कुड़िये, कर हर मैदान ़फतेह एशियाई खेलों में भारतीय लड़कियों का शानदार प्रदर्शन

आजकल हर तरफ एक ही बात की चर्चा है, वाह-वाह हो रही है, गली-गली बच्चों से लेकर बड़ों तक हर किसी में पूरा जोश भरा नज़र आता है, जोश इस बात का— भारत ने पहली बार एशियाई खेलों में 100 से ऊपर पदक प्राप्त किए हैं। हमारी पंजाब, हिन्दुस्तान की बेटियों ने इस बार हर उस खेल में पदक हासिल करने के लिए पूरा ज़ोर लगाया है, जिन खेलों में लड़कियों की शमूलियत कम होती था। क्रिकेट, तीरंदाजी, निशानेबाज़ी, दौड़, आर्चरी, मुक्केबाज़ी आदि खेलों में इस बार हमारी बेटियों ने वाह-वाह करवाई है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जब अपने देश के खिलाड़ियों का बढ़िया प्रदर्शन होता है तो हर भारतीय को खुशी महसूस होना लाज़मी है। इस बार पदक जीतने के साथ-साथ एक जो अलग एहसास था, वह यह था कि पहले तो लड़कियों की इस बार पूरी तरह शमूलियत बहुत अच्छी थी और दूसरे लड़कियों ने देश की झोली में खूब पदक डाले। इस जीत का श्रेय बच्चों को मेहनत, कोचों की ट्रेनिंग और सबसे अधिक उनके मां-बाप को जाता है, जो अपनी बेटियों की इस मुकाम तक पहुंचने में मदद करते हैं, उनकी ओर आने वाली हर मुश्किल को दूर करने में पूरा जोर लगा देते हैं, उनको आने वाली हर कठिनाई का सामना करने में मदद करते हैं, चाहे उनको इसके लिए अपनी जमा पूंजी ही दांव पर क्यों न लगानी पड़ जाए। लेकिन मां-बाप की इन कुर्बानियों को बेटियां अपनी मेहनत से कभी व्यर्थ नहीं जाने देतीं। इस पूरी बात से यह यकीन होता है कि काफी हद कर लोगों और समाज की सोच में बदलाव आया है। आज लड़कियां हर क्षेत्र में अपनी लगन और मेहनत से आगे बढ़ रही हैं।
पहले समाज के बहुत से लोगों की धारणा थी कि खेल लड़कियों का काम नहीं, लड़के ही खेलों में ठीक लगते हैं। कहां हमारी लड़की सफर करके जाएगी, कैसे लोग होंगे, कई स्थानों से खिलाड़ी आएंगे आदि इस तरह के ख्याल आने  और इनके बारे सोचना मां-बाप के लिए जायज़ था। पहले आपस में बातचीत के, स़फर करने के, साधन कम होते थे परन्तु अब समय अपनी तेज़ रफ्तार के साथ बदल रहा है। बच्चा हर स्थान पर अपने परिवार के सम्पर्क में रह सकता है। अब मौके बहुत मिलते हैं। जागरूकता बहुत फैल गई है। यदि कुछ गलत होता लगे तो आवाज़ उठाई जा सकती है।
जिस तरह पढ़ाई से लेकर ज़िंदगी के हर क्षेत्र में लड़की काम को पूरी तरह समर्पित और लगन के साथ करती है, उसी प्रकार खेलों में भी सब लड़कियों को मौका और प्रोत्साहन देने की ज़रूरत है।
लड़कियों के लिए खेलें बहुत ज़रूरी हैं। खेलें शारीरिक दिमागी तौर पर शख्सियत और मन को संवारती हैं। सबसे उत्तम और ज़रूरी खेलों में भाग लेते जब लड़कियां घर से बाहर निकलती हैं, तो दुनिया में विचरण का, उनका डर खत्म हो जाता है, खुद में आत्म-विश्वास पैदा होता है। मिलजुल कर टीम के साथ रहना, विचरण करना आता है, खेल भावना यानि मन में पैदा होती है, जोकि आप के भीतर हर क्षेत्र में विचरण इकट्ठे काम करने का जज़्बा पैदा करती है।
जब हम अपनी लड़कियों को पढ़ाई के साथ-साथ खेलों की तरफ लगाएंगे और उनका ध्यान सोशल मीडिया, मोबाइल गेम्ज़, घूमने-फिरने के स्थान पर, अपनी खेलों को सीखना, अच्छा करके दिखाना एक लक्ष्य बन जाएगा। कई स्थानों पर जहां लड़कियों के खाने-पीने का बहुत ध्यान नहीं रखा जाता, खेलों में विचरण करना उनको सही भोजन, संतुलित भोजन की समझ आती है और शारीरिक फिटनैस की ज़रूरत महसूस होती है, यह हमारी शख्सियत, शरीर का एक हिस्सा बन जाती है जो कि आगे जाकर ज़िंदगी में आपको बीमारियों से लड़ने की शक्ति देती है।
जब एक लड़की अपने देश के लिए पदक जीत कर लाती है, वह अपनी इस जीत से हज़ारों लड़कियों के दिल में एक प्रेरणा पैदा कर देती है। उससे इलाके का नाम तो रोशन होता ही है लेकिन साथ में अन्यों के भीतर भी खेलों के प्रति एक चिंगारी लग जाती है।
हमें चाहिए कि अपनी बेटियों को शुरू से ही व्यायाम और फिटनैस की तरफ डालें, उनको पढ़ाई के साथ-साथ खेलों में उत्साहित करें, जिस खेल में भी उनकी दिलचस्पी है, उस खेल में पहले से उत्साहित करें। नई पीढ़ी का ध्यान किसी अन्य तरफ भटकने देने से पहले खेलों के साथ जोड़ा जाए, उनको कभी हिम्मत न हारने दें, हमेशा हौसला दें, फिर इस देश की बेटियां वह कर दिखाएंगी जिससे मां-बाप, परिवार ही नहीं, बल्कि पूरे समाज व पूरे देश का सिर गर्व से ऊंचा होगा और ये बेटियां बाकी लड़कियों के लिए रोल मॉडल बनेंगी। बस, एक बात याद रखें कि कभी भी बेटियों के लिए कोई भी सुनहरा मौका न गंवाया जाए और उनको लम्बी उड़ानें भरने में हमेशा पंख बनकर उनके पीछे खड़े रहें।

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