करतारपुर गलियारे की बरकतें

श्री गुरु नानक देव जी ने दक्षिण एशिया से मध्य पूर्व तक की उदासियों के रूप में यात्रा करके लगभग पांच सदियों पहले इस विशाल क्षेत्र के लोगों को प्रेम-मुहब्बत और भाईचारे का संदेश दिया था। उनकी इन उदासियों का लोगों के मन में पड़ा गहरा प्रभाव आज भी देखा जा सकता है। जिन स्थानों पर श्री गुरु नानक देव जी गए, लोगों से मिले, कुछ समय व्यतीत किया, उन स्थानों पर उनके श्रद्धालु एवं उन सिद्धांतों पर विश्वास रखने वाले लोग आज भी अपनी श्रद्धा व्यक्त करते हैं तथा उन्हें याद करते हैं।
श्री गुरु नानक देव जी ने अपने जीवन का आ़िखरी समय श्री करतारपुर साहिब (अब पाकिस्तान) में व्यतीत किया था। इस स्थान को गुरुद्वारा दरबारपुर साहिब, करतारपुर के रूप में जाना जाता है। इस स्थान पर गुरु साहिबान ने कृषि करके ‘किरत करन, वंड छकन’ एवं भाईचारे का संदेश दिया।
श्री गुरु नानक देव जी के श्रद्धालुओं की वर्षों से चली आ रही मांग को मुख्य रखते हुए भारत तथा पाकिस्तान की सरकारों ने गुरुद्वारा साहिब तक डेरा बाबा नानक से गलियारा बनाने की मांग मान ली थी तथा यह गलियारा श्री गुरु नानक देव जी के 550वें प्रकाशोत्सव पर 9 नवम्बर, 2019 को श्रद्धालुओं के लिए खोल दिया गया था। भारत की तरफ इसका उद्घाटन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी द्वारा किया गया था तथा पाकिस्तान की तरफ इसका उद्घाटन उस समय के प्रधानमंत्री जनाब इमरान खान द्वारा किया गया था। दोनों देशों के ़खराब चले आ रहे संबंधों के बावजूद यह गलियारा खुलना दोनों देशों के मध्य अमन एवं सद्भावना चाहने वाले लोगों तथा विशेष रूप से श्री गुरु नानक देव जी के श्रद्धालुओं के लिए एक बड़ी सकारात्मक घटना थी। जैसा सोचा गया था यात्रा संबंधी पासपोर्ट की शर्त और अन्य उलझनों के कारण, उतना समर्थन इस गलियारा द्वारा श्रद्धालुओं की यात्रा के रूप में अभी तक नहीं मिला, फिर भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु इस गलियारे का लाभ उठा रहे हैं तथा गुरुद्वारा दरबार साहिब में अपनी श्रद्धा के पुष्प अर्पित कर रहे हैं। यदि यात्रा के नियम कुछ सरल किए जाएं तो श्रद्धालुओं की संख्या में और भी भारी वृद्धि हो सकती है।
यह गलियारा खुलने से जो एक और बड़ी उपलब्धि हासिल हुई है, वह बहुमूल्य है। उसकी कोई कीमत नहीं लगाई जा सकती। वह है गुरुद्वारा करतारपुर साहिब में 1947 के बिछुड़े परिवारों का मिलना। हम जानते हैं कि 1947 के विभाजन ने भारत तथा पाकिस्तान के लोगों को गहरा सदमा पहुंचाया था तथा करोड़ों लोगों को अपने घर-परिवार छोड़ कर एक तरफ से दूसरी तरफ जाकर पुनर्वास करना पड़ा था। उस समय चली साम्प्रदायिक आंधी में 10 लाख लोग मारे गये थे तथा 80 हज़ार महिलाएं प्रताड़ित की गई थीं। उनमें से ज्यादातर की हत्या हुई तथा उनका अपमान भी हुआ। अधिकतर महिलाओं के उनकी इच्छा के विरुद्ध विवाह कर दिए गए। इनमें कुछ सैकड़ों महिलाओं की 1950 में हुए नेहरू-लियाकत अली समझौते के तहत वापसी भी हुई।
इस पूरे क्रियान्वयन के दौरान हज़ारों परिवारों के सदस्य एक दूसरे से बिछुड़ गए। अब करतारपुर गलियारा ऐसे बिछुड़े हुए परिवारों के सदस्यों को मिलाने में अहम भूमिका निभा रहा है। एक जानकारी के अनुसार अब तक 66 बिछुड़े हुए परिवारों के सदस्य 75 वर्ष बाद आपस में मिलने के समर्थ हो सके हैं। ताज़ा घटना गांव जस्सोवाल (लुधियाना) के गुरमेल सिंह ग्रेवाल की अपनी बहन सकीना बीबी को मिलने की है। जब ऐसे बिछुड़े सदस्य मिलते हैं तो उनके आंसू रोकने पर नहीं रुकते, वे एक-दूसरे को गले लगकर भावुक हो जाते हैं परन्तु उन्हें इस बात की खुशी भी होती है कि आखिर वह मिलने में सफल हुए। इस तरह करतारपुर गलियारा बिछुड़ों को मिलाने में अहम भूमिका निभा रहा है। इसके अलावा सोशल मीडिया द्वारा भारत तथा पाकिस्तान के लोग विशेष रूप से युवा जो दोनों देशों में प्यार तथा भाईचारा बढ़ाना चाहते हैं, उन्हें भी यहां मिलने का अवसर मिलता है। यह भी इस गलियारे का एक बहुत बड़ा लाभ हुआ है। नि:संदेह श्री गुरु नानक देव जी की प्यार एवं भाईचारे की विचारधारा को यह गलियारा तथा गुरुद्वारा करतारपुर साहिब आज भी आगे बढ़ा रहा है।
हम दोनों देशों की सरकारों को अपील करते हैं कि वे दोनों देशों के लोगों के बीच प्यार एवं सद्भावना को और आगे बढ़ाएं तथा इस माध्यम द्वारा दोनों देशों के संबंधों को बेहतर बनाने के लिए करतारपुर गलियारे द्वारा यात्रियों की संख्या बढ़ाने के लिए यात्रा के नियमों को और अधिक सरल बनाएं। इसका बहुत अच्छा तथा सकारात्मक प्रभाव इस क्षेत्र में पड़ेगा। यदि भारत सरकार पाकिस्तान के गुरु नानक नाम लेवा लोगों को इस गलियारे द्वारा डेरा बाबा नानक तक आने दे तो यह गलियारा द्विपक्षीय हो जाएगा तथा इससे श्रद्धालुओं की यात्रा को और भी अधिक प्रोत्साहन मिल सकता है। इससे करतारपुर तथा डेरा बाबा नानक के मध्य व्यापारिक गतिविधियां भी बढ़ सकती हैं। श्रद्धालु अपनी पसंद की वस्तुएं भी करतारपुर तथा डेरा बाबा नानक से खरीद सकते हैं। हम एक बार फिर करतारपुर गलियारे द्वारा बिछुड़े हुए परिवारों के मिलने पर दिल से खुशी व्यक्त करते हैं तथा इसके माध्यम से श्रद्धालुओं की यात्रा को और उत्साहित करने की दोनों सरकारों से मांग करते हैं।