संवैधानिक रिश्तों में दरार

पंजाब में राज्यपालों एवं मुख्यमंत्रियों के संबंध अक्सर सुखद रहे हैं तथा संवैधानिक प्रक्रियाओं के अनुसरणीय भी रहे हैं। संविधान के अनुसार प्रदेश सरकारें चुनी जाती हैं तथा राष्ट्रपति द्वारा राज्यपालों की नियुक्ति की जाती है। प्रदेश को चलाने की कार्यकारी शक्तियां सरकार के पास होती हैं। उन पर सरसरी तौर पर राज्यपाल नज़र रखता है तथा इसीलिए प्रदेश सरकारों द्वारा बनाये गये कानूनों पर राज्यपाल के हस्ताक्षर होते हैं। राज्यपाल ही मुख्यमंत्री सहित मंत्रिमंडल को शपथ ग्रहण करवाता है। इसके साथ ही कुछ अन्य महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त होने वाले महानुभावों को भी शपथ राज्यपाल द्वारा ही ग्रहण करवाई जाती है। तत्कालीन सरकारों के समय कभी-कभार चलते कामकाज के सिलसिले में राज्यपालों के साथ कुछ किन्तु-परन्तु तो होता रहा है परन्तु इसने कभी गम्भीर टकराव वाला रवैया नहीं अपनाया। राज्यपाल श्री बनवारी लाल पुरोहित की नियुक्ति कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सरकार के समय हुई थी। उनके बाद कुछ समय के लिए चरणजीत सिंह चन्नी मुख्यमंत्री बने थे तथा अब आम आदमी पार्टी की सरकार को राज्यपाल श्री पुरोहित द्वारा पिछले वर्ष 16 मार्च को शपथ ग्रहण करवाई गई थी, परन्तु शुरू से ही मुख्यमंत्री भगवंत मान तथा राज्यपाल के संबंध सुखद नहीं रहे। बात यहां तक भी पहुंच गई थी कि मुख्यमंत्री के तन्ज़ कसने के बाद राज्यपाल ने आगे से सरकारी हैलीकाप्टर का उपयोग न करने की घोषणा कर दी थी। 
राज्यपाल को सरकारी प्रतिनिधिमंडलों के अलावा विपक्षी दलों के प्रतिनिधिमंडल भी समय लेकर मिलते रहते हैं तथा अपनी बात ज़ुबानी या लिखित रूप में उनसे करते हैं। इसके अलावा अनेकानेक अन्य संस्थाओं के प्रतिनिधिमंडल या व्यक्ति विशेष भी उन्हें मिलते रहते हैं। राज्यपाल अक्सर अथवा कभी-कभार इन सभी की भावनाएं सरकार के समक्ष पहुंचाते रहते हैं। प्रदेश के कुछ ज्वलंत मामलों संबंधी भी सरकार को अक्सर अपने प्रभाव बताते रहते हैं। इसी क्रम में ही विगत अवधि में श्री पुरोहित द्वारा कई सीमांत ज़िलों के दौरों को भी देखा जा सकता है। वहां जाने का उनका उद्देश्य प्रदेश में नशों के हो रहे प्रसार को जानने तथा भिन्न-भिन्न व्यक्तियों या संस्थाओं के साथ दरपेश इन समस्याओं संबंधी विचार-विमर्श करना भी था।
इन प्रभावों के संबंध में उन्होंने मुख्यमंत्री भगवंत मान को कुछ पत्र भी लिखे थे। इनमें से एक पत्र में उन्होंने एक मंत्री की सामने आई अश्लील वीडियो संबंधी अपनी प्रतिक्रिया भी व्यक्त की थी। एक पुलिस अधिकारी के कामकाज संबंधी भी उन्होंने उंगली उठाई थी तथा कुछ विश्वविद्यालयों के वाइस चांसलर नियुक्त करने के ढंग संबंधी भी उन्होंने अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। चाहिए तो यह था कि मुख्यमंत्री अपनी संवैधानिक परम्पराओं को बरकरार