मुम्बई में कौन होगा ‘इंडिया’ गठबंधन का मेज़बान ?

भाजपा के खिलाफ  बने विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ की अगली बैठक की मुम्बई में होने वाली है। चूंकि 11 अगस्त तक संसद का सत्र है और उसके बाद सारे नेता अपने-अपने क्षेत्र में स्वतंत्रता दिवस के कार्यक्रमों में व्यस्त रहेंगे। सो, 15 अगस्त के बाद किसी दिन बैठक होगी। मुम्बई की बैठक को लेकर सबसे अहम सवाल यह है कि वहां बैठक की मेज़बानी कौन करेगा? पटना में 23 जून को पहली बैठक हुई थी, तब मुख्यमंत्री नितीश कुमार मेज़बान थे और उनकी ही अध्यक्षता में बैठक हुई थी। दूसरी बैठक कांग्रेस शासित कर्नाटक में हुई और कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे मेज़बान थे। उन्होंने बैठक की अध्यक्षता की थी। 
अब अगली बैठक मुम्बई में होने वाली है, जहां भाजपा, शिव सेना और एनसीपी का गठबंधन है। वहां बैठक की मेज़बानी और अध्यक्षता कौन करेगा? स्वाभाविक रूप से तो शरद पवार सबसे वरिष्ठ नेता हैं और इस नाते बैठक उनकी अध्यक्षता में ही होनी चाहिए, लेकिन अगर उनकी पार्टी को लेकर संशय बना रहा तब क्या होगा? उनके भतीजे अजित पवार एनसीपी के विधायकों को लेकर भाजपा-शिव सेना की सरकार में शामिल हो गए हैं। उसके बाद से वह लगातार शरद पवार से मिल भी रहे हैं। इसीलिए उनको लेकर संशय बना हुआ है। अगर यह संदेश बना रहता है कि उनकी सहमति से अजित पवार भाजपा सरकार के साथ है तो इससे पूरे गठबंधन पर सवाल उठेगा और अगर यह साबित होता है कि अजित पवार ने अपने दम पर पार्टी तोड़ी है तो शरद पवार की अथॉरिटी पर सवाल खड़ा होगा। इसीलिए मेजबानी और अध्यक्षता का सवाल अहम बना हुआ है। 
बैंकों को मज़बूत करने का नया तरीका
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले दिनों रोज़गार मेले में युवाओं को नियुक्ति बांटते हुए दावा किया कि उनकी सरकार में बैंकिंग सेक्टर में बहुत सुधार हुआ है। उन्होंने कहा कि दुनिया के सबसे मज़बूत बैंकिंग सेक्टर में अब भारत भी शामिल हो गया है। असल में प्रधानमंत्री के इस दावे की हकीकत यह है कि इस सरकार में बैंकिंग सिस्टम को मज़बूत करने का नया तरीका निकाला गया है। पहला तरीका तो यह है कि पिछले सारे बकाये को भूल जाओ। इस नीति के तहत सभी बैंकों ने बैड लोन को राइट ऑफ  कर दिया यानी बट्टे खाते में डाल दिया। सरकारी आंकड़े के मुताबिक वित्त वर्ष 2022-23 में 2.09 लाख करोड़ रुपये का कज़र् बट्टे खाते में डाला गया। अगर पिछले नौ साल की बात करें तो करीब 13.50 लाख करोड़ रुपये का कज़र् बट्टे खाते में डाल दिया गया। राइट ऑफ करने का मतलब कज़र् माफ  करना नहीं होता, लेकिन इसका अर्थ इसी से मिलता जुलता होता है। बैंक मान कर चलते हैं कि यह रकम डूब गई। इसीलिए ऐसे कज़र् की वसूली सिर्फ  18 फीसदी हो रही है यानी बट्टे खाते में डाले गए 82 फीसदी कज़र् डूब रहे हैं। इसके बाद दूसरा तरीका यह निकाला गया कि बैंकिंग की हर सेवा पर शुल्क लगा दिया जाए। पैसे जमा कराने से लेकर निकालने तक की सारी बैंकिंग सेवा पर शुल्क लगा दिया गया है, जिससे हज़ारों करोड़ रुपये बैंक आम ग्राहकों से वसूल रहे हैं। यहां तक कि खाते में न्यूनतम राशि नहीं रखने वालों से भी हज़ारों करोड़ रुपये वसूले गए हैं।
भाजपा-अकाली गठबंधन में बाधा 
शिरोमणि अकाली दल के राजग (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में शामिल होने को लेकर अभी संशय बना हुआ है। वह भाजपा का बहुत पुराना सहयोगी रहा है। नरेंद्र मोदी की दूसरी सरकार में भी अकाली दल से हरसिमरत कौर बादल मंत्री थीं, लेकिन तीन विवादित कृषि कानूनों के विरोध में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। पिछले कुछ समय से दोनों पार्टियों के फिर साथ आने की बात हो रही थी। खबर यह भी थी कि कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल हुए पार्टी के नए प्रदेश अध्यक्ष सुनील जाखड़ और पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के जरिए सीट बंटवारे पर बात हो रही है, लेकिन अब बताया जा रहा है कि अकाली दल के नेता नाराज़ हैं और बातचीत टूट गई है। असल में 20 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई राजग की बैठक में अकाली दल से अलग हुए गुट के नेता सुखदेव सिंह ढींडसा शामिल हुए थे। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने भाषण में उन्हें प्रकाश सिंह बादल की विरासत का असली उत्तराधिकारी बताया था। ढींडसा को इस तरह महत्व दिए जाने से सुखबीर सिंह बादल नाराज़ हैं। इस वजह से तालमेल की बात टूट गई है। हालांकि यह भी पूर्णविराम नहीं है। हो सकता है कि आने वाले दिनों में बातचीत फिर शुरू हो, क्योंकि दोनों पार्टियों को पता है कि अगर कांग्रेस और आम आदमी पार्टी में तालमेल होता है तो उन्हें रोकने के लिए दोनों के साथ मिल कर लड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा।
दिल्ली का मुख्यमंत्री और केंद्र सरकार 
किसी भी राज्य में जब कोई आपदा आती है तो उसकी जानकारी लेने के लिए वहां के मुख्यमंत्री को प्रधानमंत्री या गृह मंत्री की ओर से फोन किया जाता है, लेकिन दिल्ली में ऐसी स्थिति पैदा होने पर वहां के मुख्यमंत्री से प्रधानमंत्री या गृह मंत्री बात नहीं करते हैं। दिल्ली में चुनी हुई सरकार है और उसका चुना हुआ मुख्यमंत्री है, लेकिन उनके बजाय केंद्र सरकार उप-राज्यपाल से बात करती है। इसका मतलब है कि केंद्र सरकार का शीर्ष नेतृत्व दिल्ली के उप-राज्यपाल को ही सरकार मानने के कानून यानी जीएनसीटीडी एक्ट का शब्दश: पालन कर रहा है। दिल्ली की बाढ़ के मामले में यही देखने को मिला है।
 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विदेश यात्रा से लौटे तो उन्होंने उप-राज्यपाल विनय कुमार सक्सेना को फोन करके दिल्ली के हालात की जानकारी ली। फिर वापस दिल्ली में यमुना का पानी बढ़ने लगा तो गृह मंत्री अमित शाह ने दिल्ली के उप राज्यपाल को फोन करके हालात की जानकारी ली और राहत व बचाव के लिए तैयार रहने का निर्देश दिया। जिस दिन अमित शाह ने विनय सक्सेना से बात की उसी दिन उन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री भूपेंद्र पटेल से भी बात की क्योंकि वहां भी जूनागढ़ में बाढ़ आई है। इस तरह से मोदी और शाह ने साफ  कर दिया है कि वे केजरीवाल को दिल्ली का कुछ नहीं मानते हैं। अब यह देखना दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार मुख्यमंत्रियों की कोई बैठक बुलाती है तो उसमें केजरीवाल को बुलाती है या नहीं?