वित्तीय धरातल पर पिछड़ता पंजाब

पंजाब की मौजूदा सरकार की ओर से अपनी आर्थिकता के तमाम दावों के बावजूद प्रदेश की राजकोषीय स्थिति एक सर्वेक्षण में नीचे से केवल दो पायदान ही ऊपर बताई गई है। यह खुलासा मुम्बई स्थित देश के एक बड़े वित्तीय बैंक की ओर से जारी की गई एक ताज़ा सर्वेक्षण रिपोर्ट के दृष्टिगत हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार देश का एक छोटा-सा पिछड़ा और ़गरीब माना जाता प्रांत तेलंगाना भी पंजाब से बहुत ऊपर पाया गया है। बेशक पंजाब इस बात पर संतोष हासिल कर सकता है कि पं. बगाल और केरल भी इस वित्तीय दुरावस्था के पथ पर उसके दो साथी हैं। इस रिपोर्ट में यह दावा किया गया है कि मौजूदा महंगाई और मुद्रा-स्फीति के दृष्टिगत बेहतर राजकोषीय स्थिति को लेकर महाराष्ट्र सबसे ऊपर यानि पहली पायदान पर मौजूद दिखाई देता है। एक और छोटा-सा राज्य छत्तीसगढ़ भी इस सूचि में दूसरे स्थान पर है जबकि तेलंगाना को तीसरा स्थान हासिल हुआ है। वर्ष 2023-24 के लिए इस बैंक की ओर से देश के 17 राज्यों की वित्तीय स्थिति और राजकोषीय व्यवस्था को प्रकट करने के लिए बाकायदा एक सर्वेक्षण कराया गया था। इस सर्वेक्षण के अनुसार उड़ीसा और झारखंड भी तीसरी पायदान पर है किन्तु पंजाब, प. बंगाल और केरल से उच्च स्थान पर दर्शाये गये हैं। प. बंगाल इस धरातल पर सर्वाधिक रूप से पिछड़ कर 17वें स्थान पर आया है जबकि पंजाब इससे दो पायदान ऊपर चित्रित किया गया है।
बेशक यह विश्लेषण सुदूर महाराष्ट्र के एक बैंक द्वारा किया गया है किन्तु इस रिपोर्ट के दृष्टिगत पंजाब की मौजूदा सरकार की ओर से प्रदेश की वित्तीय स्थिति और वित्तीय कोषों की स्थिरता को लेकर अक्सर किये जाते दावों की पोल अवश्य खुल जाती है। बैंक ने चूंकि यह रिपोर्ट आगामी वर्ष  के बजट अनुमानों के आधार पर तैयार की है, अत: पंजाब सहित अन्य प्रदेशों की आगामी बजट की पृष्ठभूमि के बारे में भी इस रिपोर्ट से बहुत कुछ समझा जा सकता है। पंजाब की पिछली सरकार के समय से ही, प्रदेश के लोगों के सिर पर सवा तीन लाख करोड़ रुपये से अधिक का ऋण चला आ रहा है जो प्रदेश के मौजूदा खर्च अनुमानों के अनुसार चार लाख करोड़ रुपये के शिखर को छू चुका होना चाहिए। प्रदेश की मौजूदा भगवंत मान सरकार ने अपने शासन के पहले ही एक वर्ष में 25,000 करोड़ रुपये से अधिक का कज़र् ले लिया था। दूसरे वर्ष में यह और बढ़ा होगा, इसका अनुमान लगा लेना कठिन नहीं है। प्रदेश में मुफ्त बिजली के कारण विद्युत निगम का घाटा भी निरन्तर बढ़ा है। इससे निगम के सिर पर पूर्व में सवार 20,000 करोड़ रुपये कज़र् में भी नि:संदेह और इज़ाफा हुआ होगा। पंजाब के कुल 28.10 लाख बिजली उपभोक्ताओं के लिए 600 यूनिट बिजली माफी से 1298 करोड़ रुपयों का अतिरिक्त बोझ पड़ा था। बकाया बिलों की माफी का वित्त-भार इसके अतिरिक्त था। प्रदेश में नये कनैक्शनों से 6000 करोड़ रुपये का वित्तीय संकट बढ़ने की भी सम्भावना है। मौजूदा सरकार की शिक्षा और स्वास्थ्य के धरातल पर स्वेच्छाचारी नीतियों के कारण भी प्रदेश के राजकोषीय घाटे पर और दबाव बढ़ने की आशंका है। पंजाब में नौकरियों एवं नये पदों के सृजन हेतु अतार्किक नीतियों के कारण प्रदेश के राज-कोष पर पैन्शनों और वेतनों का भार भी बढ़ते जाने की प्रबल सम्भावना है।
ऐसे में स्वयं मुख्यमंत्री और प्रदेश के वित्त मंत्री की ओर से वित्तीय नीतियों का पक्ष-पोषण करते हुए, खज़ाने के भरे होने के दावे किसी भी धरातल पर सही सिद्ध होते दिखाई नहीं देते। हम समझते हैं कि पूरे देश में बढ़ती महंगाई, खाद्यान्न पदार्थों की कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि और मुद्रा-स्फीति भी पंजाब के राजकोषीय घाटे वाली स्थिति को और नाज़ुक चरण तल ले जा सकती है। पंजाब की मौजूदा सरकार की केन्द्र के साथ टकराव और विचार-भिन्नता की स्थिति भी प्रदेश के राजकोष पर भार बढ़ा कर आगामी बजट-अनुमानों को प्रभावित कर सकती है। वित्त विशेषज्ञों के अनुसार इन तमाम कारणों एवं स्थितियों के दृष्टिगत मौजूदा पंजाब सरकार अपने सभी दावों के बावजूद वित्तीय संकट से जूझ रही है और सरकार की मौजूदा वित्तीय नीतियों के कारण इस संकट के निरन्तर और बढ़ते जाने की सम्भावना है। विशेषज्ञों का यह भी दावा है कि विभिन्न धरातलों पर भ्रष्टाचार के कारण भी सरकार को वित्तीय धरातल पर चोट पहुंचने की बड़ी आशंका है। स्टाम्प शुल्क की चोरी का घाटा भी अरबों रुपये तक हो जाने का अनुमान है। तिस पर तुर्रा यह भी, कि सरकार का राजस्व विभाग स्वयं इस चरण पर इस चोरी को रोक पाने में असमर्थ और विवश नज़र आ रहा है।
हम समझते हैं कि नि:संदेह मान सरकार की वित्त संबंधी नीतियां हवा-हवाई होकर प्रदेश की वित्तीय स्थिति को और कमज़ोर कर रही हैं। महाराष्ट्र के एक बड़े बैंक द्वारा जारी विश्लेषण रिपोर्ट इस दुरावस्था को चित्रित करने के लिए काफी है। ऐसा प्रतीत होता है कि प्रदेश सरकार की नीतियों को क्रियान्वित करने वाली मशीनरी ही प्रदेश सरकार के साथ सम्पूर्ण सहयोग नहीं कर रही। आगामी बजट से पूर्व प्रदेश की वित्तीय स्थिति कौन-सी करवट लेगी, यह आने वाले समय में और स्पष्ट होता जाएगा।