अमृत काल में कहां खड़ी है हमारी पंचायती राज प्रणाली

गांव की सरकार की यदि बात करें तो हमारा तात्पर्य पंचायती राज प्रणाली से है। 15 अगस्त को भारत अपना स्वतंत्रता दिवस मनाया। यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी या सत्तारूढ़ गठबंधन की भाषा में कहें तो वर्तमान युग देश का अमृत काल है। ऐसे में राष्ट्र जीवन के विभिन्न आयामों के मानदंड की चर्चा ज़रूरी हो जाती है। सामरिक तौर पर भारत बेहद मज़बूत राष्ट्र है। हमारे वैज्ञानिक अंतरिक्ष में नित नए ऊंचाइयों को छू रहे हैं। आंकड़ों में हमें बताया जा रहा है कि हम दुनिया की पांचवीं बड़ी अर्थव्यवस्था हैं। शिक्षा, रोज़गार, सुरक्षा, विकास और आधारभूत संरचनाओं में भी हमारी तूती बोल रही है। ऐसे में हम जैसे ही ग्रामीण विकास पर नज़र दौड़ाते हैं तो हमें थोड़ी निराशा होती है। भारत के लगभग 25 प्रतिशत गांव ऐसे हैं जहां आज भी पीने के पानी के लिए बहुत जद्दोजहद करनी पड़ती है।
 केन्द्र और राज्य सरकारों के द्वारा गांव में कई प्रकार की योजनाएं चलायी जा रही हैं लेकिन उन योजनाओं का लाभ ग्रामीणों को नहीं मिल पा रहा है। कुपोषण, अशिक्षा, अंधविश्वास, बीमारी के मकड़जाल में भारत के अधिकतर गांव आज भी फंसे हुए हैं। विगत तीन दशकों से गांव की सरकार यानी पंचायती राज के माध्यम से गांव में काम हो रहे हैं। सरकार करोड़ों रुपये ग्रामीण क्षेत्रों में खर्च भी कर रही है लेकिन गांव चित्र यथावत है। इसके कारणों की मीमांसा करने से पहले हमें इस विषय पर विचार करना चाहिए कि गांव की सरकार यदि काम कर रही है तो चित्र क्यों नहीं बदल रहा है? 
पंचायती राज प्रणाली के लागू होने के इतने वर्षों बाद भी सत्ता का स्थानांतरण गांव की सरकारों के पास नहीं हो पाया है। राज्य सरकार और उसके कर्मचारी व अधिकारी कहीं न कहीं गांव की सरकार की शक्तियों को दबा कर बैठे हुए हैं और गांव के विकास की बाधा यहीं से प्रारंभ होती है। 
राज्य सरकारों ने पंचायती प्रणाली को अपने अनुकूल बना  लिया है। यह प्रणाली ग्रामीण स्तर पर राज्य सरकार की महज एक क्रियान्वयन संस्था बन रह गयी है। राज्य सरकार से इतर इसका अपना कोई अस्तित्व नहीं है। राज्य सरकार के प्रशासनिक अधिकारी इस प्रणाली में जब चाहे हस्तक्षेप कर सकते हैं। यहां तक कि बिना कोई कारण बताए पंचायत की चुनी सरकार को भी भंग कर सकते हैं। राज्य सरकार के द्वारा पंचायतों को जो 29 अधिकार और कार्य आवंटित किए गए हैं, उसमें भी अब केन्द्र और राज्य सरकार हस्तक्षेप करने लगी है। इसके कारण पंचायती राज व्यवस्था के स्वतंत्र अस्तित्व पर प्रश्न खड़ा हो गया है। 
इस प्रणाली की दूसरी सबसे बड़ी समस्या पंचायतों के चुने गए प्रतिनिधियों की आयोग्यता है। लाख प्रशिक्षण के बाद भी चुने गए प्रतिनिधि अपनी ताकत का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं और अधिकारियों के दबाव में काम करते हैं। बजट बनाने, ग्राम सभा में बजट पास करने और विभिन्न प्रकार के अधिकार ग्राम पंचायतों को तो है लेकिन ग्राम सभा के द्वारा पारित प्रस्तावों को विकास अधिकारी रद्दी की टोकरी में डाल देते हैं और अपने द्वारा बनायी योजनाओं को पंचायत पर थोप देते हैं। शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, पर्यावरण, कृषि आदि मद में सरकार एक बड़ी राशि पंचायतों में खर्च करती है लेकिन उसका लाभ स्थानीय लोगों को नहीं के बराबर है। हिसाब लगाया जाए तो सरकार छह से लेकर आठ करोड़ की धन राशि एक पंचायत पर खर्च करती है लेकिन इस राशि का माध्यम केवल कहने के लिए पंचायत होती है। सच पूछिए तो यह राशि राज्य सरकार के द्वारा नियुक्त अधिकारी और कर्मचारी अपने अनुसार खर्च करते हैं। इसके संबंध में बताया जाता है कि स्थानीय प्रतिनिधि योग्य नहीं हैं, इसलिए इस राशि को वे खर्च करने में सक्षम नहीं हो पाएंगे। यदि वे खर्च कर भी लेंगे तो इसका हिसाब वे नहीं दे पाएंगे। अगर ऐसा है तो यह ज़िम्मेदारी राज्य सरकार की बनती है कि वह पंचायत के प्रतिनिधियों को प्रशिक्षित करे। साथ ही जिस प्रकार राज्य सरकार अपने सचिवालय को संचालित करने के लिए योग्य अधिकारियों की नियुक्ति करती है उसी प्रकार पंचायती प्रणाली को सशक्त करने के लिए योग्य कर्मचारी और अधिकारियों की नियुक्ति करे। जिस प्रकार राज्य सरकार के अधीने अधिकारी और कर्मचारी होते हैं उसी प्रकार पंचायती राज के अधीन भी अधिकारी और कर्मचारी होने चाहिएं। तभी सत्ता का ग्रामीण क्षेत्रों में हस्तांतरण संभव हो पाएगा। 
देश चाहे जितना तरक्की कर लेए हम चांद पर पहुंच जाएं लेकिन जब तक हमारा गांव सशक्त नहीं होगा, तब तक देश का विकास अधूरा ही रहेगा। गांधी जी का यही स्वप्न था कि देश का प्रत्येक पंचायत अपने स्व के संसाधनों से संचालित हो। उन्होंने अपने कई भाषनों और आलेखों में साफ.-साफ  कहा है कि यदि गांव स्वावलंबी नहीं हुआ तो देश फिर से गुलाम हो जाएगा। पंचायत को सशक्त और मजबूत इसलिए भी होना होगा क्योंकि इससे हमारी आंतरिक सुरक्षा जुड़ी हुई है। अमृत काल के इस दौर में हमें एक संकल्प यह भी लेना चाहिए कि हम अपने गांव और ग्रामीण सरकार को मजबूत करेंगे।  (युवराज)