चांद का दक्षिणी ध्रुव इतना महत्वपूर्ण क्यों ?

भारत चांद पर वहां पहुंचा है, जहां पहले कोई दूसरा देश नहीं पहुंच सका है। जब 41 दिन की शानदार व प्रभावी यात्रा के बाद इतिहास रचते हुए, भारत के मून मिशन चन्द्रयान-3 ने 23 अगस्त, 2023 की शाम 6:04 पर चांद के दक्षिणी ध्रुव को स्पर्श किया, तो यह उसके अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए विशाल छलांग थी। विशेषकर इसलिए कि भारत अब अमरीका, चीन व पूर्व सोवियत संघ के साथ उस एक्सक्लूसिव क्लब का चौथा सदस्य बन गया है, जिसने चांद पर सॉफ्ट-लैंडिंग टेक्नोलॉजी में महारत हासिल कर ली है। पिछले चार वर्षों के दौरान भारत का यह दूसरा प्रयास था, जो इस लिहाज़ से सफल रहा कि चन्द्रयान-3 का चार पैरों वाला लैंडर विक्रम, जिसके भीतर में 26 किलो का रोवर प्रज्ञान था, ने चांद के अति दुर्लभ व कठिन दक्षिणी ध्रुव पर लैंड किया।
गौरतलब है कि रूस का चांद के दक्षिणी ध्रुव पर जाने की कोशिश कर रहा लूना-25 स्पेस क्राफ्ट 20 अगस्त, 2023 को नियन्त्रण से बाहर हो जाने के कारण क्रैश हो गया था। बहरहाल इस पूरे परिदृश्य में लाख टके का प्रश्न यह है कि अचानक चांद का दक्षिणी ध्रुव इतना महत्वपूर्ण क्यों हो गया है कि वहां पहुंचने के लिए विभिन्न देशों की स्पेस एजेंसियां ही नहीं बल्कि प्राइवेट स्पेस कम्पनियों ने भी आने वाले वर्षों में लूनर मिशन की कतार लगायी हुई है? चांद के इक्वेटर क्षेत्र में तो अमरीका, पूर्व सोवियत संघ व चीन ने अनेक मिशन भेजे हैं, लेकिन उसके दक्षिण ध्रुव को अभी तक कोई विशेष महत्व नहीं दिया गया था, लेकिन अब हर किसी की इसी क्षेत्र में दिलचस्पी बढ़ती जा रही है। पिछले कुछ वर्षों के दौरान अनेक देशों के लूनर ऑर्बिटर्स ने ऊंचाई से दक्षिणी ध्रुव की तस्वीरें ली हैं, जिनमें भारत के चंद्रयान-1 प्रोब और चंद्रयान-2 ऑर्बिटर भी शामिल हैं। इन तस्वीरों के आधार पर वैज्ञानिकों का मानना है कि दक्षिणी ध्रुव में जमे हुए पानी  के रिज़र्व और कीमती तत्व हैं। चूंकि पानी ही जीवन का आधार है, इसलिए चांद पर मानव बस्तियां बसाने का सपना तभी साकार हो सकता है जब उसके दक्षिणी ध्रुव में पानी होने की पुष्टि हो जाये। उम्मीद है कि प्रज्ञान रोवर इस रहस्य पर से पर्दा उठा देगा।
इसके अतिरिक्त लूनर ऑर्बिटर्स, क्लेमेंटाइन, लूनर प्रोस्पेक्टर, लूनर रीकोनीजांस ऑर्बिटर, कागुया, चन्द्रयान-1 प्रोब और चन्द्रयान-2 ऑर्बिटर यह तथ्य स्थापित करने में सफल रहे हैं कि चांद का दक्षिणी ध्रुव लूनर आउटपोस्ट बनाने के लिए उचित स्थान है, जहां से दूर के अंतर-ग्रह कार्यक्रमों को लांच किया जा सकता है। इस पृष्ठभूमि में यह प्रश्न प्रासंगिक है कि अब जब इसरो ने अपना स्पेसक्राफ्ट चांद पर लैंड करा दिया है तो क्या भारत चांद पर ‘कब्ज़ा’ करेगा? अपने देश में हो रही कटिंग-एज शोध से मिल रहा संकेत यही है कि भविष्य में हम इससे भी आगे जा सकते हैं और चांद पर रहने के लिए इमारतों का निर्माण कर सकते हैं। दीर्घकाल के लिए चांद पर ‘कब्ज़ा’ करना, जैसा कि अमरीका के आर्टेमिस मिशन की योजना है, स्वाभाविक कदम लगता है ताकि चांद की सतह को अंतर-ग्रह एक्सप्लोरेशन के लांचपैड के रूप में प्रयोग किया जा सके।
चांद का दक्षिणी ध्रुव, जोकि 90 डिग्री दक्षिण पर उसका सबसे दक्षिणी बिंदु है, वैज्ञानिकों के लिए विशेष दिलचस्पी का केंद्र है क्योंकि वहां वाटर आइस (पानी के बर्फ) के स्थायी छायादार क्रेटर्स हैं। इस क्षेत्र में खनिजों की भी भरमार है। पानी और खनिज भविष्य के एक्सप्लोरर्स के लिए संसाधन हैं। दूसरा यह कि दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र में कुछ क्रेटर्स इस लिहाज़ से विशिष्ट हैं कि वहां जो लगभग निरन्तर सूरज की रौशनी पड़ती है, वह उनके अंदरूनी भाग तक नहीं पहुंचती है। इस प्रकार के क्रेटर्स कोल्ड ट्रैप हैं जिनमें पूर्व सोलर सिस्टम के हाइड्रोजन, वाटर आइस व अन्य पदार्थों के जीवशम रिकार्ड्स हैं। इनसे वैज्ञानिक हमारे सोलर सिस्टम के इतिहास के बारे में अधिक जानकारी हासिल कर सकते हैं। तीसरा यह कि दक्षिणी ध्रुव के पास जो पहाड़ हैं, वह अधिक समय धूप में नहाते रहते हैं और इसलिए उनका प्रयोग आउटपोस्ट को सोलर एनर्जी उपलब्ध कराने के लिए किया जा सकता है। चांद पर आउटपोस्ट बनाकर वैज्ञानिक पानी व अन्य पदार्थों की समीक्षा कर सकते हैं, जोकि सोलर सिस्टम के निर्माण के समय के हैं। 
दरअसल, चांद का दक्षिणी ध्रुव वह जगह है जहां वैज्ञानिक 30 मेगाहर्ट्ज़ रेडियो तरंगों के तहत विशिष्ट खगोलीय अवलोकन कर सकते हैं। चीन की लॉन्गजिंग माइक्रोसैटेलाइट्स चांद का चक्कर लगाने के लिए मई 2018 में लांच की गई थीं और लॉन्गजिंग-2 इस फ्रीक्वेंसी पर 31 जुलाई, 2019 तक चलती रही। लॉन्गजिंग-2 से पहले कोई भी स्पेस ऑब्जर्वेटरी खगोलीय रेडियो तरंगों का इस फ्रीक्वेंसी पर अवलोकन नहीं कर सकी थी क्योंकि पृथ्वी के उपकरणों से लहरें हस्तक्षेप करती थीं। चांद का दक्षिणी ध्रुव पृथ्वी का सामना करता है और उसमें पहाड़ व घाटियां हैं। इसलिए ग्राउंड रेडियो ऑब्जर्वेटरी से खगोलीय रेडियो सिग्नल्स हासिल करने के लिए चांद का दक्षिणी ध्रुव आदर्श जगह है। साथ ही चांद के दक्षिणी ध्रुव में सोलर पॉवर, ऑक्सीजन व धातु भी बड़ी मात्रा में हैं। इस तरह अगर इसके निकट संसाधन प्रोसेसिंग फैसिलिटी तलाश कर ली जाती है तो सोलर-जनरेटेड इलेक्ट्रिकल पॉवर से ऑपरेशन को लगभग निरन्तरता के साथ जारी रखा जा सकेगा। चांद की सतह पर जिन तत्वों के होने की जानकारी उपलब्ध है, उनमें शामिल हैं हाइड्रोजन, ऑक्सीजन, सिलिकॉन, आयरन, मैग्नीशियम, कैल्शियम, एल्युमीनियम, मैंगनीज और टाइटेनियम। इनमें भी ऑक्सीजन, आयरन व सिलिकॉन की अधिकता है। अनुमान यह है कि (वज़न के हिसाब से) ऑक्सीजन 45 प्रतिशत है। इसलिए यह आश्चर्य नहीं है कि चांद के दक्षिणी ध्रुव की ओर मानव की दौड़ है। 
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर