गुप्पी यानि सप्तरंगी मछली

गुप्पी ताजे पानी की एक विलक्षण मछली है। यह सेंट लूसिया तथा ट्रिनिडाड जैसे कैरेबियन द्वीपों से लेकर दक्षिण अमरीका के उत्तरी भागों तक तथा वेस्टइंडीज में करोड़ों की संख्या में मिलती है। यह एक रंग बिरंगी सुंदर मछली है। इसीलिए इसे इंद्रधनुषी मछली यानी रैनबो फिश भी कहते हैं। गुप्पी को लाखों लोग इसकी सुंदरता के कारण एक्वेरियम में रखते हैं और पालते हैं। गुप्पी की खोज सन् 1866 में ट्रिनिडाड के राबर्ट गुप्पी ने की थी, अत: उन्हीं के नाम पर इसका नाम गुप्पी रखा गया और यह आगे चलकर इसी नाम से प्रसिद्ध हुई। कुछ जीव वैज्ञानिकों के अनुसार गुप्पी की खोज 1859 में ही कर ली गयी थी। किन्तु इस संबंध में प्रामाणिक तथ्यों का अभाव है। सर्वप्रथम सन् 1908 में एक जीवित गुप्पी को जर्मनी ले जाया गया। इसके बाद यह यूरोप के अन्य देशों में पहुंची। गुप्पी को जहां भी ले जाया गया, वहां यह अपने सुंदर रंगों के कारण लोकप्रिय हुई।
गुप्पी की शारीरिक संरचना ताजे पानी की सामान्य मछलियों से कुछ भिन्न होती है। इनमें नर की लंबाई लगभग 3 सेंटीमीटर होती है, लेकिन मादा की लंबाई नर की दुगनी तक हो सकती है। कभी-कभी 15 सेंटीमीटर तक लंबी मादा गुप्पी भी देखने को मिल जाती है। इनमें नर गुप्पी रंग बिरंगा होता है। इसका शरीर प्राय: लाल, नारंगी, पीला, हरा तथा बैंगनी होता है। कुछ नरों के शरीर पर काले रंग के धब्बे भी होते हैं। मादा गुप्पी का रंग प्राय: सफेद होता है। एक्वेरियम में रखने पर यह फीके जैतूनी रंग की हो जाती है। हालांकि मादा गुप्पी के रंग नर के समान मोहक और चमकीले नहीं होते।
गुप्पी पानी की सतह पर आकर भोजन करने वाली मछली है। इसका प्रमुख भोजन ताजे पानी के कीड़े-मकोड़े, काई तथा अन्य मछलियों के अंडे हैं। यह अन्य मछलियों के अंडे खाकर उन्हें हानि पहुंचाती है, अत: कुछ लोग इसे पसंद नहीं करते हैं। गुप्पी के मुंह की पकड़ इतनी मजबूत होती है कि एक बार यह जिस कीड़े को पकड़ लेती है, वह बच नहीं पाता। गुप्पी स्वजाति भक्षी है। 
नर गुप्पी 3 सेंटीमीटर का होने पर प्रजनन योग्य हो जाता है। इसके बाद इसके आकार का बढ़ना भी रुक जाता है। मादा गुप्पी भी 3 सेंटीमीटर की हो जाने पर वयस्क अर्थात प्रजनन योग्य हो जाती है, लेकिन इसका आकार इसके बाद भी बढ़ता रहता है। प्रजनन काल में मादा गुप्पी के शरीर में अनेक परिवर्तन होते हैं। इसका पेट अंडाें के कारण फूल जाता है तथा नितम्ब के पास एक गहरा धब्बा उभर आता है। 
नवजात गुप्पी जैसे ही जन्म लेती है, वैसे ही जन्म देने वाली मादा मुड़कर इसे पकड़ने और खाने का प्रयास करती है। अपने उद्देश्य में कभी-कभी मादा गुप्पी सफल भी हो जाती है, नवजात गुप्पी यदि जन्म देने वाली मादा गुप्पी से दूर होती है अथवा सतह पर आकर हवा ले लेती है तो प्राय: बच जाती है। नवजात गुप्पियों को बचाने के लिए जीव वैज्ञानिक प्राय: एक पिंजरे का उपयोग करते हैं। ये एक्वेरियम में मादा गुप्पी को एक ऐसे पिंजरे में रखते हैं, जिसके भीतर जन्म लेते ही नवजात गुप्पी तुरंत बाहर आ जाती है।
-इमेज रिफ्लेक्शन सेंटर