मानव जीवन को बचाने के लिए प्रकृति को संरक्षण ज़रूरी

 

विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है। प्रकृति एवं पर्यावरण पर मंडरा रहे खतरे को देखते हुए एवं वर्तमान परिप्रेक्ष्य में कई प्रजाति के जीव-जंतु, प्राकृतिक स्रोत एवं वनस्पति विलुप्त होने के कारण इस दिवस की प्रासंगिकता बढ़ गयी है। लगातार विकराल एवं भीषण आकार ले रही गर्मी, सिकुड़ रहे जल स्रोत, विनाश की ओर धकेली जा रही पृथ्वी एवं प्रकृति के विनाश के प्रयास चिन्ता का विषय हैं। बढ़ती जनसंख्या, बढ़ता प्रदूषण, नष्ट होता पर्यावरण, दूषित गैसों से छिद्रित होती ओज़ोन परत, प्रकृति एवं पर्यावरण का अत्यधिक दोहन, ये सब पृथ्वी एवं पृथ्वीवासियों के लिए सबसे बड़े खतरे हैं और इन खतरों का अहसास करना ही विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस का ध्येय है। 
प्रति वर्ष धरती का तापमान बढ़ रहा है। आबादी बढ़ रही है, ज़मीन छोटी पड़ रही है। हर चीज़ की उपलब्धता कम हो रही है। आक्सीजन की कमी हो रही है। साथ ही साथ हमारा सुविधावादी नजरिया, तकनीकी विकास एवं जीवनशैली पर्यावरण एवं प्रकृति के लिये एक गंभीर खतरा बन रहे हैं। इतिहास में पहली बार यूरोप में भीषण गर्मी, लू चलने और धरती के दोनों ध्रुवों (अंटार्कटिक और आर्कटिक) पर एक साथ तापमान में असंतुलन पैदा होना कोई सामान्य घटना नहीं है। ये सब धरती के तापमान में असंतुलन और जलवायु परिवर्तन की वजह से हो रहा है, जिसका दायरा अब वैश्विक हो गया है। भले ही कोई इस विनाशकारी स्थिति को तात्कालिक घटना कह कर खारिज कर दे लेकिन जमीनी सच्चाई यह है की बड़े पैमाने पर ग्लेशियर्स का पिघलना और यूरोप में तापमान बहुत बड़े वैश्विक खतरें की आहट है, जिसको अनदेखा नहीं किया जा सकता है। कथित विकास की बेहोशी से दुनिया को जागना पड़ेगा।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ‘तीसरा ध्रुव’ कहे जानें वाले हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघल रहे हैं। ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, आज हिमालय से बर्फ  के पिघलने की गति ‘लिटल आइस एज’ के वक्त से औसतन 10 गुना ज्यादा है। लिटल आइस एज का काल 16वीं से 19वीं सदी के बीच का था। इस दौरान बड़े पहाड़ी ग्लेशियर का विस्तार हुआ था। वैज्ञानिकों की मानें, तो हिमालय के ग्लेशियर दूसरे ग्लेशियर के मुकाबले ज्यादा तेज़ी से पिघल रहे हैं। विशेषज्ञों के एक अनुमान के अनुसार अंटार्कटिका के ग्लेशियर के पूरी तरह से पिघलने पर पृथ्वी की ग्रेविटेशनल पावर शिफ्ट हो जाएगी। इससे पूरी दुनिया में भारी उथल-पुथल हो सकती है। पृथ्वी के सभी महाद्वीप आंशिक रूप से पानी के भीतर समाने का खतरा पैदा हो जाएगा। इसके साथ ही दुनिया भर में करोड़ों की संख्या में लोगों को एक जगह से दूसरी जगह पर जाना पड़ेगा। ग्लेशियर पिघलने का प्रभाव पृथ्वी की घूर्णन गति पर भी पड़ेगा। इससे पृथ्वी के दिन का समय थोड़ा ज्यादा बढ़ जाएगा। पीने लायक 69 प्रतिशत पानी ग्लेशियर के भीतर जमा हुआ है। उसके पिघलने पर यह शुद्ध पानी भी साल्ट वाटर में मिलकर पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा।
पिछले कुछ समय से दुनिया में पर्यावरण के विनाश एवं प्रकृति प्रदूषण को लेकर काफी चर्चा हो रही है। मानव की गतिविधियों के कारण पृथ्वी एवं वायुमंडल पर जो विषैले असर पड़ रहे हैं, उनसे राजनेता, वैज्ञानिक, धर्मगुरु और सामाजिक कार्यकर्ता भी चिंतित हैं। भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर्यावरण के खतरों के प्रति सावधान करते हुए विश्व मंचों पर जागरूकता का माहौल बना रहे हैं। चूंकि प्रकृति मनुष्य की हर ज़रूरत को पूरा करती है, इसलिए यह  हरेक व्यक्ति की ज़िम्मेदारी है कि वह प्रकृति की रक्षा के लिए अपनी ओर से भी कुछ प्रयास करे। जल, जंगल और ज़मीन इन तीन तत्वों से प्रकृति का निर्माण होता है। यदि ये तत्व न हों तो प्रकृति अधूरी है। विश्व में ज़्यादातर समृद्ध देश वही माने जाते हैं जहां इन तीनों तत्वों का बाहुल्य है। आधुनिकीकरण के इस दौर में इन संसाधनों का अंधाधुन्ध दोहन हो रहा है तो जिससे ये तत्व भी खतरे में पड़ गए हैं। पिछले दिनों पहाड़ों के शहर शिमला में पानी की भारी कमी आ गई थी। अनेक शहर पानी की कमी से परेशान हैं।  
विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस इस बात के लिए जागरूक करता है कि एक स्वस्थ पर्यावरण एक स्थिर और स्वस्थ मानव समाज की नींव है। विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस मनाने का उद्देश्य उन जानवरों और पेड़ों का संरक्षण करना है जो पृथ्वी के प्राकृतिक पर्यावरण से विलुप्त होने के कगार पर हैं। इसलिए, प्रकृति को संरक्षित करने की हर शख्स की ज़िम्मेदारी है। 
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