सेल्फ गोल साबित हुआ विपक्ष का अविश्वास प्रस्ताव  

 

 

विपक्ष द्वारा मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने पर मैंने एक लेख ‘मोदी की मुंह-मांगी मुराद है अविश्वास प्रस्ताव’ शीर्षक से लिखा था। मोदी जी ने भाषण की शुरुआत में ही कह दिया था कि भगवान ने विपक्ष को समझ दी कि वो यह प्रस्ताव उनकी सरकार के खिलाफ लाया और मेरी इच्छा पूरी की। सिर्फ एक जिद्द पूरी करने के लिये विपक्ष ने यह आत्मघाती कदम उठाया था। वो अच्छी तरह जानता था कि उसके पास संख्याबल सरकार के मुकाबले बहुत कम है। इसके बावजूद मोदी सरकार को घेरने के लिये यह प्रस्ताव लाया गया। जैसा कि मोदी जी ने कहा कि यह प्रस्ताव लाने से पहले विपक्ष को तैयारी तो अच्छी तरह करनी चाहिये थी लेकिन उसने नहीं की। उन्होंने विपक्ष पर तन्ज़ कसा कि वो 2028 में अच्छी तैयारी के साथ उनके खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लेकर आये। उन्होंने इस तन्ज़ की आड़ में जनता को संदेश दे दिया कि वो ही 2024 में दोबारा सत्ता में आने वाले हैं। 
मेरा अनुमान था कि यह प्रस्ताव विपक्ष के लिये बुरा साबित होगा लेकिन विपक्ष के रवैये के कारण यह प्रस्ताव मेरी अपेक्षा से कहीं ज्यादा बुरा साबित हुआ। अपना पूरा जोर लगाने के बावजूद विपक्ष मोदी सरकार पर बड़ा आक्रमण नहीं कर पाया। वो मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करना चाहता था लेकिन उसके पास तथ्यों और तर्कों की कमी स्पष्ट रूप से दिखाई दी। मोदी के आक्रमण की पीड़ा से विचलित विपक्ष सदन छोड़कर भाग गया। जो विपक्ष मोदी को सदन में खींचकर लाने का दम भर रहा था, जब मोदी सदन में भाषण देने आये तो वो उन्हें पूरी तरह सुन भी नहीं पाया। सिर्फ आरोप लगाने से किसी सरकार को चोट नहीं पहुंचायी जा सकती। आपके आरोप तब सरकार को चोट पहुंचाते हैं, जब उनका साथ देने के लिये तथ्य और तर्क आपके पास हों। 
राहुल गांधी बहुत जोरदार हमला करते हैं लेकिन उनके सारे हमले हवा-हवाई होते हैं। उनके भाषणों में तथ्यों और तर्कों को ढूंढना टेढ़ी खीर होता है। वो एक ऐसे बादल हैं, जो बहुत जोरदार गरज के साथ बरसते हैं लेकिन उनके जाते ही जमीन का सूखापन सबकी नज़र में आ जाता है। उन्होंने अपने भाषण का काफी समय भारत जोड़ो यात्रा और घुटनों के दर्द के बखान में गंवा दिया। उनके जाने के बाद उनके भाषण की चर्चा कम हुई, लेकिन उनकी फ्लाईंग किस की चर्चा अभी तक हो रही है। पिछली बार उनकी आंख मारने की चर्चा चली थी। लोकसभा की सदस्यता वापिस मिलने पर मोदी सरकार के विरुद्ध सबसे बड़ा हमला करने की उम्मीद राहुल गांधी से ही थी लेकिन वो उम्मीद पूरी नहीं हुई।
लोकसभा में कांग्रेस और विपक्ष के पास अच्छे वक्ताओं की कमी है और वो इस प्रस्ताव की बहस में पूरे देश ने देख ली। कांग्रेस के लोकसभा में नेता अधीर रंजन चौधरी को बोलने का मौका ही कांग्रेस ने नहीं दिया। इस पर पहले अमित शाह और फिर मोदी जी ने तन्ज कसा। जब उन्हें मौका मिला भी तो उन्होंने साबित कर दिया कि क्यों कांग्रेस ने उन्हें बोलने नहीं दिया था। विपक्ष के दूसरे नेता अपने-अपने राज्यों की बात ही करते रहे लेकिन मणिपुर मुद्दे पर अविश्वास प्रस्ताव लाया गया है, उन्हें इसका अहसास ही नहीं रहा। पूरी बहस में विपक्ष बिखरा