चीन के इस्पात उत्पादन की तुलना में भारत 15 प्रतिशत नीचे

एक अरब टन से अधिक वार्षिक कच्चे इस्पात उत्पादन के साथ चीन दुनिया का सबसे बड़ा इस्पात निर्माता बन गया है और भारत में अपनी लौह धातुओं को लगातार डंप कर भारतीय इस्पात निर्माताओं को गहरे संकट में डाल दिया है। दरअसल 2030 तक अपनी उत्पादन क्षमता को 150 मिलियन टन के मौजूदा स्तर से दोगुना कर 300 मिलियन टन करने की भारत की कोशिश को वह कमजोर करना चाहता है। चीन भारत को पहले से कहीं ज्यादा स्टील निर्यात कर रहा है क्योंकि उसकी अपनी घरेलू मांग कम हो गयी है। सिकुड़ती निर्माण गतिविधियों और आर्थिक मंदी के कारण घरेलू इस्पात की मांग में गिरावट के साथ, चीन अपने ब्लास्ट फर्नेस को पूरी तरह से चार्ज रखने के लिए निर्यात पर जोर दे रहा है। कीमतों में छूट और युआन के कमजोर होने से चीन को अपने उद्देश्य हासिल करने में मदद मिल रही है। 
जनवरी के बाद से युआन में अमरीकी डॉलर के मुकाबले लगभग पांच प्रतिशत की गिरावट आयी है। भारत के अलावा, चीन अधिशेष इस्पात को उतारने के लिए अपने ओबीओआर (वन बेल्ट वन रोड) भागीदारों और एशिया और अफ्रीका में चीन की परियोजना सहायता प्राप्तकर्ताओं पर भी निर्भर है। भारत ने आवास, निर्माण और बुनियादी ढांचे की गतिविधियों और ऑटोमोबाइल उद्योग की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए अपने इस्पात उत्पादन को बढ़ाने के लिए एक मेगा योजना बनायी है। इसकी अर्थव्यवस्था अगले कई वर्षों तक वार्षिक छह प्रतिशत से ऊपर बढ़ने की उम्मीद है।  हालांकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा इस्पात उत्पादक है (पिछले वर्ष 128 मिलियन टन उत्पादन हुआ था), इसकी इस्पात निर्माण क्षमता और उत्पादन चीन के स्तर से काफी नीचे है।
भारत को अपने भविष्य के आर्थिक विकास लक्ष्यों को पूरा करने के लिए इस्पात, अलौह धातुओं, कोयले और बिजली के बड़े पैमाने पर उत्पादन की आवश्यकता होगी। भारत की प्रति व्यक्ति इस्पात खपत विश्व औसत 233 किलोग्राम के मुकाबले केवल 77 किलोग्राम है। पिछले 10 वर्षों में, भारत की प्रति व्यक्ति इस्पात खपत काफी बढ़ गयी है। आने वाले वर्षों में चीन की अपनी इस्पात खपत में कमी आना निश्चित है जैसा कि दुनिया के पूर्व शीर्ष तीन इस्पात उत्पादक देशों जैसे अमरीका, जापान और रूस में देखा गया था।
चीन अपनी घरेलू खपत में कमी की क्षतिपूर्ति करने के लिए निर्यात बढ़ाने की पूरी कोशिश कर रहा है। अपनी इस्पात मिलों को चलाने और नौकरियां बनाये रखने के लिए पर्याप्त कोशिशें की जा रही हैं। वह विलय और समामेलन के माध्यम से अपने इस्पात उद्योग का पुनर्गठन कर रहा है। इस साल चीन का स्टील निर्यात पिछले साल के 67.32 मिलियन टन के मुकाबले 77 मिलियन टन के शिपमेंट को आसानी से पार कर जाने की उम्मीद है। 
2017 में भारत सरकार ने 2030.31 तक प्रति व्यक्ति स्टील की खपत को 160 किलोग्राम तक बढ़ाने पर आधारित एक राष्ट्रीय इस्पात नीति (एनएसपी) का अनावरण किया था। गति-शक्ति मास्टर प्लान, विनिर्माण क्षेत्र के लिए ‘मेक-इन-इंडिया’ पहल, प्रधानमंत्री आवास योजना आदि के माध्यम से बुनियादी ढांचे के विकास पर सरकार का जोर देश की स्टील की मांग और खपत को गति प्रदान करने वाला है। एनएसपी की सफलता काफी हद तक लौह अयस्क, मैंगनीज, क्रोमियम, निकेल, कोयला, बिजली और परिवहन जैसे इनपुट की लागत को नियंत्रित करने जैसे कारकों पर निर्भर करेगी।
इस्पात मंत्रालय के पास आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय के साथ एक संयुक्त कार्य समूह है जिसमें आवास और निर्माण क्षेत्र में इस्पात के उपयोग को बढ़ावा देने के लिए भारतीय मानक ब्यूरो, केंद्रीय लोक निर्माण विभाग, आईआईटी और एनआईटी जैसे तकनीकी संस्थानों और उद्योगों के सदस्य हैं।  
भारत सरकार ने उत्पादन से संपृक्त प्रोत्साहन (पीएलआई) योजना के तहत विशेष इस्पात के उत्पादन के लिए लगभग 26 कंपनियों के 50 से अधिक आवेदन स्वीकार किये हैं। पीएलआई से वार्षिक विशेष इस्पात उत्पादन क्षमता को 26 मिलियन टन तक बढ़ाने और 30,000 करोड़ रुपये का निवेश उत्पन्न करने में मदद मिलने की उम्मीद है। सरकार ने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए 10 लाख करोड़ रुपये के विशाल पूंजीगत व्यय की भी घोषणा की है, जिससे सभी क्षेत्रों में निवेश के जबरदस्त अवसर खुले हैं। उदाहरण के लिए पिछले साल जून में भारत के इस्पात आयात में चीन की हिस्सेदारी 26.1 प्रतिशत थी। इस साल जून के दौरान यह आंकड़ा बढ़कर 37.1 प्रतिशत हो गया। चालू वित्त वर्ष के पहले दो महीनों में चीन से देश का तैयार इस्पात आयात छह साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। चीन भारत के लिए दूसरे सबसे बड़े इस्पात निर्यातक के रूप में उभरा, जिसने 0.2 मिलियन टन मिश्र धातु बेची, जो पिछले वर्ष की समान अवधि से 62 प्रतिशत अधिक है। 
कुल मिलाकर भारत निकट भविष्य में चीन के मौजूदा इस्पात उत्पादन स्तर तक नहीं पहुंच सकता है, भले ही देश की अर्थव्यवस्था वार्षिक छह प्रतिशत से अधिक बढ़ती हो। 2020 में विश्व उत्पादन में चीन की हिस्सेदारी 56.6 प्रतिशत थी। पिछले वर्ष इसकी हिस्सेदारी 54 प्रतिशत थी।
 दुनिया के अन्य प्रमुख इस्पात निर्माता हैं : अमरीका, जापान, रूस, दक्षिण कोरिया, तुर्की, जर्मनी और ब्राजील। ये सभी प्रति वर्ष 100 मिलियन टन से कम उत्पादन करते हैं। तीसरे स्थान पर रहे अमरीका ने 2022 में 94.7 मिलियन टन कच्चे इस्पात का उत्पादन किया था। जापान का उत्पादन 89.23 मिलियन टन, रूस का 71.5 मिलियन टन और ब्राजील का 37 मिलियन टन था। भारत की वर्तमान इस्पात नीति की सफलता काफी हद तक इस बात पर निर्भर करती है कि देश अपने बढ़ते इस्पात उद्योग को चीन के डंपिंग से कैसे बचाता है। (संवाद)