समुद्र पर भी दिखाई देने लगा जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का संकट अब धरती से लेकर समुद्र तक स्पष्ट दिखाई देने लगा है। जहां धरती गर्म हो रही है, वहीं समुद्र ठंडा नहीं हो पा रहा है। लिहाजा मनुष्य समेत अन्य प्राणियों के दोनों ही रहवासों के तापमान में वृद्धि हो रही है। इस गर्मी का सबसे ज्यादा असर अमरीका और यूरोप में अनुभव किया गया। इसकी वजह एएमओसी सिस्टम (अटलांटिक मेरिडियोनल ओवरटर्निंग सर्कुलेशन) का कमज़ोर होना है, जो ताप को पूरी धरती में बांटता हैं। दरअसल हम ईंधन जलाकर कारखानों, वाहनों, ऊर्जा संयंत्रों और पराली जलाकर जितनी ऊर्जा पैदा करते हैं, उसकी करीब 60 गुना यानी 1000 टेरावाट ऊर्जा धरती के पारिस्थीतिकी तंत्र और समुद्री जल के जरिए उष्णकटिबंध से उत्तरी धु्रव की ओर जाता है। इसमें भी करीब आधा पानी उत्तरी अटलांटिक सागर में जाता है। यह गर्म पानी तटों के साथ-साथ उत्तर की ओर बढ़ता है और समुद्र में डूबता जाता है। इसके बाद यह पानी वापस दक्षिण की ओर आता है। इसमें क्षार की मात्रा बढ़ती जाती है। लिहाजा समुद्र और धरती दोनों का ही तापमान बढ़ जाता है। एएमओसी तंत्र कमज़ोर पड़ने के कारण समुद्र तटीय इलाकों में समुद्र का पानी ज्यादा खारा हो रहा है, नतीजतन ताप एक समान मात्रा में धरती पर नहीं पहुंच रहा। यही वजह है  कि इस बार दक्षिण-पश्चिम अमरीका, यूरोप, भू-मध्य सागरीय देश और चीन में ज्यादा गर्मी पड़ी। 17 जुलाई, 2023 को 120 साल में सबसे ज्यादा गर्म दिन दर्ज किया गया है। ऐसे कारणों से जहां समुद्र में ऑक्सीजन घट रही है, वहीं अग्नि तत्व में वृद्धि हो रही है। इस अग्नि में वैज्ञानिक भविषय का ईंधन भी तलाश रहे हैं।    
मौसम में बदलाव की आहट का असर समुद्र की सतह में भी दिखाई देने लगा है। इस असर से समुद्र की परिस्थितिकी (इकोसिस्टम) तंत्र के गड़बड़ाने का संकट है। इस वजह से समुद्र की ऐसी तलहटियों में ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है, जहां पहले से ही ऑक्सीजन कम है। समुद्री ऑक्सीजन की गिरावट जारी रही तो तय है कि ऐसे समुद्री जीवों के मरने का सिलसिला शुरू हो जाएगा, जिन्हें मनुष्य भोजन के रूप में इस्तेमाल करता है। खाद्यान्न की इस कमी के कारण भी समुद्र तटीय इलाकों से लोगों को पलायन करना पड़ेगा, जो पर्यावरण शरणार्थियों की संख्या में इजाफा करेगा। यह स्थिति समुद्री रेगिस्तान का विस्तार भी करेगी।
ताज़ा अनुसंधानों से पता चला है कि पिछले 50 सालों में समुद्रों में ऐसे क्षेत्रों का विस्तार हुआ है, जहां ऑक्सीजन की मात्रा में आशातीत कमी दर्ज की गई है। ऐसी आशंका जताई गई है कि इसका सीधा संबंध वैश्विक जलवायु परिवर्तन से है। जानकारों का मत है कि यदि यही हालत बने रहे तो समुद्री परिस्थिकीय तंत्र पर विपरीत असर होगा। दरअसल समुद्र की एक निश्चित गहराई पर ऑक्सीजन की मात्रा की न्यूनतम परत होती है। यह परत ऊपर नीचे दोनों तरफ  फैल रही है। ग्लोबल वार्मिंग के भारत पर असर की एक खास बात यह रहेगी कि तापमान सर्दियों के मौसम में ज्यादा बढ़ेगा। लिहाज़ा सर्दियां उतनी कड़क नहीं होंगी, जितनी कि होती रही हैं। गर्मियों में मानसून के मौसम में ज्यादा बदलाव नहीं आएगा। मौसम छोटे होते जाएंगे, जिसका सीधा असर वनस्पतियों पर पड़ेगा। फलस्वरूप कम समय में होने वाली सब्ज़ियों को तो पकने का भी पूरा समय नहीं मिल सकेगा। विभिन्न अध्ययनों में खुलासा हुआ है कि सन् 2050 तक भारत का धरातलीय तापमान 3 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ चुका होगा। सर्दियों के दौरान यह उत्तरी व मध्य भारत में 3 डिग्री सेल्सियम तक बढ़ेगा तो दक्षिण भारत में केवल 2 डिग्री तक। इससे हिमालय के शिखरों से बर्फ  पिघलने और वहां से निकलने वाली नदियों में जल बहाव तेज़ हो जायेगा। इस सब का मानसून पर यह असर पड़ेगा कि मध्य भारत में सर्दियों के दौरान वर्षा में 10 से 20 फीसदी की कमी आ जाएगी और उत्तर-पश्चिम भारत में 30 फीसदी तक। अध्ययन बताते हैं कि 21वीं सदी के अंत तक भारत में वर्षा 7 से 10 फीसदी बढ़ेगी लेकिन सर्दियां कम हो जाएंगी। 
जलवायु में निरन्तर हो रहे परिवर्तन से दुनिया में पशु-पक्षियों की 72 फीसदी प्रजातियों पर खतरा मंडरा रहा है। समुद्र के जलस्तर में पिछली एक सदी में हुई वृद्धि चिंता पैदा करने वाली है, वैज्ञानिकों के एक समूह ने कहा है कि मानव जनित कारणों से हो रही ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिछली एक सदी में समुद्री जलस्तर इतनी तेज़ी से बढ़ा है, जितना पिछली 27 सदियों में भी नहीं बढ़ा। वर्ष 1900 से 2000 तक समुद्री जलस्तर 14 से.मी. या 5.5 इंच बढ़ा है। अगर ग्लोबल वार्मिंग न होती तो यह वृद्धि 20वीं सदी की वृद्धि की आधी से भी कम होती। उल्लेखनीय है कि तुलनात्मक तौर पर आज वैश्विक औसत तापमान 19वीं सदी के अंत के तापमान से एक डिग्री सेल्सियस ज्यादा है, ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को लेकर वैज्ञानिकों द्वारा दी गई यह चेतावनी एक बार फिर से अपने विकास के मॉडल को लेकर पुनर्विचार का आग्रह कर रही है? नि:संदेह हमारे वैज्ञानिक अनुसंधानों ने मानव जाति का जीवन बहुत आसान कर दिया है, उसे सुख-सुविधा से भर दिया है, लेकिन उससे आम जन और पर्यावरण को भारी क्षति हुई है।  
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