कितनी सफल होगी माओवादियों के आत्मसमर्पण की नीति ?

गत 17 अगस्त, 2023 को माओवाद को ‘अमानवीय’ व ‘खोखली’ विचारधारा बताते हुए एक नक्सल जोड़े ने छत्तीसगढ़ के सुकमा ज़िले में आत्म-समर्पण किया। नंदा व उसकी पत्नी सोमे के सिर पर एक-एक लाख रुपये का ईनाम था। यह जोड़ा 2020 की मिनपा मुठभेड़ (जिसमें 17 सुरक्षाकर्मियों की जान चली गई थी) और 2021 के तकालगुडा हमले (जिसमें 21 सुरक्षाकर्मी वीरगति को प्राप्त हुए थे) में शामिल था। नंदा कोंटा लोकल आर्गेनाइजेशन स्क्वाड (एलओएस) से संबंधित था और एरिया एग्रीकल्चर टीम का भी सदस्य था, जबकि सोमे जागरगुंडा एलओएस की सदस्य थी। दोनों ने अनेक नक्सली हमलों में हिस्सा लिया था। सोमे 2012 में ‘बाल संगम’ सदस्य के रूप में नक्सली संगठन की सदस्य बनी थी और नंदा 2015 में इस प्रतिबंधित संगठन का हिस्सा बना। अब इस जोड़े को छत्तीसगढ़ सरकार की आत्म-समर्पण व पुनर्वास नीति के अनुसार सुविधाएं प्रदान की जाएंगी। 
हालांकि नक्सल प्रभावित राज्यों में दशकों से आत्म-समर्पण व पुनर्वास नीतियां उपलब्ध हैं, नक्सली आत्म-समर्पण कर भी रहे हैं, लेकिन आज भी सीपीआई (माओवादी) छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, महाराष्ट्र, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ दूरदराज के वन क्षेत्रों में सक्रिय हैं। लगभग प्रतिदिन ये किसी न किसी घटना को अंजाम देते हैं, यह अलग बात है कि कोई बड़ी घटना ही राष्ट्रीय अख़बारों में सुर्खी बनती है। जबकि हकीकत यह है कि सरकारी दावों के विपरीत माओवादी लगातार सक्रिय हैं। गौरतलब है कि डॉ. मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाले संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) की केंद्र सरकार ने 22 जून, 2009 को गैर-कानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के तहत एक आतंकवादी संगठन के रूप में सीपीआई (माओवादी) पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन जिस संगठन को काम ही गैर-कानूनी करने हों, उस पर सरकारी प्रतिबंधों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। उसकी सक्रियता जारी रहती है। इसलिए राज्य सरकारों ने कानून व्यवस्था सख्त व मज़बूत करने के अलावा माओवादियों पर अंकुश लगाने के लिए अन्य अनेक कदम उठाये हैं, जिनमें आत्म-समर्पण व पुनर्वास नीति भी शामिल है। इससे आंशिक सफलता भी मिली है। 
बहरहाल, अब छत्तीसगढ़, ओडिशा, तेलंगाना व आंध्र प्रदेश की आत्म-समर्पण व पुनर्वास नीतियों का अध्ययन करने के बाद मध्य प्रदेश सरकार ने अपनी 23 वर्ष पुरानी नीति को अपडेट करते हुए 18 अगस्त, 2023 को माओवादियों के लिए नई आत्म-समर्पण व पुनर्वास नीति जारी की है।  मध्य प्रदेश में जो माओवादियों के लिए नई आत्म-समर्पण व पुनर्वास नीति लागू की गई है, उसके तहत आत्म-समर्पण करने वाले माओवादियों ने जो गंभीर अपराध किये हैं, उनमें कानूनी ट्रायल जारी रहेगा, लेकिन व्यक्तिगत हालात व जनहित को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार प्रत्येक केस की समीक्षा करेगी और तभी मुकद्दमे वापस लेने का फैसला करेगी। दूसरे शब्दों में यह राज्य सरकार के विवेक व मंशा पर निर्भर होगा कि आत्म-समर्पण करने वाले किस माओवादी पर वह ‘मेहरबान’ होना चाहती है। 
मध्य प्रदेश की पिछली नीति इसलिए सफल नहीं हुई थी क्योंकि पड़ोसी राज्यों में आत्म-समर्पण करने वाले माओवादियों के लिए अधिक आकर्षक पेशकश थी। मसलन, छत्तीसगढ़ में उसकी आत्म-समर्पण व पुनर्वास नीति के तहत 600 से अधिक माओवादी अपने हथियार डाल चुके हैं, जिनमें कुछ वरिष्ठ नेता भी शामिल हैं। अत: मध्य प्रदेश सरकार ने भी बदलाव की ज़रूरत महसूस की और माओवादियों के आत्म-समर्पण के लिए नये दिशा-निर्देश जारी किये ताकि उन्हें मुख्यधारा में शामिल किया जा सके। राज्य स्तर की स्क्रीनिंग कमेटी का विचार है कि नई नीति को इस तरह से डिज़ाइन किया गया है कि उसके प्रति वरिष्ठ माओवादी नेता और हार्डकोर बागी भी मुख्यधारा में आने के लिए आकर्षित होंगे। कमेटी के एक अधिकारी के अनुसार, ‘नई नीति राज्य सरकार का इच्छा पत्र है कि वह न्याय के लिए पूर्णत: समर्पित है।’ इस परिवर्तनशील पहल के केंद्र में है ज़िला स्तर की पुनर्वास व राहत कमेटी (आरआरसी)। जैसे ही जांच समिति आत्म-समर्पण को मंजूरी देगी, उसके 30 दिन के भीतर आरआरसी पुनर्वास प्रस्ताव प्रस्तुत करेगी। यही कमेटी अनुदान व मदद जारी करने के मुख्य निर्णय लेगी, विशेषकर घर या भूमि खरीदने या स्वरोज़गार स्थापित करने के लिए। यही कमेटी माओवादी हिंसा के पीड़ितों को राहत प्रदान करने का निर्णय लेगी। 
आरआरसी में एडीजी-इंटेलिजेंस, आईजी-एंटीनक्सल ऑपरेशन्स, संबंधित ज़ोन के आईजी और ज़िले के एसपी शामिल होंगे। नई नीति में कहा गया है कि एसपी आत्म-समर्पण करने वाले माओवादियों की क्षमता का मूल्यांकन करेंगे और उनकी ‘विशिष्टता का सकारात्मक उद्देश्यों के लिए प्रयोग करने हेतु’ उन्हें कोवर्ट ऑपरेटिव के तौर पर भी नियुक्त कर सकते हैं। आत्म-समर्पण नीति के लिए योग्य होने हेतु माओवादियों को कठिन पैमाने पर खरा उतरना होगा, जिसमें शामिल है कि वह अपने साथी कैडर व नेताओं की पहचान उजागर करें, विद्रोही नेटवर्क की सूचना प्रदान करें, विशेषकर यह कि पैसा व हथियार कहां से आते हैं और कूरियर नेटवर्क क्या हैं? उसे सार्वजनिक तौर पर आत्म-समर्पण घोषित करना होगा और जो भी उसने अपराध किये हैं, उन्हें स्वीकार करना होगा। माओवादी निर्धारित अधिकारियों के समक्ष ही आत्म-समर्पण कर सकते हैं, जैसे पुलिस अधिकारी, एग्ज़ीक्यूटिव मैजिस्ट्रेट, केंद्रीय सशस्त्र बलों का अधिकारी (अगर तैनात हो) या राज्य सरकार द्वारा नामांकित अधिकारी। आत्म-समर्पण पूर्ण होने पर यह अधिकारी आत्म-समर्पण व पुनर्वास अधिकारी व एसपी को सूचित करके कैडर को उनमें से एक को सौंप देंगे। इस प्रक्रिया से अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि मध्य प्रदेश की नई नीति कितनी सफल होगी।
 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर