‘आप’ को कांग्रेस का समर्थन मज़र्र्ी से या दबाव में ? 

कांग्रेस बुरी तरह से आम आदमी पार्टी (आप) के संयोजक अरविंद केजरीवाल के जाल में फंस गई है। अध्यादेश पर कांग्रेस ने ‘आप’ को समर्थन देने का फैसला कर लिया है। अगर ये फैसला उसने अपनी मज़र्ी से किया होता तो कोई बात नहीं थी लेकिन कांग्रेस का यह फैसला केजरीवाल की धमकी और दूसरे दलों के कुछ नेताओं के दबाव में लिया गया प्रतीत होता है। कांग्रेस पर शायद यह दबाव बनाया गया था कि वह अगर केजरीवाल का समर्थन नहीं करती है तो वह बेंगलुरु की बैठक में हिस्सा नहीं लेंगे। कांग्रेस ने अपने फैसले से केजरीवाल को बैठक में बुलाने में कामयाबी हासिल कर ली और केजरीवाल बड़ी खुशी-खुशी बैठक में आये और चले गये ।
 कर्नाटक कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं ने उनका स्वागत ज़ोरदार ढंग से किया लेकिन क्या इससे केजरीवाल कांग्रेस के दोस्त बन जायेंगे, यह सवाल कांग्रेस को खुद से पूछना चाहिये। वास्तव में केजरीवाल की राजनीति का चरित्र और क्षेत्र ऐसा है कि वो कांग्रेस के कभी दोस्त बन ही नहीं सकते। उन्हें गठबन्धन में शामिल करके कांग्रेस गठबन्धन की ताकत को बढ़ा सकती है लेकिन खुद को कमज़ोर कर देगी। इस सच्चाई को समझना है तो गुजरात, गोवा, पंजाब और दिल्ली की कांग्रेस इकाई के नेताओं की बातों को समझना होगा। वे लोग नहीं चाहते थे कि केजरीवाल के साथ किसी भी किस्म का समझौता कांग्रेस का केन्द्रीय नेतृत्व करे। उनके विरोध का कारण यह है कि पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल ने कांग्रेस से ही सत्ता छीनी है। केजरीवाल ने गुजरात और गोवा में कांग्रेस को बहुत नुकसान पहुंचाया है। उसके कारण ही कांग्रेस को गुजरात में ऐतिहासिक हार का सामना करना पड़ा। अगर केजरीवाल गोवा में अपने उम्मीदवार नहीं खड़े करते तो शायद कांग्रेस गोवा में सत्ता प्राप्त कर सकती थी। केजरीवाल इन राज्यों तक रुकने वाले नहीं हैं, वह दूसरे राज्यों में भी कांग्रेस के खिलाफ  चुनाव लड़ सकते हैं ।
अब सवाल उठता है कि फिर क्यों कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व ने केजरीवाल का समर्थन क्यों किया है? उक्त चार राज्यों के कांग्रेसी नेता नहीं चाहते हैं कि उनकी पार्टी अध्यादेश के मुद्दे पर केजरीवाल के साथ दिखाई दे। यह बात वे कांग्रेस के बड़े नेताओं से निजी तौर पर मिलकर कह चुके हैं। वास्तव में कांग्रेस हाईकमान ने उनसे इस सम्बन्ध में खुद सलाह मांगी थी लेकिन सवाल उठता है कि फिर क्यों उनकी राय को कांग्रेस हाईकमान ने अनदेखा कर दिया। हो सकता है कि पटना बैठक के बाद अध्यादेश के मुद्दे पर जिस तरह से केजरीवाल बिदक गये थे और अगली बैठक में आने से मना कर दिया था, उससे कांग्रेस पर भारी दबाव आ गया था कि उसके कारण गठबन्धन कमज़ोर हो सकता है । आम आदमी पार्टी को अब राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है और दो राज्यों में उसकी सरकार चल रही है । ऐसी पार्टी को गठबन्धन के नेता अपने से दूर नहीं करना चाहते, लेकिन सवाल उठता है कि गठबन्धन के लिये कांग्रेस अपने हितों की कुर्बानी कहां तक दे सकती है? अब किस मुंह से उसके नेता पंजाब और दिल्ली में केजरीवाल का विरोध करेंगे । देखा जाये तो आजकल दिल्ली और पंजाब में कांग्रेस आम आदमी पार्टी पर भाजपा से ज्यादा आक्रामक दिखाई दे रही है लेकिन अब यह आक्रमण कैसे होगा? अब इन दोनों राज्यों में कांग्रेस के नेताओं के आक्रमण पर उनका मज़ाक बनेगा। अगर केजरीवाल का साथ कांग्रेस के साथ बने रहते हैं तो दिल्ली और पंजाब से कांग्रेस खत्म हो सकती है। कांग्रेस के नेता भाजपा या ‘आप’ में जा सकते हैं क्योंकि अब इन दोनों राज्यों में कांग्रेस की राजनीति के लिये कहां जगह रह गई है? कांग्रेस को लगता है कि मोदी को हराने के लिये विपक्षी दलों का साथ ज़रूरी है, यह सही भी हो सकता है लेकिन जो कीमत विपक्षी दल कांग्रेस से मांग रहे हैं, क्या वह कीमत देकर कांग्रेस को विपक्षी एकता से कुछ भी फायदा हो सकता है। ऐसी गलती कई बार कांग्रेस कई राज्यो में कर चुकी है और आज भी उसकी कीमत चुका रही है। तो क्या फिर अपनी गलती दोहराने जा रही है कांग्रेस? यह उसे सोचना होगा। 
कांग्रेस भूल रही है कि आज केजरीवाल की पार्टी को जो राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा प्राप्त है, वह कांग्रेस के नुकसान की कीमत पर ही मिला है। मतलब साफ  है कि कांग्रेस ने ही इसकी कीमत चुकाई है। सवाल उठता है कि अध्यादेश के मुद्दे पर समर्थन कर देने से क्या केजरीवाल कांग्रेस का साथ दे देंगे? बिल्कुल नहीं, बल्कि वह चाहते हैं कि कांग्रेस पंजाब और दिल्ली से बाहर निकल जाये। अगर कांग्रेस यह भी मान लेती है तो वह कल गोवा और गुजरात के लिये भी ऐसा बोल सकते हैं। कांग्रेस कहां तक जायेगी, ये वह खुद तय कर ले।
अगर कांग्रेस केजरीवाल के साथ आगे बढ़ती है तो कांग्रेस की गोवा और गुजरात इकाई  में भी बगावत हो सकती है, पार्टी वहां टूट भी सकती है क्योंकि तब इन नेताओं के सामने भाजपा में जाने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। कांग्रेस को यह समझ नहीं आ रहा है कि अगर विपक्षी एकता की ज़रूरत कांग्रेस को है तो उससे कहीं ज्यादा ये ज़रूरत विपक्ष की दूसरी पार्टियों को है, क्योंकि उनका अस्तित्व ही खतरे में दिखाई दे रहा है। कांग्रेस को यह समझना होगा कि सिर्फ  केजरीवाल ही नहीं, और भी ऐसी पार्टियां हैं जो कांग्रेस को हटाकर खुद उसकी जगह लेना चाहती हैं। अगर कांग्रेस झुकती है तो दूसरी पार्टियां भी उसको झुकाने की कोशिश करेंगी, उसे ब्लैकमेल करने की कोशिश करेंगी। क्या अन्य विपक्षी दलों को सत्ता नहीं चाहिए,  क्या उनको मोदी को नहीं हराना है? जब मोदी सभी दलों के लिये खतरा बन चुके हैं तो गठबन्धन के लिये सिर्फ  कांग्रेस से कुर्बानी की उम्मीद कैसे सही हो सकती है?  (युवराज)