‘एक राष्ट्र-एक चुनाव’ से लोकतंत्र में गुणात्मक सुधार होगा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केन्द्र सरकार द्वारा देश में ‘वन नेशन-वन इलेक्शन’ के स्वप्न को साकार करने के लिए, उसके विभिन्न पहलुओं के अध्ययन हेतु भारत के पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता में एक समिति बनाने का जो निर्णय लिया है, इसके लिए वह बधाई की पात्र है। मेरे पास ‘समाचार पत्रों में प्रकाशित सर्वाधिक पत्र’ के लिए गिनीज-विश्व-रिकॉर्ड है। ऐसे समय में जब देश, वोट-बैंक की राजनीति के कारण लोकतांत्रिक शासन व्यवस्था की बुराइयों का सामना कर रहा है, राजनीति में कई लोग स्वार्थ के लिए राजनीति को राष्ट्र और उसके नागरिकों की सेवा करने के उपकरण के बजाय, अपने पेशे के रूप में ले रहे हैं। इसलिए भारत की चुनावी और राजनीतिक व्यवस्था में सुधार तत्काल और अत्यंत आवश्यक हैं। संविधान-सभा में डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने ठीक ही टिप्पणी की थी कि संविधान की सफलता मतदाताओं और उम्मीदवारों पर निर्भर करेगी। उनका सात दशक पुराना दृष्टिकोण आज की व्यवस्था में महत्वपूर्ण हो गया है, जहां मतदाता धन, जाति और धर्म से प्रभावित होते हैं, जबकि उम्मीदवार अपनी ऐसी आवश्यकताओं पर मतदाताओं को खुश करने के लिए ऐसे सभी हथकंडे अपनाते हैं।
सवाल है इसके सुधार हेतु क्या हो? सबसे पहले तो कम से कम 34 प्रतिशत निचले सदन के सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित नामांकन पर (वीवीपीएटी से सुसज्जित ईवीएम के जरिये) गुप्त और अनिवार्य मतदान के तहत प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्रियों को अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के साथ एक साथ चुना जाना चाहिए। ऐसे निर्वाचित प्रधानमंत्री/मुख्यमंत्री को इसी प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है। वोट देने का विकल्प नहीं चुनने वाले सदस्य की सदस्यता बरकरार रखते हुए भी उसे सदन में मतदान के अधिकार से वंचित कर देना चाहिये।
राज्यसभा चुनाव के लिए गुप्त मतदान बहाल किया जाना चाहिए लेकिन वीवीपैट प्रणाली से लैस ईवीएम के माध्यम से। चूंकि राज्यों में विधान परिषदों से कोई प्रयोजन पूरा नहीं होता, इसलिए विधान परिषदों के प्रावधान को समाप्त करने के लिए संविधान में संशोधन किया जाना चाहिए। जीवन में कोई चुनाव न लड़ने वालों को ही राज्यसभा का मनोनीत सदस्य नियुक्त किया जाना चाहिए। इसी तरह जिन व्यक्तियों ने अपने जीवनकाल में कोई चुनाव नहीं लड़ा हो, उन्हें ही राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है। किसी भी सांसद या विधायक को अपनी पार्टी या समाज में किसी भी प्रकार के किसी पद में नहीं रखना चाहिए। 
मतदान में अपनी ‘सिक्योरिटी’ खो देने वाले व्यक्तियों को अगले छह वर्षों तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए जबकि ‘उपरोक्त में से कोई नहीं’ (नोटा) विकल्प को व्यावहारिक रूप से उपयोगी बनाया जाना चाहिए। ‘नोटा’ से कम वोट पाने वाले सभी उम्मीदवारों को भविष्य में कोई भी चुनाव लड़ने से रोका जा सकता है। अगर किसी सीट पर नोटा जीतने की स्थिति में हो तो उसके ठीक बाद वाले प्रत्याशी को निर्वाचित घोषित किया जा सकता है, लेकिन केवल उस अवधि के लिए। इसके बाद वह जीवनभर कोई भी चुनाव लड़ने का अधिकार खो सकता है। राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति का चुनाव सभी सांसदों और विधायकों द्वारा एक साथ किया जाना चाहिए। राष्ट्रपति का पद रिक्त होने की स्थिति में उपराष्ट्रपति को शेष कार्यकाल के लिए राष्ट्रपति बनाया जा सकता है, लेकिन उपराष्ट्रपति का पद रिक्त होने की स्थिति में अंतरिम उपराष्ट्रपति का चुनाव केवल सांसदों द्वारा ही किया जा सकता है।
