विशाल व्यक्तित्व के धनी थे लाल बहादुर शास्त्री

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्तूबर, 1904 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी से सात मील दूर एक छोटे से रेलवे टाऊन मुगलसराय में हुआ था। जब लाल बहादुर डेढ़ वर्ष के थे, तब उनके पिता जी का देहांत हो गया था। ़गरीबी की मार पड़ने के बावजूद  इनका बचपन खुशहाली के साथ बीता। लाल बहादुर को वाराणसी में चाचा के साथ रहने के लिए भेज दिया गया जहां उन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। इनका बचपन प्रतिकूल परिस्थितियों तथा संघर्षों से भरा हुआ था। इन्हीं संघर्षों ने शास्त्री जी के व्यक्तित्व में महानता का संचार किया। शास्त्री जी का सम्पूर्ण जीवन श्रेष्ठ उच्च नैतिक मूल्यों, आदर्शों से परिपूर्ण था। महात्मा गांधी के चिंतन का उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर विशेष रूप से प्रभाव था। काशी विद्यापीठ से स्नातक शास्त्री की परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरांत तत्कालीन भारत की विकट परिस्थितियों को देखते हुए ये स्वाधीनता संग्राम में कूद पड़े। 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शास्त्री जी ने बढ़-चढ़ कर भाग लिया। 1930 में दांडी मार्च तथा 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ‘जय जवान और जय किसान’ का नारा देकर इन्होंने भारतवर्ष की स्वतंत्रता के लिए ग्रामीण परिवेश में निवास करने वाले अन्नदाता साधारण किसानों तथा देश की रक्षा में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले सैनिकों के सम्मान में जनमानस को जोड़ा। 
स्वतंत्रता संग्राम के दौरान इन्होंने ‘मरो मत, बल्कि मार डालो’ के आदर्श वाक्य को लोकप्रिय बनाया जिसने देशवासियों में स्वतंत्रता की अग्नि प्रज्वलित की। शरीरिक कद में छोटा होते हुए भी वह विशाल व्यक्तित्व के धनी थे। उन्होंने अपने विनम्र स्वभाव, मृदु भाषी व्यवहार तथा साधारण लोगों के साथ विशेष जुड़ाव के कारण भारतीय राजनीति पर  अमिट छाप छोड़ी। दृढ़ इच्छा शक्ति के स्तम्भ लाल बहादुर जी ने अपने जीवन में आई कठिनाइयों को निरन्तर संघर्ष से सरलता के साथ पार किया तथा सबके प्रेरणा स्रोत बने। विकट से विकट परिस्थितियों में भी उन्होंने अपने जीवन के नैतिक आदर्शों को नहीं छोड़ा। 1956 में जब वह रेल मंत्री थे, तब तमिलनाडु में हुई एक ट्रेन दुर्घटना में अनेक लोगों की मृत्यु हो गई थी। शास्त्री जी ने इस घटना से आहत होकर नैतिक ज़िम्मेवारी लेते हुए अपने पद से त्यागपत्र दे दिया था। 
सन् 1964 में नेहरू जी की मृत्यु के पश्चात वह भारत के प्रधानमंत्री बने। प्रधानमंत्री पद का उनका समय विकट परिस्थितियों से परिपूर्ण था। 1965 में भारत-पाकिस्तान का युद्ध हुआ। उस समय देश में अनाज की भारी कमी थी। उन्होंने सर्वप्रथम स्वयं तथा अपने परिवार से एक दिन का भोजन छोड़ने की प्रतिज्ञा ली और उसके पश्चात ऑल इंडिया रेडियो से सम्पूर्ण भारतवर्ष की जनता से सप्ताह में एक दिन का भोजन त्याग करने का आग्रह किया। सम्पूर्ण भारत ने उनके इस आग्रह को देशहित हेतु स्वीकार किया। 
सादगी और सरलता शास्त्री के चरित्र की महान विशेषताएं थीं। वह एक सामान्य परिवार में पैदा हुए थे। सामान्य परिवार में ही उनकी परवरिश हुई और जब वह देश के प्रधानमंत्री जैसे महत्वपूर्ण पद पर पहुंचे, तब भी वह सामान्य ही बने रहे। विनम्रता, सादगी और सरलता उनके व्यक्तित्व में एक विचित्र प्रकार का आकर्षण पैदा करती थीं। वह मनसा, वाचा, कर्मणा पूर्ण रूप से भारत देश के उत्थान को समर्पित थे। सरकारी साधनों को वह कभी भी अपने व्यक्तिगत कार्य के लिए प्रयोग नहीं करते थे। शास्त्री जी के बेटे सुनील शास्त्री ने अपनी किताब ‘लाल बहादुर शास्त्री मेरे बाबू जी’ में देश के पूर्व प्रधानमंत्री के जीवन से जुड़े कई आत्मीय प्रसंग साझा किये हैं। 
उन्होंने अपनी किताब में लिखा है कि उनके पिता सरकारी खर्चे पर मिली कार का प्रयोग नहीं करते थे। एक बार उन्होंने अपने पिता की कार चला ली तो उन्होंने किलोमीटर का हिसाब कर पैसा सरकारी खाते में जमा करवाया था। प्रधानमंत्री के पद पर होते हुए एक बार लाल बहादुर शास्त्री अपनी पत्नी के लिए साड़ी खरीदने एक मिल में गए। मिल के मालिक ने उन्हें कुछ महंगी साड़ियां दिखाईं तो उन्होंने कहा कि उनके पास इन्हें खरीदने लायक पैसे नहीं हैं। मिल मालिक ने जब साड़ी गिफ्ट देनी चाहिए तो उन्होंने इसके लिए सख्ती से इन्कार कर दिया। 
शास्त्री जी मन और कर्म से पूर्ण रूप से गांधीवादी थे। बहुत कम साधनों में ही अपना जीवन जीते थे। अपना फटा हुआ कुर्ता अपनी पत्नी को दे दिया करते  और उन्हीं से रुमाल बनाकर इनका इस्तेमाल करते थे। कर्म के प्रति अटल आस्था और सम्पूर्ण समर्पण लाल बहादुर जी की विशिष्टता थी। वह धरती से जुड़े हुए व्यक्ति थे। भारतवर्ष के निर्धन गरीब किसानों के प्रति उनका विशेष लगाव था। उच्च पद एवं राजनीतिक प्रतिष्ठा प्राप्त करने के पश्चात भी उन्होंने कभी अपने जीवन के नैतिक आदर्शों, सरलता, सादगी से समझौता नहीं किया। वर्तमान के राजनेताओं को लाल बहादुर शास्त्री के सादगीमय जीवन से पूर्ण उत्कृष्ट आदर्शों को अपने राजनीतिक जीवन में आत्मसात करने की परम आवश्यकता है।