प्रेम पड़ोस में उपजे, इंस्टाग्राम दिखाय...?

बेचारे कबीरदास जी हमारे बीच नहीं हैं। अगर मौजूद होते तो उन्हें अपने दोहे कि इस पंच लाइन को बदलता पड़ता। ‘प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बीकाए। राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे हीं ले जाए’। उनका कहना था कि प्रेम कहीं खेतों में नहीं उगता और न हीं बाज़ार में बिकता है। लेकिन इन्हें क्या पता था कि बदलते दौर में प्रेम इंटरनेशनल हो गया है। फिर उन्हें इस दोहे की जगह यह लिखना पड़ता ‘प्रेम पड़ोस में उपजे, इंस्टाग्राम दिखाय। जो समझै जौहरी वह बीबी घर लाय’। चलिए बेचारे कम से कम इस मुशीबत से तो बच गए।
अब कबीरदास जी को हम क्या कहें। विशेष रूप से उनके इस दोहे पर ‘प्रेम गली अति सांकरी’। यहां तो प्रेम गली सांकरी है ही नहीं। पूरा का पूरा एशिया और यूरोप समा गया है। सात समंदर के फांसले भी सिमट गए हैं। अमर प्रेमियों लैला-मजनू, शीरीं-फरहाद, हीर-रांझा सोनी-महिवाल, मिर्जा साहिबा की ऐतिहासिक प्रेम कहानियां भी शर्मा रहीं हैं। हमें तो लगता है कि आने वाले समय में प्रेम के इतिहास में यह प्रेम कहानियां खोजने से नहीं मिलेगी। गूगल बाबा तो सबसे पहले अपनी पबजी वाली भौजी की प्रेम कथा दिखाएंगे।
अब देखिए! अपनी पबजी वाली भौजी पूरा इंटरनेशनल वाली हीरोइन बन गई है। अब वह फिल्म में हीरोइन भी बनेंगी और पॉलटिक्स भी करेंगी। आजकल हमारी सीमाओं पर लव शेयरिंग हो रही। बेचारे कुंवारों के लिए तो सोशल मीडिया की लव पाठशाला एक उम्मीद लेकर आयी है। उन्हें लगने लगा है अब घूरे के दिन भी बहुरेंगे। क्योंकि अभी तक इंटरनेशनल क्रिकेट मैच होते थे लेकिन अब लव मैच होने लगा है। लव डिप्लोमैसी एक-एक नया प्रयोग है। यह दुनिया के लिए बड़ा संदेश है। हम अपने प्रेमियों की इस पहल की प्रशंसा करते हैं। बेचारे जुकरवर्ग को हम लाख-लाख शुक्रिया देते हैं। क्योंकि फेसबुक न होता तो हम सीमा पार वाली भौजी कहां से लाते। फिर लव का वर्ल्ड कप कैसे शुरू होता। हमें लवगुरु का धन्यवाद करना ही पड़ेगा। (सुमन सागर)