात चल रही है। जल्दी ही इसके सुखद परिणाम सामने आयेंगे। 

(युवराज)