प्रधानमंत्री पद पर दावे आपसी फूट नहीं, विपक्षी रणनीति है

 

‘इंडिया’ गठबन्धन बनने के बाद कई विपक्षी दल प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा कर रहे हैं। अगर गठबंधन की सरकार बन जाती है तो प्रधानमंत्री कौन बनेगा? इस सवाल का जवाब जनता जानना चाहती है और मीडिया भी लगातार गठबंधन के नेताओं से यह जानने की कोशिश कर रहा है।  विपक्षी दलों का कहना है कि उनके पास ऐसे बहुत-से नेता हैं जो प्रधानमंत्री बन सकते हैं। कुछ दलों का कहना है कि प्रधानमंत्री पद का फैसला चुनावों के बाद किया जाएगा। इसके बावजूद कई दलों के कार्यकर्ता या छोटे नेता लगातार प्रधानमंत्री पद पर अपने नेता के लिए दावा कर रहे हैं। बिहार में जेडीयू और आरजेडी के कार्यकर्ता और नेता नितीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने का नारा लगा रहे हैं। जेडीयू के नेता ललन सिंह कहते हैं कि नितीश कुमार केन्द्र सरकार में बड़े मंत्रालय संभाल चुके हैं और बिहार में कई वर्षों से वह लगातार मुख्यमंत्री पद संभाल रहे हैं। उनका कहना है कि नितीश कुमार से बेहतर प्रधानमंत्री कोई हो नहीं सकता। आरजेडी एक रणनीति के तहत चाहती है कि नितीश कुमार प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार बन जायें और तेजस्वी यादव के लिए मुख्यमंत्री की कुर्सी खाली कर दें। 
नितीश कुमार पुराने खिलाड़ी हैं, वह खुद प्रधानमंत्री बनने का दावा नहीं करते हैं, लेकिन अपने नेताओं से नारे भी लगवाते रहते हैं। ऐसा नहीं लगता है कि वह लोकसभा चुनावों से पहले प्रधानमंत्री पद के लालच में मुख्यमंत्री पद छोड़ सकते हैं। केजरीवाल की पार्टी भी लगातार अपने नेता को प्रधानमंत्री बनाने की मांग करती रहती है। केजरीवाल पढ़ा-लिखा प्रधानमंत्री बनाने की मांग करते रहते हैं। वास्तव में वह खुद को सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा समझते हैं। उनकी यह मांग ही एक तरह से प्रधानमंत्री पद पर उनका दावा है। कांग्रेस कुछ भी घोषणा करती रहे लेकिन हर कांग्रेसी चाहता है कि राहुल गांधी ही गठबंधन के प्रधानमंत्री पद के दावेदार हों। कांग्रेस में राहुल के अलावा किसी अन्य को प्रधानमंत्री बनाने की बात कार्यकर्ता और नेता सुनना नहीं चाहते। बड़ी राष्ट्रीय पार्टी होने के कारण प्रधानमंत्री पद पर कांग्रेस का दावा न्यायसंगत है। ममता बनर्जी की पार्टी भी अपने नेता को प्रधानमंत्री बनाने का सपना देख रही है। समाजवादी पार्टी का भी यही हाल है। डीएमके भी चाहती है कि इस बार प्रधानमंत्री दक्षिण भारत से बने और इस बयान के पीछे स्टालिन की प्रधानमंत्री बनने की इच्छा छिपी हुई है। एनसीपी में टूट से पहले यह सपना शरद पवार भी देख रहे थे, लेकिन अब उनका सपना टूट चुका है ।  
