पंजाब के हितों की रक्षा के लिए समूह दल एकजुट हों

एक ही हादसा तो है, और वो ये है कि आज तक,
बात नहीं कही गई, बात नहीं सुनी गई। 
(जॉन एलिया)
हमारी पंजाबियों की त्रासदी है कि हम बाबा नानक की शिक्षा ‘किछु सुणीयै, किछु कहीयै’ के अमल से बहुत दूर चले गये हैं। गत कई दशकों से नहीं, अपितु सदियों से ही हम जो बात की जानी चाहिए, नहीं कह रहे और जो बात सुनी जानी चाहिए, नहीं सुन रहे। अब भी जब सुप्रीम कोर्ट ने हम पर एसवाईएल का निर्माण करवाने की तैयारियों का फरमान  फिर लाद दिया है तो हम आपसी आरोप-प्रत्यारोपों के खेल पर उतर आए हैं। हम में से  किसी को जैसे पंजाब का कोई दर्द नहीं। प्रत्येक राजनीतिक पार्टी अपने-अपने विरोधियों को उसकी कमियां लोगों के आगे रख कर बदनाम करने की राह पर चल रही है, जिसका पंजाब को कोई लाभ नहीं होगा। हां, नुकसान अवश्य मुंडेर पर पड़ा है। हमारी आपसी लड़ाई हमारे विरोधियों को अपने मन्सूबे लागू करने का अवसर अवश्य दे देगी। पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान ने एक ओर तो विधानसभा का सत्र बुला लिया है जिसमें एसवाईएल नहर के मुद्दे पर कोई प्रस्ताव पारित किये जाने के आसार हैं, परन्तु दूसरी ओर उन्होंने अपनी सभी विरोधी पार्टियों को घेरने के लिए खुली बहस की चुनौती भी दे दी है। ऐसा प्रतीत होता है कि आम आदमी पार्टी ने फैसला कर लिया है कि एसवाईएल के मामले पर कोई साझी राय नहीं बनानी अपितु 2024 के लोकसभा चुनाव के दृष्टिगत विपक्षी पार्टियों को पंजाब के पानी तथा अन्य मामलों में उनकी भूतकाल में की गई गलतियों के लिए ज़िम्मेदार साबित करके चुनाव जीतने हैं। विपक्षी पार्टियां भी सिर्फ जवाबी इल्ज़ामतराशी ही कर रही हैं। 
हम मुख्यमंत्री को एक बात स्पष्ट रूप में कहना चाहते हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं कि उनकी विरोधी पारम्परिक पार्टियों ने सत्ता में रहते हुए पंजाब के भिन्न-भिन्न मामलों में गलतियां की हैं और कुछ गुनाह भी किये होंगे। यदि उन्होंने गलतियां न की होतीं तो पंजाब के पानी का मामला पैदा ही न होता, अपितु यदि उन्होंने अपना कर्त्तव्य ईमानदारी से निभाया होता तो पानी ही नहीं, पंजाब के कई अन्य मामले भी खड़े नहीं होते। 
परन्तु आपको यह भी पता होगा और सच्चाई भी यही है कि यदि कांग्रेस, अकाली दल तथा भाजपा ने ये गलतियां न की होतीं, पंजाब के हितों पर उन्होंने पहरा दिया होता और निजी लालच न किया होता तो आज आप सत्ता में न होते। लोग सब जानते हैं। उन्होंने इनकी कारगुज़ारियों को ठीक नहीं समझा, तभी तो इन सभी पार्टियों को नकार कर आपकी नई गैर-आज़मायी पार्टी को आगे लाए, जो मुख्य विपक्ष की भूमिका भी ठीक तरह से नहीं निभा सकी थी। यहां तक कि पंजाब के लोगों ने ‘आप’ को 42 प्रतिशत वोट देकर उसके 92 विधायक जिता दिये जबकि जबकि पंजाब की प्रमुख मानी जाती दोनों पार्टियां कांग्रेस तथा अकाली दल को मिला कर भी 42 प्रतिशत वोट नहीं मिले। हमारा कहने का अर्थ यह है कि इस बहस में आप ने जो कहना है, लोग सब जानते हैं। इसीलिए पंजाबियों ने इन पार्टियों के सज़ा दी है। 
इसलिए मुख्यमंत्री भगवंत मान को भी याद रखना चाहिए कि हो सकता है कि वह कांग्रेस, अकाली दल तथा भाजपा की पूर्व में की गई गलतियों को उभार कर 2024 के लोकसभा चुनाव में कोई लाभ प्राप्त कर लें, परन्तु इस समय जब पंजाबियों की एकता की सबसे अधिक ज़रूरत है। उस समय आपसी लड़ाई डाल कर वह पंजाब का भला नहीं कर रहे। इस समय आवश्यकता है कि वह मुख्यमंत्री के रूप में पंजाबी परिवार के मुखिया के तौर पर सभी पक्षों को साथ लेकर एक साझी रणनीति बनाएं ताकि पंजाब के पानी जो संवैधानिक तौर पर 100 प्रतिशत पंजाब का है, की मालकी वापस लेने के लिए कोई रास्ता मिल सके। यह ज़रूरी नहीं कि हमें अधिकार सिर्फ मांगने से या बयानबाज़ी से ही मिल जाये। हो सकता है कि अन्याय को रोकने के लिए हमें जन-शक्ति के प्रदर्शन की भी ज़रूरत पड़े, जो आपसी एकता के बिना सम्भव नहीं। विवाह के दिन बी का लेखा पाना अच्छी बात नहीं। याद रखें, समय तथा लोग किसी को माफ नहीं करते। यदि लोगों ने अकालियों, कांग्रेसियों, कम्युनिस्टों, भाजपाइयों को माफ नहीं किया तो सचेत रहें कि यदि पंजाब के हितों पर पहरा देने में आपसे कोई गलती हो गई तो लोग आपकी गलती भी नहीं भुलेंगे। हालात यह हैं कि :
कभी ़खुद पे, कभी हालात पे रोना आया,
बात निकली तो हर एक बात पे रोना आया। 
(साहिर लुधियानवी)
क्या करना चाहिए?
हम समझते हैं कि एक-दूसरे के कपड़े उतारने का अवसर कभी फिर ढूंढ लिया जाए। इस समय तो पंजाबी एकता का सबूत देते हुए पंजाब विधानसभा में बार-बार की गई हिदायत कि सरकार पंजाब के पानी की रायल्टी लेने के लिए कुछ करे, पर क्रियान्वयन करने के लिए अगली रणनीति बनाई जाए। इस हेतु विधानसभा में पानी के समझौते रद्द करने के कानून की धारा 5 को समाप्त करना चाहिए, जिसमें कहा गया है कि जितना पानी बाहरी राज्यों को जा रहा है, जाता रहेगा। इस धारा के स्थान पर यह पारित किया जाना चाहिए कि पंजाब के इस्तेमाल के बाद शेष पानी पंजाब के बाहरी राज्यों चाहे राजस्थान हो, दिल्ली हो, हरियाणा हो या कोई अन्य हो, को एक जायज़ कीमत लेकर दिया जाया करेगा। दूसरा कि यह पानी भारत की स्वतंत्रता से पहले भी 1935 के भारत सरकार के एक्ट की 7वीं अनुसूचि की धारा 19 के अनुसार तथा स्वतंत्र भारत के संविधान की 7वीं अनुसूचि की धारा 17 के अनुसार रिपेरियन राज्यों का मामला है। अत: इसमें केन्द्र सरकार या सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप नहीं कर सकती। इसके साथ ही पंजाब पुनर्गठन एक्ट की 78, 79, 80 धाराएं जो केन्द्र को धक्के से हस्तक्षेप करने के समर्थ बना रही हैं और संविधान की भावना के भी विपरीत हैं , को रद्द करवाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में दशकों से दाखिल की गई याचिका पुन: खुलवाने या दोबारा नई याचिका दायर करने के लिए संविधान के विशेषज्ञ वकीलों से विचार-विमर्श करके कार्रवाई करने का प्रस्ताव पारित किया जाना चाहिए। 
इस विधानसभा सत्र में भारत सरकार को कनाडाई नागरियों के वीज़ा देने तथा लगाई गई पाबंदी में भारतीय मूल को लोगों को छूट देने के लिए अपील का प्रस्ताव भी पारित किया जाना चाहिए, क्योंकि कनाडा में रहते भारतीय लोगों में बड़ा हिस्सा पंजाबियों का है। इसलिए पंजाबी कहीं भी मुश्किल में हों, उनकी बांह पकड़ना पंजाब सरकार का कर्त्तव्य है, नहीं तो कनाडाई भारतीयों विशेषकर पंजाबियों को शायर राजिन्दर कृष्ण का शेअर दोहराने के लिए मजबूर होना पड़ेगा : 
इस भरी दुनिया में कोई भी हमारा न हुआ,
़गैर तो ़गैर हैं अपनों का सहारा न हुआ।  
हाईकोर्ट की टिप्पणियां और पंजाब सरकार 
आज एक केस में पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट में पंजाब पुलिस तथा पंजाब के डीजीपी के खिलाफ अदालत ने जो सख्त टिप्पणियां की हैं, उनके बारे पंजाब सरकार को कड़ा नोटिस अवश्य लेना चाहिए। सुयोग्य अदालत ने एक केस में डीजीपी को पूरी तरह निष्प्रभावी करार देते हुए कहा है कि वह पहले माफी मांगें, फिर कार्रवाई करें। यह भी कहा कि हम लगातार देख रहे हैं कि कार्रवाई नहीं हो रही। अदालत ने तो यहां तक कह दिया कि लगता है कि पुलिस ड्रग माफिया से मिली हुई है। अब गेंद पंजाब सरकार के पाले में है। यह देखने वाली बात है कि पंजाब सरकार इन टिप्पणियों को किस तरह लेती है। उल्लेखनीय है कि आम आदमी पार्टी ने चार मास में पंजाब में नशा खत्म करने की गारंटी दी थी, परन्तु अब डेढ़ वर्ष के बाद भी यदि राज्य की सबसे बड़ी अदालत के जज साहिब ऐसी टिप्पणियां करने पर मजबूर हुए हैं तो पंजाब सरकार को अवश्य ही आत्म-मंथन करने की ज़रूरत है। चाहिये तो यह है कि इन टिप्पणियों को गम्भीरता से लेते हुए एसएसपी से लेकर डीजीपी तक पंजाब के पुलिस प्रशासन का पूरी तरह ओवरहाल किया जाए और ऐसे अधिकारी फील्ड में लगाए जाएं जो कभी पहले फील्ड में नहीं रहे और नये एसएसपी भी निचले स्तर पर ईमानदार व मेहनती अधिकारियों को बागडोर सौंपें। 
अरे कैसे मैं सो जाऊं भला चोरों की नगरी में,
कि दरबान ऊंघते हैं और चौकीदार सोते हैं।   
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