हुआ नज़र आ रहा था। ऐसा कहीं से नहीं लगा कि वो एक रणनीति बनाकर मोदी सरकार को घेरने के लिये आये हैं। जिसकी जो मर्जी थी, वो बोलकर चला गया। मैंने अपने लेख में कहा था कि इस बहस में मणिपुर मुद्दा कहीं खो जायेगा और वही हुआ। विपक्ष खुद को इस मुद्दे पर केन्द्रित नहीं कर पाया। अमित शाह ने मणिपुर समस्या को इतने विस्तार से सदन के सामने रखा कि विपक्ष के सवाल ही खत्म हो गये। जैसा कि उम्मीद थी, भाजपा के सांसदों ने अपनी सरकार की उपलब्धियों का जमकर बखान किया। एनडीए के वक्ताओं ने मणिपुर मुद्दे के लिये भी कांग्रेस को ही दोषी करार दिया क्योंकि यह समस्या उनके ही शासनकाल से चली आ रही है और कांग्रेस चुपचाप सुनती रही। राजग के सांसदों ने राजस्थान, बिहार, बंगाल, दिल्ली और कई राज्यों की समस्याओं को उठाकर विपक्ष को ही घेरने की कोशिश की। देखा जाये तो विपक्ष प्रस्ताव तो लाया था मोदी सरकार को घेरने के लिये लेकिन वो खुद ही घिरता हुआ दिखाई दिया। 
विपक्ष ने मंच सजाकर भाजपा को दिया और भाजपा ने इसका पूरा फायदा उठाया। मोदी जी ने इस पर विपक्ष पर तन्ज़ कसा कि फील्ंिडग तो आपने अवश्य सजाई लेकिन हमारे लोग चौके छक्के मारते गये। वैसे मोदी जी ने आते ही बोल दिया था कि विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव लाकर उनकी इच्छा पूरी कर दी है और उन्होंने विपक्ष द्वारा दिये गये अवसर का भरपूर फायदा उठाते हुए दो घंटे तक विपक्ष पर जमकर प्रहार किया। उन्होंने संसद में पहली बार केजरीवाल पर हमला करते हुए उसे कट्टर भ्रष्ट करार दिया और विपक्ष पर उनका साथ देने पर कटाक्ष किया। मोदी ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए न केवल अपने साथी दलों को साधा बल्कि विपक्षी दलों के गठबंधन पर भी जमकर प्रहार किया। उन्होंने कांग्रेस के शासन में हुए एक-एक भ्रष्टाचार को गिनाया और अपने सांसदों से नारा लगवाया। मणिपुर मुद्दे पर उन्होंने तब तक कोई बात नहीं की, जब तक कि विपक्ष वॉक आऊट करके बाहर नहीं चला गया। एक तरह से उन्होंने भी अपनी जिद्द पूरी कर ली और उनके जाने के बाद उन्होंने मणिपुर पर अपनी बात रखी। 
मेरा मानना है कि विपक्ष को यह अविश्वास प्रस्ताव लाना भारी पड़ा है। उसे मणिपुर मुद्दे पर बहस चाहिये थी तो उसके लिये सरकार तैयार थी। उसने ही नियमों की आड़ में इस बहस को होने से रोक रखा था। जनता को यह संदेश देने में भाजपा सफल रही है कि वो तो मणिपुर मुद्दे पर बहस को तैयार थी लेकिन विपक्ष ही बहानेबाजी में लगा हुआ था। अमित शाह का यह कहना कि मैं तो कब से मणिपुर मुद्दे पर बोलना चाहता था लेकिन मुझे बोलने का अवसर ही नहीं दिया गया। देखा जाये तो उन्होंने यह बात विपक्ष को नहीं बल्कि देश की जनता को कही है। मोदी और अमित शाह ने इस प्रस्ताव पर बोलते हुए लगातार कहा कि विपक्ष को सरकार पर विश्वास नहीं है लेकिन जनता को विश्वास है। अमित शाह तो यह बात बार-बार दोहराते रहे। मेरा मानना है कि विपक्ष के दिये गये अवसर का पूरा फायदा मोदी और अमित शाह ने उठाया और जो विपक्ष उनको घेरने के लिये आया था, उसे ही वो कठघरे में खड़ा करके चले गये। वर्तमान में भाजपा नेतृत्व से लड़ने के लिये विपक्ष को अपनी रणनीति बहुत सोच समझकर बनानी होगी। ऐसी गलतियाँ दोहराने से बचना होगा।