 गठबंधन के घटक दलों द्वारा प्रधानमंत्री पद पर दावों को विपक्षी एकता के खिलाफ  माना जा रहा है। भाजपा और उसका समर्थक मीडिया यह प्रचार करता रहता है कि जब भी नेता का चुनाव होगा, तब गठबंधन टूट जाएगा। जबकि माना जा रहा है कि गठबंधन नेता के चुनाव पर नहीं, सीटों के बंटवारे पर यह टूट सकता है। गठबंधन अपने नेता का चुनाव नहीं करने वाला। बिना सीटों के बंटवारे के गठबंधन चुनाव नहीं लड़ सकता लेकिन बिना नेता के चुनाव लड़ सकता है। विपक्ष अन्त में यह घोषणा करने वाला है कि वह अपने नेता का चुनाव लोकसभा चुनावों के बाद करेगा। सवाल पैदा होता है कि क्यों गठबंधन के घटक दल अपना नेता नहीं चुनना चाहते?  वास्तव में विपक्षी दलों के लिए अपना नेता चुनना बहुत मुश्किल है। अभी किसी को भी सर्वसम्मति से अपना नेता मानना किसी भी दल के लिए संभव नहीं है।  कांग्रेस गठबंधन की सबसे बड़ी पार्टी है और राहुल गांधी इसके सबसे बड़े नेता हैं। तकनीकी रूप से मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के अध्यक्ष हैं, लेकिन वह किसकी कृपा से अध्यक्ष बने हैं, यह वह खुद बता चुके हैं। राहुल के अलावा कांग्रेस किसी को भी अपना नेता नहीं मानेगी, लेकिन गठबंधन के कई दल कभी भी राहुल को अपना नेता मानने वाले नहीं हैं। 
विपक्ष ने भाजपा विरोधी मतों के विभाजन को रोकने के लिये ही गठबंधन बनाया है। गठबंधन के लिये सीटों का बंटवारा ही सबसे बड़ा मुद्दा है और वह इसके लिए पूरे प्रयास कर रहा है। विपक्ष जानता है कि अगर वह राजग को हराने में कामयाब हो जाता है तो नेता का चुनाव करना मुश्किल ज़रूर होगा, लेकिन वह हो जायेगा।  सत्ता की मलाई खाने के लिये राजनीतिक दल हर प्रकार के समझौते कर लेते हैं, यह तो भारतीय राजनीति की सच्चाई है। इसलिए लगता है कि विपक्ष ने यह रणनीति बना ली है कि कोई भी दल प्रधानमंत्री पद पर अपना दावा कर सकता है और दूसरे घटक दल इस पर चुप रहेंगे। वे किसी के दावे का विरोध नहीं करेंगे। यही कारण है कि जब कांग्रेस के नेताओं से पूछा जाता है कि आम आदमी पार्टी के नेता केजरीवाल को प्रधानमंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं तो यही जवाब मिलता है कि हर पार्टी अपने नेता को प्रधानमंत्री बनाना चाहती है, इसमें गलत क्या है। ऐसा जवाब सभी घटक दल एक-दूसरे के लिये देते हैं । 
 इसके पीछे बहुत सोची समझी रणनीति काम कर रही है। अगर कांग्रेस ममता बनर्जी, केजरीवाल या नितीश कुमार को प्रधानमंत्री बनाने के नाम पर वोट मांगने जाती है तो कांग्रेस के सभी समर्थकों का वोट भी कांग्रेस को नहीं मिलेगा। इसी प्रकार बंगाल में राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने के लिये वोट मांगना टीएमसी के लिए बहुत मुश्किल होगा। केजरीवाल की पार्टी पंजाब और दिल्ली में ममता या राहुल के नाम पर वोट मांगने के लिए तैयार नहीं होगी। अगर कांग्रेस किसी दूसरे नेता को प्रधानमंत्री बनाने के लिये वोट मांगने जाती है तो उसकी सीटें पहले से भी कम हो सकती हैं। यही हाल सभी पार्टियों का है। ये दल किसी दूसरे दल के नेता को प्रधानमंत्री बनाने की बात करते हैं तो इनके कार्यकर्ताओं की फौज आराम से घर बैठ सकती है। इन सभी को अपनी लोकसभा सीटें कम होने का खतरा पैदा हो सकता है। इनके लिए यही सही है कि अपने-अपने नेताओं को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बताते हुए जनता के बीच जाएं।  इससे न तो इनके कार्यकर्ता निष्क्रिय होंगे और न ही समर्थक छिटकेंगे। (युवराज)