अंतर्राष्ट्रीय डिजिटल भुगतान की दिशा में भारत के बढ़ते कदम

रुपये को डॉलर का प्रतिरूप बना कर विनिमय मुद्रा बनाने की ओर भारत लगातार अग्रसर है। डालर की निर्भरता को खत्म करने की तैयारी की शुरुआत में ही भारत जी-20 देशों और अपने प्रयासों के चलते अन्य संसाधनों के माध्यम से दुनिया के अस्सी प्रतिशत देशों को कमोवेश डिजिटल लेन-देन के लिए राज़ी कर चुका है। रूस और संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के साथ स्थानीय करंसी में व्यापार शुरू करने पर सहमति बन चुकी है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि भारत यूपीआई डिजिटल प्रणाली से भुगतान के लिए सिंगापुर, फ्रांस, जापान, ब्राज़ील और इंडोनेशिया समेत पड़ोसी देशों के अतिरिक्त कई अन्य देशों के साथ समझौता कर रहा है। इनके अतिरिक्त बहुत जल्द ही अमरीका और ऑस्ट्रेलिया में भी यूपीआई से भुगतान की सुविधा शुरू हो सकती है। उच्च कोटि के विशेषज्ञों के मुताबिक दोनों देशों में यूपीआई के चलन में आने पर दुनिया में मास्टरकार्ड और वीजा का दबदबा लगभग नहीं के बराबर रह जाएगा। घूमने जाने से लेकर इन देशों में खरीदारी करने के लिए डालर की आवश्यकता नहीं रहेगी, भारतीय मुद्रा रुपये में सारा लेन-देन तत्काल संभव हो सकेगा।
जल्दी ही रूस और यूएई के साथ इंडोनेशिया से भी स्थानीय करंसी में कारोबार शुरू हो सकता है। ऐसी पूरी सम्भावना मूर्त होने वाली है। अफ्रीका के कई देश भी रुपये में कारोबार के लिए अपनी दिलचस्पी दिखा चुके हैं। जी-20 देशों के बीच इस बात को लेकर लगभग आपसी सहमति बन चुकी है कि वर्ष 2027 तक अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में सिर्फ  एक घंटे का समय लगे। ऐसा तभी संभव है जब इन देशों की स्वयं अपनी डिजिटल करंसी हो और यूपीआई जैसी डिजिटल भुगतान प्रणाली भी हो। भारत इन दोनों पर ही काम कर रहा है और अन्य देशों का नेतृत्व करने के लिए तैयार है। अभी अंतर्राष्ट्रीय लेन-देन में कई घंटे लगते हैं और भौगोलिक समय में अंतर होने से कई बार इसमें एक दिन (चौबीस घंटे) तक का लम्बा समय लग जाता है। अंतर्राष्ट्रीय ट्रांजैक्शन के लिए सोसायटी फार वर्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशियल टेलीकम्युनिकेशन (स्विफ्ट) प्रणाली का इस्तेमाल होता है। स्विफ्ट लेन-देन के लिए वैश्विक प्रणाली में मैसेजिंग का काम करता है। 
उल्लेखनीय है कि भारत का रिज़र्व बैंक भी अपना त्रुटिहीन मैसेजिंग सिस्टम विकसित कर चुका है। डालर पर निर्भरता कम होने से अमरीका द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी आदि पर विदेशी निवेशकों के भारतीय बाज़ार से निकलने पर बाज़ार में मुद्रा की गिरावट जैसी घटनाएं अत्यल्प होंगी, लेन-देन लागत में भी कमी आएगी और दूसरे देशों के साथ कारोबार भी बढ़ेगा। अभी कई देश डालर के अभाव में चाह कर भी भारत से कारोबार नहीं कर पाते। स्विफ्ट में लेन-देन से भारत सीधे अपनी और उस देश