जेलों में गैंगवार की बढ़ती घटनाएं

 

पंजाब की जेलों में बार-बार होती गैंगवार ने नि:संदेह प्रदेश का हित-चिन्तन करने वाले लोगों की चिन्ता में इज़ाफा किया है। पंजाब में ऐसी ताज़ा घटना अमृतसर की फतेहपुर स्थित केन्द्रीय जेल परिसर में हुई है जहां कैदियों के दो गुटों में निरन्तर कई मिनट तक न केवल भिड़न्त होती रही, अपितु इस भिड़न्त में दोनों ओर से जेल के भीतर ही बनाये गये देसी घातक हथियारों से एक-दूसरे पर हमले किये गये। इस भिड़न्त के बारे में प्राप्त हुए समाचारों के अनुसार कैदियों ने एक-दूसरे को दौड़ा-दौड़ा कर हमले किये। इस दौरान जेल के सुरक्षा बलों ने बल-प्रयोग भी किया, और कि बड़ी देर के बाद स्थितियों पर नियंत्रण पाया जा सका। इस गैंगवार के दौरान तीन लोग घायल हुए जिनमें से एक को गम्भीर चोटें लगी हैं। एक अन्य कैदी की एक टांग तोड़ दी गई जिस पर पलस्टर चढ़ाया गया है। झगड़े की वजह का तो तत्काल रूप से पता नहीं चला, लेकिन दोनों ओर से चिरकाल से एक-दूसरे के लिए चेतावानियों और धमकियों का आदान-प्रदान अवश्य किया जा रहा था। इस घटना ने जेल अधिकारियों और प्रदेश के प्रशासन की ओर से इस प्रकार की घटनाओं  को रोक पाने हेतु प्रशासन की सम्पूर्ण कार्य-प्रणाली को प्रश्न-चिन्हों के घेरे में ला खड़ा किया है। जेल प्रशासन ने बेशक इस घटना हेतु 12 बंदियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है किन्तु लम्बी अवधि से दोनों ओर से चली आ रही रंजिश की कई आहटों को जेल तंत्र द्वारा कई बार महसूस कर के भी दरगुज़र कर देना आश्चर्यजनक प्रतीत होता है।
पंजाब की जेलों के भीतर अक्सर होते रहने वाली इस प्रकार की जंग कोई नई अथवा पहली घटना नहीं है। पहले भी इस प्रकार की कई घटनाएं समाचार पत्रों के ज़रिये सामने आती रही हैं। ऐसी एक बड़ी घटना में एक बार जेल के भीतर कई जगहों पर आगज़नी भी हुई थी। इसी वर्ष कुछ महीने पहले तरनतारन की गोइंदवाल जेल में हुई ऐसी ही एक गैंगवार में पंजाबी गायक सिद्ध मूसेवाला की हत्या के आरोप में बंद दो कैदियों को मृत्यु के घाट उतार दिया गया था। नि:संदेह इससे सम्पूर्ण जेल प्रशासन की कारगुज़ारी प्रश्न-चिन्हों के घेरों में आ जाती है। इसी जेल में नशे के सेवन को लेकर नशा तस्करी के दो बंदी गुटों के बीच हुई लड़ाई ने भी प्रशासनिक तंत्र की कार्य-प्रणाली को कटघरे में ला खड़ा किया था। प्रश्न यहां यह भी उठता है कि प्रदेश की जेलों के भीतर  इस प्रकार की घटनाएं क्यों होती रहती हैं? यह भी कि जेल प्रशासन अक्सर ऐसी घटनाओं को रोकने अथवा इन पर अंकुश लगाये जाने में कामयाब क्यों नहीं हो पाता? 
पंजाब की जेलों में अक्सर अनियमितताओं को लेकर चर्चा और आलोचना होती रहती है। प्रदेश की अमृतसर और तरनतारन की जेल इस मामले में बेहद नाज़ुक मानी जाती हैं क्योंकि दोनों ही ज़िले पाकिस्तान की सीमा से सटे हुए हैं। पाकिस्तान अक्सर भारतीय प्रदेश में नशीले पदार्थों की तस्करी कराने हेतु कुख्यात है। दोनों ओर के तस्करों द्वारा ड्रोनों के ज़रिये बड़ी-बड़ी खेप सीमा-पार से भारतीय पंजाब में मांग के अनुसार भेजी जाती है। इन तस्करों द्वारा सीमा पार से हेरोइन के साथ-साथ हथियारों की भी सुनियोजित तस्करी की जाती है। इससे एक ओर जहां पंजाब में आपराधिक गतिविधियां बढ़ती हैं, वहीं राष्ट्र की सुरक्षा के लिए भी ़खतरा पैदा होता है। होना तो यह चाहिए कि सीमा पार से बढ़ते ़खतरे के दृष्टिगत प्रदेश और यहां की जेलों की सुरक्षा व्यवस्था चाक-चौबन्द रहे, किन्तु निरन्तर होती ऐसी घटनाएं सरकार की नीति और नीयत दोनों को प्रश्न-चिन्हों के घेरे में ला खड़े करती हैं। प्रदेश की जेलों में नशीले पदार्थों, मादक औषधियों और मोबाइल फोन आदि पाये जाने की घटनाएं भी आम होती रहती हैं। प्रदेश की जेलों की इस दुरावस्था को लेकर पिछले दिनों बाकायदा एक जांच और निरीक्षण अभियान चलाया गया था। जेलों में लोहे की रॉड और स्टील के बर्तनों, चम्मच, आदि को तोड़ कर बनाये गये जुगाड़ू हथियारों से छिटपुट हमले किये जाने के समाचार भी आम मिलते रहते हैं। प्रदेश के कई अन्य ज़िलों जैसे जालन्धर, होशियारपुर की जेलें भी भारी अव्यवस्था का शिकार होती रही हैं। कपूरथला की जेल जालन्धर जेल को तोड़ कर बनाई गई माडर्न जेल मानी जाती है, किन्तु इस जेल की अव्यवस्था भी अक्सर सुर्खियों में रहती है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह पंजाब की जेलों की दशा सुधारने और भीतरी सुरक्षा व्यवस्था को मज़बूत करने के लिए सतत् निगरानी प्रक्रिया बनाये रखने की बड़ी आवश्यकता है। इस हेतु वैज्ञानिक और तकनीकी उपायों का अपनाया जाना भी उतना ही लाज़िमी है। जेलों में अधिकतर ऐसे अवैध पदार्थ और वस्तुएं जेलों के भीतरी स्टाफ और पुलिस तंत्र की मिलीभुगत से ही कैदियों तक पहुंचाई जाती हैं। इस मिलीभुगत के कारण प्रदेश की कई जेलों के अधिकारी और कर्मचारी पहले ही सरकार के राडार पर रहे हैं। इस प्रवृत्ति पर अंकुश लगाया जाना बहुत ज़रूरी हो जाता है। सतत् निगरानी और सतर्कता हेतु एक नया तंत्र विकसित किये जाने की भी बड़ी आवश्यकता है। इस उद्देश्य को हासिल करने के लिए जेलों के भीतरी स्टाफ की वफादारी और प्रतिबद्धता को लेकर भी कोई एक कसौटी अवश्य बनाई जानी चाहिए। हम समझते हैं कि इस प्रकार के उपाय एवं सुरक्षा तंत्र विकसित करके ही जेलों के भीतर की दुरावस्था और अव्यवस्था को सुधारा जा सकता है। इस हेतु सरकार को दृढ़ इच्छा-शक्ति का भी प्रदर्शन करना होगा।