एक बार इन पदों (राज्यपालों के भी) पर आसीन होने वाले व्यक्तियों को फिर जीवन में हमेशा के लिए सक्रिय राजनीति छोड़ देनी चाहिए अन्यथा पेंशन और सरकारी-आवास सहित उनके सेवानिवृत्ति के बाद के सभी लाभ वापस लिए जाएं। संसद द्वारा चुनाव-सुधारों को मंजूरी देने में सामान्य देरी से बचने के लिए, चुनाव आयोग को संसद को एक साल का नोटिस देकर चुनाव-सुधार लागू करने का अधिकार दिया जाना चाहिए। यदि संसद निर्धारित एक वर्ष के भीतर चुनाव आयोग द्वारा प्रस्तावित सुधारों को अस्वीकार नहीं करती है, तो इन्हें संसद द्वारा अनुमोदित माना जाना चाहिए। चुनाव आयुक्तों का चयन तीन सदस्यीय समिति द्वारा किया जाना चाहिए जिसमें प्रधानमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता भी शामिल हों। निर्वाचित प्रतिनिधियों को विधायी कार्यवाही से छूट हटा दी जानी चाहिए; क्योंकि कुख्यात झामुमो-रिश्वत मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने भी दोषी लोगों के खिलाफ कार्रवाई करने में असमर्थता व्यक्त की थी क्योंकि नरसिम्हाराव सरकार को वोट देने के लिए रिश्वत दिए जाने को संसदीय कार्यवाही के तहत प्रतिरक्षा माना गया था। चूंकि आम तौर पर लोकसभा/राज्यसभा/ संसदीय-समितियों के अध्यक्ष सांसदों की अनुचित हरकतों पर अति-नरम होते हैं, इसलिए लोकपाल को सांसदों की अनुचित हरकतों पर गौर करना चाहिए। लोकसभा ने अपने सदस्य राजेश मांझी को अपनी महिला मित्र को पत्नी के रूप में सरकारी खर्चे पर विदेश यात्रा पर ले जाने पर मामूली सजा देते हुए उन्हें लोकसभा की कुछ बैठकों से रोक दिया था, हालांकि इस तरह के कृत्य को संसदीय कार्यवाही के तहत भी प्रतिरक्षित नहीं किया गया था। कोर्ट-समन या वारंट से फरार सांसद की सत्र में भाग लेने के लिए संसद भवन में उपस्थिति की सूचना तुरंत संबंधित पुलिस-अधिकारियों को दी जानी चाहिए। समन/वारंट का निष्पादन पूरा होने तक फरार सदस्य को संसद भवन छोड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
सदन में 75 प्रतिशत से कम उपस्थिति वाले सांसदों और विधायकों को अगले छह वर्षों तक कोई भी चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। जॉर्ज फर्नांडीज का अपनी सारी याद्दाश्त खोदेने के बावजूद राज्यसभा के लिए चुने जाने का मामला बड़ा दिलचस्प है। सांसदों को अपने बायोडाटा में अपने सभी विवरण अनिवार्य रूप से भरने होंगे, जिसमें उनकी संपत्ति का विवरण, पति/पत्नी का नाम आदि शामिल हो। नियम यह भी होना चाहिए कि सरकारी बकाया जैसे पानी, बिजली, टेलीफोन, किराया या किसी अन्य की सभी कटौतियां उन्हें देय वेतन/भत्तों/पेंशन आदि से की जाएं। इसी तरह पेंशन और अन्य भुगतान तब तक रोके रखे जाने चाहिए जब तक कि पूर्व सांसद/मंत्री सरकारी आवास खाली न कर दें। 

-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर