मानसून अधिवेशन की गहमा-गहमी

लोकसभा में विपक्ष द्वारा पेश किया गया अविश्वास प्रस्ताव असफल हो गया है। इस पर मतदान होने से पहले ही विपक्ष ने वाकआऊट कर दिया था परन्तु संसद का यह मानसून अधिवेशन इतिहास में विपक्षी पार्टियों तथा सत्तारूढ़ जनतांत्रिक गठबंधन, खास तौर पर भाजपा के बीच हुये बड़े टकराव के तौर पर जाना जायेगा। अधिवेशन शुरू होते ही विपक्षी पार्टियों ने इस बात पर विशेष रूप से ज़ोर देना शुरू कर दिया था कि लोकसभा तथा राज्यसभा में नियम 267 के तहत सभी कार्य रोक कर सिर्फ मणिपुर में पैदा हुए संकट पर चर्चा की जाये, परन्तु सत्तारूढ़ गठबंधन इसके लिए तैयार नहीं हुआ, जिस कारण कितने ही दिनों तक संसद के दोनों सदनों में ठीक ढंग से कामकाज नहीं हो सका। दोनों सदनों के कामकाज में विपक्षी पार्टियों के सांसदों ने लगातार अवरोध डाला तथा इस कारण दोनों सदनों की कार्रवाई बार-बार स्थगित होती रही। प्रधानमंत्री भी सदन में न आने के लिए अड़े रहे परन्तु इस सब कुछ के दौरान मोदी सरकार जो कुछ महत्त्वपूर्ण बिल पारित करवाना चाहती थी, वे बिल उसने अपने बहुमत के दम पर पारित करवा लिए चाहे उन पर विपक्ष के असहयोग के कारण खुल कर चर्चा नहीं हो सकी।
विपक्ष की स्थिति उस समय हास्यस्पद बन गई जब मोदी सरकार दिल्ली सेवा संबंधी बिल लोकसभा तथा राज्यसभा में लेकर आई। इस बिल के कारण विपक्ष के सांसदों को दोनों सदनों में पूरे समय के लिए उपस्थित होना पड़ा तथा दिल्ली सेवा बिल पर चर्चा में भी भाग लेना पड़ा। इसका कारण यह था कि विपक्षी पार्टियों ने दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी को यह विश्वास दिलाया था कि वे संसद के दोनों सदनों में इस बात का विरोध करेंगे, क्योंकि विपक्षी पार्टियां यह महसूस करती थीं कि यह बिल राज्यों के अधिकारों को कम करने वाला है तथा अधिकारियों के स्थानांतरण करने के अधिकार तक भी दिल्ली के चुने हुये मुख्यमंत्री को देने के स्थान पर अप्रत्यक्ष ढंग से दिल्ली के लैफ्टिनैंट गवर्नर को देने वाला है। विपक्षी पार्टियों के सभी यत्नों के बावजूद दोनों सदनों में यह बिल सत्तारूढ़ पार्टी पास करवाने में सफल हो गई। राज्यसभा में चाहे राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के सांसदों की संख्या कुछ कम थी परन्तु क्षेत्रीय पार्टियों वाई.आर.एस. कांग्रेस, बी.जी.डी. तथा तेलगू देशम पार्टी के सहयोग से यह बिल पारित हो गया, परन्तु इस सब कुछ के बावजूद दोनों सदनों में विपक्षी पार्टियों ने यह मांग जारी रखी कि प्रधानमंत्री संसद में उपस्थित होकर मणिपुर में चल रही हिंसा तथा महिलाओं के हो रहे अपमान पर बयान दें तथा सरकार इस संबंध में चर्चा करवाये। सत्तारूढ़ पार्टी ने मणिपुर संबंधी चर्चा करवाने के लिए सहमति तो दी परन्तु वह नियम 267 के तहत चर्चा करवाने के लिए तैयार नहीं हुई।
विपक्ष द्वारा प्रधानमंत्री को संसद में उपस्थित होकर मणिपुर संबंधी अपने विचार प्रकट करने के लिए विवश करने के इरादे से लोकसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाया गया। इस प्रस्ताव पर 8 से 10 अगस्तक पर भारी बहस हुई। इस बहस में भाग लेते हुए कांग्रेस के सांसद गौरव गोगोई ने बड़े अच्छे ढंग से मणिपुर तथा देश की अन्य समस्याओं संबंधी कांग्रेस तथा अन्य विपक्षी पार्टियों का पक्ष रखा। उसके बाद अन्य विपक्षी पार्टियों के कुछ नेताओं ने भी प्रभावशाली ढंग से श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार की विफलताएं गिनाईं। खास तौर पर उसकी साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की नीति की कड़ी आलोचना की। इस चर्चा में राहुल गांधी ने 9 अगस्त को भाग लिया, परन्तु वह प्रभावशाली ढंग से न तो देश की समस्याओं को हल करने में श्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार की असफलता के मुद्दे को पेश कर सके तथा न ही अच्छे ढंग से मणिपुर के संकट संबंधी अपना पक्ष रख सके। लोकसभा की सदस्यता पुन: बहाल होने के बाद लोकसभा के सदस्यों को भी तथा देश के लोगों को भी उनसे आशा थी कि वह अधिक परिपक्वता से तथा गम्भीरता के साथ देश के मामले लोकसभा में पेश करेंगे तथा मणिपुर  सहित अन्य मुद्दों पर सरकार की जवाबदेही करेंगे, परन्तु ऐसा नहीं हो सका। उनकी भाषा भी ऐसी रही जिसे स्तरीय या संजीदा नहीं कहा जा सकता। दूसरी ओर भाजपा के कई सांसद, विशेषकर गृह मंत्री अमित शाह अपना पक्ष बेहतर ढंग से रखने में सफल रहे। 
अविश्वास प्रस्ताव पर आरम्भ हुई इस चर्चा को 10 अगस्त अर्थात अंतिम दिन प्रधानमंत्री ने समेटते हुए और विपक्ष द्वारा उठाए गए मुद्दों के संबंध में अपना पक्ष रखते हुए काफी प्रभावशाली भाषण दिया। उन्होंने अपनी सरकार की उपलब्धियां भी गिनाईं। विपक्ष के अपने विचारों के अनुसार नकारात्मक रुख की भी चर्चा की और मणिपुर बारे भी विस्तार में अपना पक्ष रखा कि मणिपुर में जो संकट पैदा हुआ है, उसका शीघ्र ही समाधान कर लिया जाएगा और मणिपुर में एक बार फिर ्रखुशहाली व विकास की सूर्य चमकेगा। प्रधानमंत्री ने विपक्षी दलों विशेषकर कांग्रेस को लम्बे हाथों लेते हुए कहा कि यह परिवारवादी पार्टी है और देश की समस्याओं का समाधान करने के लिए गम्भीर नहीं है। मणिपुर सहित देश आज बहुत-सी समस्याओं के लिए यह ज़िम्मेदार है। उन्होंने यह भी कहा कि विपक्षी दलों की ओर से जो ‘इंडिया’ के नाम से गठबंधन बनाया गया है, यह ‘घमंडिया गठबंधन’ है। इससे वे लोगों को धोखा नहीं दे सकते। 2024 के चुनवों के बाद भी भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की सरकार बनेगी। उन्होंने यह भी कहा कि उनके सम्भावित तीसरे कार्यकाल मेें भारत विश्व की तीसरी आर्थिकता बन जाएगा। उन्होंने अंत में विपक्षी दलों को अपील की कि वे रचनात्मक रुख अपनाएं, देश के लोगों में अविश्वास पैदा न करें बल्कि देश तथा देश के लोगों की सामर्थ्य को समझें तथा रचनात्मक राजनीति करें।
संसद के मौजूदा मानसून अधिवेशन में सत्तारूढ़ पार्टी तथा विपक्षी पार्टियों की समूची कारगुज़ारी को देखते हुये तथा प्रधानमंत्री द्वारा विपक्षी पार्टियों द्वारा उठाये गये मुद्दों पर दिये गये जवाब  को देखते हुए हम इस परिणाम पर पहुंचते हैं कि चाहे विगत नौ वर्ष में अधिकतर पक्षों से श्री नरेन्द्र मोदी की सरकार असफल रही है। ़गरीबी तथा बेरोज़गारी देश में बढ़ी है। देश के आर्थिक तथा प्राकृतिक स्रोत सरकार की नीतियों के कारण कार्पोरेटों के हाथों में चले गये हैं। जन-साधारण के लिए रोज़गार के अवसर कम हुए हैं। देश में चल रहे साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति से देश के लोगों की आपसी सद्भावना को भी गहरा आघात पहुंचा है। देश एक प्रकार से बड़े टकराव की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है परन्तु इस सब कुछ के बावजूद विपक्षी पार्टी न तो संसद से बाहर तथा न ही संसद के भीतर सत्तारूढ़ पार्टी को प्रभावी ढंग से अभी तक जवाबदेह बना सकी है तथा न ही अपने प्रवचन को अच्छी तरह स्थापित करने में सफल हो रही है। यदि विपक्षी पार्टियां स्वयं को भाजपा तथा लोकतांत्रिक गठबंधन के विकल्प के रूप में पेश करना चाहती हैं तो उन्हें और अधिक तैयारी तथा और अधिक योजनाबंदी के साथ मैदान में उतरना पड़ेगा। तभी वे 2024 के लोकसभा चुनावों में कोई उपलब्धि हासिल कर सकेंगी। 
—बरजिन्दर सिंह हमदर्द