की मुद्रा में व्यापार कर सकेगा। भारत की अपनी स्विफ्ट प्रणाली से लेन-देन शुल्क और अन्य व्ययों में भी आशातीत कमी होगी। इसके साथ ही भारत विदेशी पेट्रोलियम और पेट्रोलियम पदार्थों पर भी अपनी निर्भरता कम करने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वाहनों के साथ सोलर एनर्जी, बीस प्रतिशत ऐथेनाल समिश्रण और ग्रीन हाइड्रोजन जैसी ग्रीन एनर्जी को प्रोत्साहित कर रहा है। अगले कुछ सालों में वाहन ईंधन में एथेनाल के मिश्रण को पृथक करने का लक्ष्य रखा गया है। ग्रीन हाइड्रोजन पर लम्बी दूरी तक ट्रेन से लेकर ट्रक चलाने की तैयारी परीक्षण के दौर में चल रही है। दोपहिया वाहनों की कुल बिक्री में अगले तीस वर्षों में दो पहिया इलेक्ट्रिक वाहनों की हिस्सेदारी को तीस प्रतिशत तक ले आने का लक्ष्य रखा गया है। पेट्रोलियम पर निर्भरता कम होने से आयात व्यय में कमी आने के साथ भारत धन सम्पदा के मामले में आत्मनिर्भर बनेगा अभी आयात स्तर पर बीस प्रतिशत से अधिक हिस्सेदारी पेट्रोलियम पदार्थों की होती है। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि यूएई और उसके साथ रुपये में कारोबार शुरू करके डालर के प्रभाव को कम करने की शुरुआत तो कर दी गई है लेकिन अमरीकी मुद्रा पर इस सन्दर्भ में निर्भरता खत्म करने में दस से पन्द्रह साल लग सकते हैं। आइये जानते हैं कि यूपीआई है क्या?
यूनीफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (यूपीआई) एक स्मार्टफोन एप्लिकेशन है, जो उपयोगकर्ताओं को बैंक खातों के बीच धन हस्तांतरित करने की त्रुटिरहित प्रक्रिया प्रदान करता है। यह नेशनल पेमेंट्स कॉरपोरेशन ऑफ  इंडिया द्वारा विकसित एक सिंगल विंडो मोबाइल भुगतान प्रणाली है। यह हर बार ग्राहक द्वारा लेन-देन शुरू करने पर बैंक विवरण या अन्य संवेदनशील जानकारी दर्ज करने की आवश्यकता को भी समाप्त कर देता है। यूनीफाइड पेमेंट इंटरफेस एक ऐसा सिस्टम है जिससे तुरंत भुगतान होता है। इसकी मदद से मोबाइल प्लेटफॉर्म पर दो पक्ष एक-दूसरे को धन हस्तांतरित कर सकते हैं। इससे बैंक खाता जोड़ने के लिए यह ज़रूरी है कि आपके बैंक में यूपीआई की सुविधा हो।
वस्तुत: यूपीआई आईडी आपके बैंक खाते का पहचानकर्ता यूनिट है। इसकी मदद से आप सीधे अपने बैंक खाते से पैसे भेज सकते हैं और पा भी सकते हैं। जहां तक भारत की यूपीआई तकनीक का प्रश्न है, वह लगभग हर स्तर पर खरी उतरी है और उसे विभिन्न परीक्षणों के पश्चात त्रुटिहीनता का स्तर भी प्राप्त हो चुका है। अमरीकी प्रशासन और बैंकिंग सिस्टम तो भारत की यूपीआई प्रक्रिया से इतना अधिक प्रभावित है कि वह इस पर भारत से गहन विमर्श के लिए लालायित है। आगे जो भी कुछ हो आज स्थिति यह है कि विश्व के मुद्रा बाज़ार में भारतीय रुपया एक साख स्थापित कर चुका है और जल्द ही दुनिया के अधिकाधिक छोटे और कुछ बड़े देश भी सीधे रुपये की मुद्रा में भारत से व्यापार करने के नेटवर्क में शामिल हो सकते हैं। (युवराज)