वट वृक्ष के समान होते हैं बुज़ुर्ग

विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस पर विशेष

देश में हर साल 21 अगस्त को विश्व वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। बुज़ुर्गजन वटवृक्ष के समान होते हैं। इनकी छाया में रहने वाले लोग धूप, आंधी और असामान्य विपत्तियों से बचे रहते हैं। हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक परम्पराओं का इतिहास गौरवशाली रहा है। हमारे संस्कार में माता-पिता, गुरु व बुज़ुर्ग को देवताओं की श्रेणी दी गई है। तभी तो हमारी सामाजिक परम्परा में ‘मातृ देवो भव, पितृ देवो भव, आचार्य देवो भव, अतिथि देवो भव’ का ज्ञान परिवार की पाठशाला में ही सिखाया जाता है। ज़िन्दगी के हर बड़े फैसले या हर खुशखबरी के वक्त बड़े-बुज़ुर्गों के आशीर्वाद लेने की परम्परा सदियों से चली आ रही है। बुज़ुर्गों का सम्मान करना हमारी समृद्ध परम्परा है। 
वृद्धजनों से हमें सदैव मार्गदर्शन मिलता है। देश में सर्वाधिक युवा है, बुज़ुर्ग उनका मार्गदर्शन करते रहें तो भारत को अग्रणी देश बनाया जा सकता है। हर समाज अपनी नई पीढ़ी को बुज़ुर्गों का सम्मान और आदर करना सिखाता है। इस बेहतरीन संबंध को पीढ़ी दर पीढ़ी बनाए रखा जाना चाहिए। बुज़ुर्गों की सेवा पुण्य के समान होती है, जो बिरलों को ही नसीब होती है। जिस समाज में बुज़ुर्गों का सम्मान न हो, उन्हें परायों से नहीं, अपनों से ही प्रताड़ना मिले तो उस समाज को धिक्कार है। अब स्थिति यह हो गई है कि लाचार और बुज़ुर्ग ही क्यों, अच्छे-खासे, चलते-फिरते माता-पिता को भी बच्चे अपने साथ रखना नहीं चाहते।  
मानव जीवन का फलसफा इतना उलझा हुआ है कि हम चाहकर भी इन उलझनों से स्वयं को अलग नहीं का सकते। पूरा जीवन जिन्होंने अपनों को पैरों पर खड़ा करने के लिए खून-पसीना बहाया, समय आने पर अब वे ही उन्हें भूला बैठेंगे, ऐसा उन्होंने सोचा भी नहीं होगा। उम्र के जिस पड़ाव में अपनों की ज़रूरत होती है, उसमें वे बेहद एकांकी जीवन जीने को मजबूर हो जाते हैं। कोई अपने सुनहरे दिनों को याद करता है तो कोई अपनों को दिल में बसाये अपनी बाकी ज़िन्दगी काटने की ओर कदम बढ़ता है। अब बस यही यादें हैं जो वरिष्ठ नागरिकों के जीने का सहारा बनी हैं। इस लिए कहा जाता है ज़िंदगी एक अंधा कुवां है जो काल और समयचक्र के हिसाब से सब का इंतजार करती है।
जब तक समाज अपनी ज़िम्मेदारी नहीं समझेगा तब तक बुज़ुर्गों को सुखद जीवन व्यतीत करने का रास्ता आसानी से नहीं मिलेगा। बुज़ुर्गों की वास्तविक समस्याएं क्या हैं और उनका निराकरण कैसे किया जाये, इस पर गहनता से मंथन की ज़रूरत है। आज घर-घर में बुज़ुर्ग है। वे इज़्ज़त से जीना चाहते है। मगर यह कैसे संभव हो सकता है, इस पर विचार करने की ज़रूरत है। हैल्पएज इंडिया का कहना है कि दुर्भाग्य से बुज़ुर्ग जिन पर सबसे ज्यादा भरोसा करते है, वहीं उन्हें सबसे ज्यादा पीड़ा देते हैं। बुज़ुर्गों के साथ उत्पीड़न की शुरुआत उनके अपने घर से ही होती है। 
बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए वर्ष 2007 में मेन्टीनेंस एण्ड वेलफेयर ऑफ पेरेन्ट्स एवं सीनियर सिटीजन कानून अस्तित्व में आया था। इस कानून के अनुसार वृद्ध माता-पिता को यह अधिकार है कि वे अपने भरण-पोषण के लिए अपनी सन्तान से गुज़ारा भत्ता हासिल कर सकते हैं। गुज़ारा खर्चा नहीं देने वाली सन्तान पर जुर्माना एवं कारावास की सज़ा का प्रावधान है। बुज़ुर्गों को हालांकि इस कानून की कोई जानकारी नहीं है। यदि कुछ लोगों को जानकारी है तो सामाजिक परम्पराओं को ध्यान में रखते हुए वे कोई कार्यवाही नहीं करते। सामाजिक मूल्यों के अवमूल्यन के कारण बुज़ुर्गों का मान-सम्मान कम हुआ है और वे एक अंधेरी कोठरी का शिकार होकर अपना जीवन यापन करने को मजबूर हो जाते हैं। यदि बुज़ुर्ग माता-पिता बीमार हो जाते हैं तो अस्पताल ले जाने वाला कोई नहीं होता। अनेक बुज़ुर्गों को एक पुत्र से दूसरे पुत्र के पास ठोकरें खाते देखा जा सकता है। अनेक को घरों से निकालने के समाचार मीडिया में प्रकाशित होते रहते हैं। आज भी ऐसे अनेक बुज़ुर्ग मिल जायेंगे जो अपनी संतान और परिवार की उपेक्षा व प्रताड़ना के शिकार हैं। बुज़ुर्गों की देखभाल और उनके सम्मान की बहाली के लिए समाज में चेतना जगाने की ज़रूरत है। अच्छे व्यवहार से हम इनका दिल जीत सकते हैं।


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