रखते हुये इन पत्रों का उत्तर देते तथा यदा-कदा राज्यपाल को मिल कर प्रदेश की समूची स्थिति के संबंध में उनके साथ विचार-विमर्श भी करते तथा उनकी राय भी लेते, परन्तु ऐसा करने की बजाय जिस तरह की बयानबाज़ी स. मान की ओर से विधानसभा में तथा सार्वजनिक समूहों में राज्यपाल के संबंध की गई, वह बड़ी सीमा तक आपत्तिजनक थी। इसी कारण राज्यपाल ने अपने ताज़ा पत्र में यह लिखा है कि ऐसी बयानबाज़ी मुख्यमंत्री के पद को शोभा नहीं देती तथा यह भी कि समय-समय पर राज्यपाल द्वारा लिखे गये पत्रों का जवाब देना मुख्यमंत्री की वैधानिक ज़िम्मेदारी है। क्योंकि इन पत्रों का जवाब देने के स्थान पर एक भरी सभा में मुख्यमंत्री ने इन पत्रों को राज्यपाल द्वारा लिखे गये ‘लव लैटर’ कहा था। इससे पहले भी कई बार राष्ट्रपति के चंडीगढ़ आगमन के अलावा कुछ अन्य बड़े समारोहों में मुख्यमंत्री की अनुपस्थिति सभी को खटकती ही नहीं रही, अपितु इसे उच्च पदों पर बैठे व्यक्तियों संबंधी उनके द्वारा दिखाई गई बेपरवाही और बेरुखी ही माना गया था। मौजूदा विवाद सरकार द्वारा बुलाए  गये 19-20 जून के विशेष सत्र संबंधी उभरा है, जिसको भगवंत मान ने ‘बजट सैशन’ का ही एक हिस्सा मानते हुए जल्दबाज़ी के साथ उसमें चार ऐसे बिल पास करवा लिए जो सदन में भी तथा बाहर भी हर तरह से और विस्तृत विचार-विमर्श की मांग करते थे। इनको लेकर राज्यपाल द्वारा यह ऐतराज प्रकट किया गया था कि ये बिल देश के स्थापित कानून के अनुसार पास नहीं किये गये और न ही यह दो दिनों का सत्र कानून और नियमों के अनुसार ही बुलाया गया था। पास हुए इन बिलों की वैधानिकता भी संदेह के घेरे में है।
राज्यपाल ने यह संकेत दिया था कि इस संबंधी भारत के अटार्नी जरनल से सुझाव लिया जा सकता है या इनको राष्ट्रपति के विचार एवं मंजूरी के लिए भेजा जा सकता है। इस बारे में सार्वजनिक तौर पर मुख्यमंत्री द्वारा यह कहना कि राज्यपाल को यह भी पता नहीं है कि दो दिवसीय सत्र कानूनी था या गैर-कानूनी, भी उचित नहीं था। इस पर तुरंत प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए श्री पुरोहित ने यह स्पष्ट किया कि उन्होंने इस संबंधी परिपक्व कानूनी राय ली है तथा उन्होंने यह भी कहा कि 19-20 जून को हुआ दो दिवसीय विशेष सत्र और इसके एजेंडे का बजट सत्र से कोई संबंध नहीं है, क्योंकि बजट सत्र के सूचिबद्ध हुए एजेंडा में से कुछ भी बचा नहीं था। राज्यपाल ने यह भी कहा कि ये बिल बिना गहन विचार-विमर्श और बिना राय लिए पास किए गये, जो अपने आप में बड़ी त्रुटि है। उन्होंने यह भी कहा कि उनके पत्रों द्वारा मांगी जानकारियां न देने को विधान की धारा 167 का बड़ा उल्लंघन कहा जा सकता है।
हम राज्य में पैदा हो रही इस स्थिति को संवैधानिक तौर पर बहुत हानिकारक समझते हैं। ऐसी स्थिति पंजाब को और बड़े नाज़ुक दौर की तरफ मोड़ सकती है। 

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द