पंचायती चुनावों की लोकतांत्रिक भावना


पंजाब सरकार द्वारा पंचायतों, ज़िला परिषदों तथा ब्लाक समितियों को लगभग 4 मास पहले ही भंग किये जाने का कई कारणों से एकदम विरोध हुआ है। इसका एक कारण इस समय गांवों के प्रबन्ध में अ़फसरशाही का पूरी तरह बोलबाला हो जाना माना जा रहा है। सरकार पंचायतें भंग करके अपने प्रत्यक्ष हस्तक्षेप से गांवों में लोगों को अपने पक्ष में भुगताने का यत्न करेगी। लगभग 13 हज़ार पंचायतों के ताना-बाना में नई सरकार का अधिक प्रभाव नहीं है। आगामी वर्ष लोकसभा के चुनाव भी आने वाले हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में यदि इस तरह से सरकार का प्रभाव बढ़ता है तो आने वाले चुनावों में इसका लाभ लिया जा सकेगा। दूसरी तरफ नगर निगमों के चुनाव विगत 8 मास से नहीं करवाये जा रहे तथा उनके स्थान पर पंचायती चुनाव पहले करवाने की घोषणा कर दी गई है। जब से नई सरकार ने सत्ता सम्भाली है, तभी से कुछ एक को छोड़ कर प्रदेश के ज्यादातर गांवों में विकास के लिए ग्रांटें नहीं भेजी गईं।
चाहे इस संबंध में लगातार मांग भी होती रही तथा सरकार की आलोचना भी होती रही है। यदि विकास के कुछेक काम चलते भी रहे तो वह सक्रियता भी केवल केन्द्र सरकार की योजनाओं द्वारा आये फंडों के कारण ही बनी रही है। विगत कुछ सप्ताह से इस बात की चर्चा बड़े ज़ोरों पर थी कि सरकार अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए ये चुनाव शीघ्र करवाना चाहती है। विगत दिवस पंचायती संस्थाओं से संबंधित ज़िला अमृतसर में प्रदेश भर से पहुंचे ज़िला प्रधानों, ब्लाक प्रधानों तथा चुनिंदा सरपंचों ने एकजुट होकर यह आवाज़ उठाई थी कि समय से पहले ऐसे चुनाव नहीं करवाये जाने चाहिएं। उन्होंने यह भी आरोप लगाया था कि सरकारी पक्ष के कर्मचारी तथा प्रतिनिधि गांवों में चल रहे विकास कार्यों में अवरोध पैदा कर रहे हैं। उन्होंने इसके लिए उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाने की भी बात की थी। पंजाब में 13 हज़ार से अधिक पंचायतें हैं। 150 से अधिक ब्लाक समितियां हैं तथा दो दर्जन के लगभग ज़िला परिषदें हैं। सरकार के बनते ही जो पहली ग्रांटें गांवों में आई थीं, उन्हें एकदम रोकने तथा पैसा वापिस करने के कड़े आदेश दे दिये गये थे। विगत लगभग डेढ़ वर्ष से ज्यादातर गांवों के विकास कार्य बड़ी सीमा तक ठप्प ही पड़े हैं। अब पंचायतें भंग किये जाने से काम एकदम रुक गया है। जो कार्य चल रहे थे, उनके लिए भारी रुकावटें पैदा हो जाएंगी। विगत लम्बी अवधि से सरपंचों को मान भत्ता नहीं दिया गया। कई पंचायतों ने किये गये कार्यों की अदायगी भी करनी है। इसके अलावा बहुत-सी फर्मों तथा दुकानदारों ने सरपंचों से किये गये कार्यों की अदायगी भी लेनी है। अब चार माह के समय में गांवों में चुनावों को लेकर खींचतान बढ़ती दिखाई देगी, जिससे माहौल के खराब होने की सम्भावनाएं बनेंगी। क्या नये लगाये गये अधिकारी पिछली अदायगियां कर सकेंगे क्योंकि अब तो क्षेत्र के विधायकों ने संबंधित अधिकारियों, पंचायत सचिवों को एक तरह से ये सन्देश भेज दिये हैं कि भविष्य में कोई भी अदायगी न की जाये।
गत वर्ष मार्च मास में आम आदमी पार्टी की सरकार बनी थी। उस समस से ही ज्यादातर गांवों को ग्रांटें न मिलने के कारण विकास कार्य पूरी तरह ठप्प हो गये थे। गांवों की गलियों, नालियों, लाइटों, स्कूलों, डिस्पैंसरियों तथा धर्मशालाओं आदि के कार्य अभी तक बंद पड़े हैं। कुछ गांवों में केन्द्रीय योजनाओं द्वारा आई ग्रांटों से कुछ कार्य चल रहे हैं। पंच/सरपंच कहते रहे हैं कि इतना समय काम ठप्प होने के लिए वे लोगों के प्रति उत्तरदायी हैं। आगामी दिनों में इस मामले पर सरकार द्वारा किये जाने वाले प्रत्यक्ष हस्तक्षेप  से अनेक और आशंकाएं पैदा हो गई हैं। पूर्व सरकारें भी इन चुनावों में किसी न किसी तरह अपने प्रभाव का इस्तेमाल करती रही हैं। ऐसी प्रथा देश में निचले स्तर से विकास में जन-साधारण की भागीदारी बढ़ाने की संविधान की भावना के विपरीत कही जा सकती है तथा यह निचले स्तर तक लोगों में दरार डालने का कारण भी बनती जा रही है।

—बरजिन्दर सिंह हमदर्द