क्यों नहीं रुक रहा राजनीति का अपराधीकरण ?

उसका घर जला दिया गया था। भीड़ से बचने के लिए इस 37 वर्षीय महिला ने अपने दोनों छोटे बेटों को गोद में उठाया और भागने लगी, लेकिन इस स्थिति में वह कितनी दूर तक भाग सकती थी। भीड़ के कुछ लोगों ने उसे दबोच लिया और उसके साथ सामूहिक दुष्कर्म किया। उसके साथ ज़ुल्म हुआ, अपराध हुआ ...लेकिन इस दुष्कर्म के बाद भी वह तीन माह से अधिक समय तक खामोश रही। औरत होने की यह भी सज़ा है कि पीड़िता होने के बावजूद सामाजिक बहिष्कार की तलवार उसके सिर पर ही लटकी रहती है और उस पर ही अपने परिवार की ‘इज़्ज़त’ बचाए रखने की ज़िम्मेदारी होती है। बहरहाल, यातना व पीड़ा को वह कब तक बर्दाश्त कर सकती थी, कब तक इस बोझ को साथ लिए जी सकती थी, जब उसकी खुद की कोई गलती ही नहीं थी? आखिर उसके सब्र का बांध टूट गया। उसने 9 अगस्त, 2023 को बिश्नुपुर (मणिपुर) के महिला पुलिस स्टेशन में ज़ीरो एफआईआर दर्ज करायी और उस भयावह घटना को बयान किया जो उसके साथ 3 मई, 2023 को हुई थी। अधिकार क्षेत्र से बाहर वाले पुलिस थाने में दर्ज करवाई गई रिपोर्ट को ज़ीरो एफआईआर कहते हैं।
हालांकि यह घटना देशज हिंसा ग्रस्त मणिपुर की है, लेकिन अगर आप अ़खबार पढ़ेंगे तो आपको देशभर में महिलाओं के विरुद्ध यौन हिंसा व उत्पीड़न की खबरें प्रतिदिन पढ़ने को मिल जायेंगी। इसका अर्थ यह है कि ‘बेटी पढ़ाओ, बेटी बचाओ’ मात्र एक खोखला नारा साबित हो रहा है, ज़मीनी ह़क़ीकत बहुत कड़वी है। ऐसा क्यों है? अगर रक्षक ही भक्षक बनने लगें तो लड़कियां व महिलाएं सुरक्षित कैसे रहेंगी? यह एक चिंताजनक तस्वीर है कि कथित स्वयंभू धर्मगुरु व कई राजनेता हत्या व दुष्कर्म के दोषी पाए गये हैं और अब जेल में हैं। दुष्कर्म के दोषियों को नियमों का उल्लंघन करके पैरोल दे दी जाती है, सज़ा की अवधि पूरी होने से पहले न केवल उन्हें रिहा कर दिया जाता है बल्कि चुनावी फायदे के लिए उनका सार्वजनिक स्वागत किया जाता है।
बहरहाल,अब एक अन्य चिंताजनक डाटा सामने आया है, उसके अनुसार वर्तमान में जो सांसद व विधायक हैं, उनमें से 134 सांसदों व विधायकों पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने संबंधी केस दर्ज हैं। इन 134 में से 21 सांसद हैं और 113 विधायक हैं। 10 अगस्त, 2023 को जारी की गई रिपोर्ट के अनुसार सात भाजपा सदस्यों के विरुद्ध दुष्कर्म के आरोप हैं, जोकि किसी भी पार्टी के लिए सबसे ज्यादा हैं। एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और नेशनल इलेक्शन वाच (एनईडब्ल्यू) ने अपनी इस रिपोर्ट के लिए 762 वर्तमान सांसदों और 4,001 वर्तमान विधायकों की समीक्षा की और पाया कि इनमें से 134 सांसदों या विधायकों ने माना है कि उन पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने संबंधी केस दर्ज हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि विभिन्न दलों में भाजपा के सबसे ज्यादा 44 वर्तमान सांसद या विधायक हैं जिन पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने के मामले दर्ज हैं। दूसरे नम्बर पर कांग्रेस है, जिसके 25 सदस्यों पर यह केस हैं और तीसरे स्थान पर ‘आप’ है, जिसके 13 सांसदों या विधायकों ने कहा है कि उन पर महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने के संदर्भ में केस दर्ज हैं।
इस रिपोर्ट के अनुसार जिन 134 वर्तमान सांसदों व विधायकों ने अपने ऊपर महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने के मामले दर्ज होना स्वीकार किये हैं, उनमें से 18 सांसद व विधायक ऐसे हैं जिनके खिलाफ  दुष्कर्म करने के केस पंजीकृत हैं। इन 18 में से चार वर्तमान सांसद हैं और 14 वर्तमान विधायक हैं। भाजपा के 7 और कांग्रेस के 6 सांसद व विधायक दुष्कर्म (आईपीसी धारा 376) के आरोपों का सामना कर रहे हैं। इन 18 सदस्यों से जो अलग 116 सदस्य हैं, उन पर भी कम गंभीर आरोप नहीं हैं। इन पर असाल्ट या महिला की इज़्ज़त भंग करने के इरादे से अपराधिक बल का प्रयोग (आईपीसी धारा 354), अपहरण, महिला से जबरन विवाह करने हेतु अगवा (आईपीसी धारा 366), पति या पति के रिश्तेदार द्वारा महिला के विरुद्ध क्रूरता (आईपीसी धारा 498ए), नाबालिग लड़की को वेश्यावृत्ति के लिए खरीदना (आईपीसी धारा 373), और शब्दों, इशारों या हरकत से महिला के सम्मान को ठेस पहुंचाने का इरादा (आईपीसी धारा 509) जैसे गंभीर आरोप हैं। अगर राज्यों के आईने से देखें तो महिलाओं के विरुद्ध अपराध करने के मामले में सबसे ज्यादा आरोपी सांसद व विधायक पश्चिम बंगाल (26) से हैं। इसके बाद नम्बर महाराष्ट्र (14) व ओडिशा (14) का है। जबकि एक एक केस के साथ राजस्थान, मणिपुर, हिमाचल प्रदेश व अरुणाचल प्रदेश अंतिम पायदान पर हैं। 
यहां यह बताना आवश्यक है कि उक्त डाटा केवल महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के संदर्भ में है। अगर अन्य अपराधों की भी समीक्षा की जाये तो गिनती के ही सांसद व विधायक दूध के धुले निकलेंगे। इसलिए सवाल यह है कि राजनीति का अपराधीकरण क्यों नहीं रुक रहा है? गौरतलब है कि मार्च 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि राजनीतिक नेताओं के खिलाफ  जो विभन्न अदालतों में आपराधिक मुकद्दमें चल रहे हैं, उनका निपटारा एक वर्ष के भीतर हो जाना चाहिए। यह निर्णय राजनीति के अपराधीकरण पर अंकुश लगाने के लिए ऐतिहासिक व महत्वपूर्ण माना गया, लेकिन इस पर अमल न हो सका। हालांकि 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने नेताओं के विरुद्ध दायर किये गये  मुकद्दमों का स्टेटस मांगा था और केंद्र सरकार से कहा था कि वह नेताओं पर चल रहे आपराधिक मुकद्दमों को जल्द निपटाने के लिए विशेष अदालतें गठित करे, लेकिन अभी तक कुछ हुआ नहीं है, क्यों? अगर सांसद बृजभूषण शरण सिंह के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए भी ओलम्पिक पदक विजेताओं व अंतर्राष्ट्रीय स्तर की महिला पहलवानों को देश की राजधानी में धरना देना पड़े और सुप्रीम कोर्ट में जाना पड़े तो इसका सीधा अर्थ यह है कि देश की वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था ही अपराध मुक्त नहीं होना चाहती है।
राजनीति का अपराधीकरण एक बड़ी व गम्भीर समस्या है। जनता को जिन अपराधियों से मुक्ति चाहिए होती है, वे ही उसके प्रतिनिधि बन बैठते हैं, जिससे न अपराधों पर अंकुश लग पाता है और न ही भ्रष्टाचार पर। एक स्वच्छ व प्रगतिशील समाज के लिए बेदाग, शिक्षित, आधुनिक व दूरंदेश प्रतिनिधियों की आवश्यकता होती है, जो खुले ज़हन के भी हों। लेकिन तथ्य यह है कि इस मुद्दे पर देश की राजनीतिक पार्टियों से अधिक स्वतंत्र संस्थाओं—जैसे सुप्रीम कोर्ट व चुनाव आयोग को ही चिंता होती है। जब तक राजनीतिक पार्टियां इस मामले में दिलचस्पी नहीं लेंगी व दागियों को चुनावों में टिकट देना बंद नहीं करेंगी, तब तक अपराध व भ्रष्टाचार पर अंकुश लगना  कठिन है।-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर