इंसानियत का रिश्ता

अध्यापिका कल्पना व सपना के व्यवहार और पढ़ाने के तरीके से स्कूल के सभी छात्र-छात्राएं खुश थे। स्कूल की छात्रा निर्मला काफी दिनों से स्कूल नहीं आ रही थी। एक दिन अध्यापिका सपना ने बच्चों से पूछा कि बच्चों निर्मला काफी दिनों से स्कूल नहीं आ रही हैं सो क्या बात है।
बच्चों ने कहा कि मैडम वह लम्बे समय से बीमार है और उसका बच पाना अब मुश्किल है चूंकि उसका किड़नी खराब हो गया है और दूसरे किड़नी की व्यवस्था हो नहीं पा रही हैं। यह सुनकर सपना हक्की-बक्की रह गई। चूंकि निर्मला स्कूल की प्रतिभावान छात्र-छात्राओं में से एक विद्यार्थी है।
अध्यापिका सपना स्कूल से सीधी अस्पताल गयी और डॉक्टर आरुषि से बोली, डॉक्टर आरूषि, मैं अपना किड़नी देने को तैयार हूं। बस आप निर्मला को बचा लीजिए। डॉक्टर आरूषि ने सपना से पूछा कि आपका निर्मला से क्या रिश्ता है।
इस पर अध्यापिका सपना ने कहा कि मेरा निर्मला से खून का रिश्ता तो नहीं है, फिर भी इंसानियत का रिश्ता है जिसकी वजह से मैं उसे अपना किड़नी देना चाहती हूं। तमाम जांचों के बाद सपना ने डाक्टर द्वारा दिये गये घोषणा पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए। नियत समय पर ऑपरेशन हुआ और निर्मला को किड़नी मिल गया। ऑपरेशन के बाद दोनों का स्वास्थ्य ठीक पाकर डॉक्टरों की टीम व नर्सिंग स्टाफ ने सपना व निर्मला को बधाई देते हुए उनके स्वास्थ्य लाभ की कामना की और ईश्वर से प्रार्थना की कि इनका स्वास्थ्य सदैव अच्छा बना रहे।
जब दूसरे दिन समाचार पत्रों में गुरु का अपने शिष्य के प्रति इंसानियत का रिश्ता शीर्षक से खबर प्रकाशित हुई तो सभी ने अध्यापिका सपना के इस रिश्ते की सराहना करते हुए कहा कि इंसानियत आज भी जिंदा है जिसके कारण ही गुरु व शिष्य के रिश्ते आज भी प्रगाढ़़ हैं। निर्मला के माता-पिता ने अध्यापिका सपना को गले लगा लिया और कहा कि आपने निर्मला के प्राण बचा कर इसे एक नया जीवन प्रदान किया हैं और आपके त्याग ने यह साबित कर दिया कि इस धरती पर भी देवता रुपी इंसान निवास करते हैं जो संकट की घडी में देवदूत बनकर प्रकट होते हैं। (सुमन सागर)