देश में बाघों का अमृतकाल, मध्य प्रदेश फिर बना ‘बाघ राज्य’

मध्य प्रदेश एक बार फिर ‘बाघ राज्य’ यानी टाइगर स्टेट के नाम से जाना जाएगा। यहां बाघों की जनसंख्या 526 से बढ़कर 785 पहुंच गई है। जो सभी प्रांतों में सबसे ज्यादा है। केन्द्रीय वन राज्य मंत्री अश्विनी चौबे ने अखिल भारतीय बाघ आकलन रिपोर्ट-2022 जारी कर राज्यवार और बाघ आरक्षित क्षेत्र वार बाघों की वर्तमान में मौजूद संख्या के आंकड़े जारी किए हैं। देश में अब बाघों की कुल संख्या 3682 हो गई है। इसके पहले कुल 3167 बाघ थे। हालांकि यह संख्या और ज्यादा हो सकती है, मध्यप्रदेश को छोड़ अन्य राज्यों में बाघों की गिनती केवल बाघ संरक्षण क्षेत्रों में की गई है, लेकिन मध्य प्रदेश में उन 25 क्षेत्रों में भी गणना की गई, जहां पहली बार बाघों की उपस्थिति का पता चला था। खुले जंगलों में घूम रहे इन बाघों की संख्या 335 दर्ज की गई है। 900 वर्ग किलोमीटर वनखंडों में फैले अकेले रातापानी अभ्यारण्य में 88 बाघ पाए गए हैं। बाघों की यह खुले वनों में मौजूदगी यह संकेत भी देती है बाघ परियोजनाओं के बिना भी बाघों की वंश वृद्धि संभव है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस दिनांक 29 जुलाई को जारी इन आंकड़ों से प्रसन्न मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि ‘बाघ का पुनर्स्थापन कठिन काम है। यह समाज के सहयोग के बिना संभव ही नहीं है। अत: हम सब भावी पीढ़ियों के लिए प्रकृति संरक्षण का एक बार फिर संकल्प लें’ बाघों की यह गिनती ‘कैमरा ट्रैपिंग’ पद्धति से की गई है। 2018 में पहली बार इस पद्धति की विलक्षण उपयोगिता 27,000 कैमरे लगाकर, साढ़े तीन करोड़ चित्र लेकर सामने आई थी। इस गणना को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड ने भी स्थान दिया था। यह दुर्लभ प्राणी एक समय लुप्त होने के कगार पर पहुंच गया था, तब 1 अप्रैल 1973 को प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने बाघ परियोजनाओं के जरिए बाघ संरक्षण के मजबूत उपाय किए थे।
विगत शताब्दी में जब बाघों की संख्या कम हो गई तब मध्य प्रदेश के कान्हा राष्ट्रीय उद्यान में पैरों के निशान के आधार पर बाघ गणना प्रणाली को शुरूआती मान्यता दी गई थी। ऐसा माना जाता है कि हर बाघ के पंजे का निशान अलग होता है और इन निशानों को एकत्र कर बाघों की संख्या का आकलन किया जा सकता है। कान्हा के पूर्व निदेशक एच.एस. पवार ने इसे एक वैज्ञानिक तकनीक माना था, लेकिन यह तकनीक उस समय मुश्किल में आ गई, जब ‘साइंस इन एशिया’ के मौजूदा निदेशक के उल्लास कारंत ने बेंग्लुरु की वन्य जीव सरंक्षण संस्था के लिए विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में बंधक बनाए गए बाघों के पंजों के निशान लिए और विशेषज्ञों से इनमें अंतर करने के लिए कहा। इसके बाद पंजों के निशान की तकनीक की कमजोरी उजागर हो गई और इसे नकार दिया गया।
इसके बाद ‘कैमरा ट्रैपिंग’ का एक नया तरीका पेश आया। जिसे कारंत की टीम ने शुरूआत में दक्षिण भारत में लागू किया। इसमें जंगली बाघों की तस्वीरें लेकर उनकी गणना की जाती थी। ऐसा माना गया कि प्रत्येक बाघ के शरीर पर धारियों का प्रारूप उसी तरह अलग-अलग है, जैसे इंसान की अंगुलियों के निशान अलग-अलग होते हैं। यह एक महंगी आकलन प्रणाली थी। पर यह बाघों के पैरों के निशान लेने की तकनीक से कहीं ज्यादा सटीक थी। इसके तहत कैप्चर और री-कैप्चर की तकनीकों वाले परिष्कृत सांख्यिकी उपकरणों और प्रारूप की पहचान करने वाले सॉफ्टवेयर का प्रयोग करके बाघों की विश्वसनीय संख्या का पता लगाने की शुरूआत हुई। इस तकनीक द्वारा गिनती सामने आने पर बाघों की संख्या नाटकीय ढंग से घट गई थी, जो अब बढ़ रही है।
बाघों की संख्या इसलिए बढ़ पाई इनकी बसाहट की बाधाएं दूर करने युद्ध स्तर पर प्रयास किए गए। मध्य प्रदेश में 2010 से 2022 के बीच बाघ संरक्षण क्षेत्र में आने वाले करीब 200 ग्रामों का विस्थापन किया गया। वनों से गांव हटे तो ग्रामों और खेतों की जमीन में घास के मैदान और तालाब विकसित किए गए, इससे हिरण शाकाहारी प्राणियों को अनुकूल प्राकृतिक आवास और वातावरण के साथ पर्याप्त आहार की आसान सुविधा भी मिल गई। बावजूद पर्यटन के लाभ के लिए उद्यानों एवं अभ्यारण्यों में बाघ देखने के लिए जो क्षेत्र विकसित किए गए हैं, उस कारण इन क्षेत्रों में पर्यटकों की आवाजाही बड़ी है, नतीजतन बाघ एकांत तलाशने के लिए अपने पारंपरिक रहवासी क्षेत्र छोड़ने को मजबूर होकर मानव बस्तियों में पहुंचकर बेमौत मर भी रहे हैं। इस बिंदु पर यदि गंभीरता से विचार हो जाता है तो मानव और बिल्ली प्रजाति के प्राणियों के बीच संघर्ष समाप्त होने की उम्मीद की जा सकती है।
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