अभी जारी रहेगा जी-20 की सफलता का प्रचार  

जी-20 शिखर सम्मेलन हो चुका है और उसकी अध्यक्षता भी भारत के हाथ से निकल कर ब्राज़ील के पास चली गई है, लेकिन उसका प्रचार थमने वाला नहीं है। संसद के विशेष सत्र और उसके बाद पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में जी-20 का ज़ोर-शोर से प्रचार किया जाएगा। 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस बड़े आयोजन का प्रचार करने और अधिकतम लाभ लेने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसीलिए शिखर सम्मेलन खत्म होने के बाद से हर दिन कोई न कोई कार्यक्रम हो रहा है जो इससे जुड़ा हुआ है। जैसे सम्मेलन के अगले दिन मोदी भारत मंडपम गए, जहां क्राफ्ट का मेला लगा हुआ है। उन्होंने विदेश मंत्रालय के अधिकारियों के साथ सुषमा स्वराज भवन में चर्चा की और उन्हें धन्यवाद दिया। उसके बाद 13 सितम्बर को मोदी भाजपा की केंद्रीय चुनाव समिति की बैठक में हिस्सा लेने भाजपा मुख्यालय पहुंचे तो फूल बरसा कर उनका स्वागत किया गया। उसी दिन कैबिनेट की बैठक में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने मोदी को बधाई देने और उनके अभिनंदन का प्रस्ताव रखा, जिसे मंज़ूर किया गया। इसके बाद तय हुआ कि प्रधानमंत्री मोदी जी-20 सम्मेलन में सुरक्षा का जिम्मा संभालने वाले साढ़े चार सौ लोगों के साथ भारत मंडपम में ही डिनर करेंगे। इसके बाद संसद के विशेष सत्र में इसके सफल आयोजन के लिए प्रधानमंत्री का अभिनंदन होना है। इसी बीच चुनाव वाले राज्यों में भी प्रधानमंत्री के दौरे शुरू हो चुके हैं और अपने भाषणों में वे खुद जी-20 शिखर सम्मेलन की कामयाबी का बखान कर रहे हैं। 
अचानक पैदा हुआ भारत प्रेम
भाजपा और केंद्र सरकार का भारत प्रेम अचानक ही जागा है। पहले इस तरह की कोई पहल न तो भाजपा की ओर से हो रही थी और न ही केंद्र सरकार ऐसा कुछ सोच रही थी। यहां तक कि कोई दो दशक पहले मुलायम सिंह यादव ने देश का नाम ‘भारत’ करने का सुझाव दिया था तो तत्कालीन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन सरकार ने उसे ठुकरा दिया था। उत्तर प्रदेश के मौजूदा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बतौर सांसद लोकसभा में एक प्रस्ताव रखा था कि देश का नाम ‘हिन्दुस्तान’ कर देना चाहिए। इसके अलावा भी कई ऐसे तथ्य हैं, जिनसे पता चलता है कि भाजपा का भारत प्रेम अचानक जागा है। जब विपक्षी पार्टियों के गठबंधन ने बैंगलुरू की बैठक में अपना नाम ‘इंडिया’ कर लिया तो उसकी काट में ‘भारत’ नाम आगे बढ़ाया जा रहा है। एक रिपोर्ट के मुताबिक केंद्र सरकार की इस समय लगभग दो सौ योजनाएं चल रही हैं, जिनमें से कई योजनाएं नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद शुरू की हैं। मोदी सरकार की योजनाओं में से 52 के नाम में ‘इंडिया’ शामिल है। इसके बाद सबसे ज्यादा 22 योजनाओं के नाम में ‘प्रधानमंत्री’ है और सिर्फ  पांच योजनाओं के नाम में ‘भारत’ है। सो, ज़ाहिर है कि अगर मोदी या भाजपा का भारत प्रेम पुराना होता तो सरकार बनने के बाद 50 से ज्यादा योजनाएं इंडिया नाम से नहीं शुरू की जाती। ‘इंडिया’ नाम सिर्फ  योजनाओं में ही नहीं, बल्कि हर जगह बोलने और लिखने में भी इस्तेमाल हो रहा था, लेकिन अचानक पिछले दो हफ्ते में सब कुछ बदल गया। सरकारी स्तर पर हर जगह ‘भारत’ लिखा जाने लगा है।
भारत का कोई राष्ट्रीय धर्म नहीं 
संविधान के मुताबिक भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य है। कहने को यह कहा जा सकता है कि संविधान की प्रस्तावना में धर्म-निरपेक्ष शब्द पहले नहीं था। इसे संविधान सभा ने शामिल नहीं किया था। बाद में इसे भले ही इंदिरा गांधी ने शामिल कराया, लेकिन अब यह संविधान का हिस्सा है। जब यह संविधान का हिस्सा नहीं था तब भी भारत एक धर्म-निरपेक्ष राज्य था। भारत में जिस तरह से राष्ट्रीय पशु, राष्ट्रीय पक्षी या दूसरे राष्ट्रीय चिन्ह हैं, उस तरह से राष्ट्रीय धर्म का सिद्धांत कभी नहीं रहा। इसलिए यह वास्तविकता है कि भारत में कोई राष्ट्रीय धर्म नहीं है। इसके बावजूद संवैधानिक पद पर बैठे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि सनातन धर्म भारत का राष्ट्रीय धर्म है। उन्होंने यह भी कहा कि इसके शाश्वत होने पर किसी को संदेह नहीं होना चाहिए। दरअसल ये दोनों अलग-अलग बातें हैं। सनातन धर्म शाश्वत है, यह विश्वास की बात है। लेकिन सनातन धर्म भारत का राष्ट्रीय धर्म है, यह तथ्यात्मक और संवैधानिक दोनों तरीके से गलत है। 
कश्मीर भी दिल्ली जैसा राज्य होगा? 
जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा शायद ही बहाल होगा। इस बारे में सुप्रीम कोर्ट के ज़ोर देकर पूछने के बावजूद केंद्र सरकार ने गोलमोल जवाब दिया है और कोई समय सीमा नहीं दी है। राज्य में विधानसभा चुनाव को लेकर सरकार ने ज़रूर कहा कि जल्दी चुनाव करवाये जाएंगे। हालांकि उसमें भी कहा गया कि पहले पंचायत चुनाव होंगे, लेकिन यह लगभग तय लग रहा है कि विधानसभा चुनाव लोकसभा चुनाव के साथ ही होगा। यह नहीं हो सकता है कि चुनाव आयोग कहे कि राज्य में लोकसभा चुनाव करवाने के हालात हैं, लेकिन विधानसभा के चुनाव नहीं हो सकते है। इसलिए अगर जम्मू-कश्मीर में लोकसभा का चुनाव होता है तो विधानसभा का चुनाव भी साथ ही होगा, लेकिन इसका यह मतलब नहीं होगा कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो जाएगा। गौरतलब है कि कश्मीर की सभी पार्टियों की मांग है कि पहले राज्य का दर्जा बहाल किया जाए और उसके बाद चुनाव कराए जाएं। जबकि सरकार का कहना है कि चुनाव पहले होगा और राज्य का दर्जा बाद में बहाल होगा। इसीलिए माना जा रहा है कि जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा जल्दी बहाल नहीं होगा। आशंका है कि वहां दिल्ली जैसी व्यवस्था हो सकती है कि चुनी हुई सरकार हो लेकिन सरकार चलाने के सारे अधिकार उप-राज्यपाल के ज़रिए केंद्र के हाथ में हों। यह भी संभव है कि अगर वहां चुनाव के बाद किसी तरह से भाजपा का मुख्यमंत्री बन जाता है तो शायद पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल हो जाए। 
हरियाणा में भाजपा की रणनीति
हरियाणा में भाजपा अगला विधानसभा चुनाव भी पिछले दो चुनावों की तरह अकेले ही लड़ने की तैयारी कर रही है। 2014 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद हरियाणा में पार्टी को अपनी नई ताकत का अहसास हुआ और वह 2014 व 2019 में अकेले लड़ी। हालांकि 2019 के चुनाव में उसे बहुमत से कुछ कम सीटें मिली थीं, जिसकी वजह से उसे नई बनी जननायक जनता पार्टी का समर्थन लेना पड़ा, लेकिन इस बार भी लग रहा है कि भाजपा लगातार तीसरा चुनाव अकेले लड़ेगी। वह दुष्यंत चौटाला की पार्टी से तालमेल नहीं करेगी। चौटाला को भी इसका अंदाज़ा है। इसीलिए वह दबाव की राजनीति के तहत राजस्थान में चुनाव लड़ने पहुंचे हैं, जहां 75 फीसदी आरक्षण का अपना पुराना दांव चला रहे हैं। दरअसल हरियाणा में भाजपा को गैर-जाट राजनीति करनी है इसलिए वह दुष्यंत चौटाला के साथ मिल कर नहीं लड़ सकती। भाजपा से पहले भजन लाल की पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस गैर-जाट राजनीति करती थी, जिसका विलय कांग्रेस में हो गया था। दुष्यंत के दादा ओम प्रकाश चौटाला का इंडियन नेशनल लोकदल भी अलग लड़ेगा ही। इसलिए जाट वोट के बंटवारे का लाभ भाजपा को मिल सकता है।