अरब-इज़रायल हिंसा और यरुशलम

7अक्तूबर को गाज़ा पट्टी पर काबिज़ आतंकी संगठन हमास ने सुबह 6:30 बजे अचानक इज़रायल के अलग-अलग शहरों पर करीब 5000 रॉकेट दाग कर उसको हैरान कर दिया। इज़रायल का एंटी मिज़ाइल सिस्टम (आयरन डोम) कई दशकों से किसी भी दुश्मन देश के रॉकेट, मिज़ाइल और ड्रोन आदि से उसकी सफलतापूर्वक रक्षा कर रहा था। परन्तु कई वर्षों से आयरन डोम की कार्यप्रणाली पर बारिकी से नज़र रख रहे हमास को पता था कि यह हज़ारों की संख्या में झुंड की तरह आ रहे रॉकेटों की आंधी को नहीं रोक सकेगा। वही बात हुई और इज़रायल के औफाकिम, रीम, सदैरट, आशकेलोन और एराज़ आदि दर्जनों शहरों में तबाही हुई। इसके साथ ही हमास के सैकड़ों लड़ाके धरती, समुद्र और पैराग्लाइडर के माध्यम से इज़रायल पर टूट पड़े। उन्होंने सैकड़ों की संख्या में पुरुषों, महिलाओं और बच्चों का बेरहमी से कत्ल कर दिया। यह इज़रायल पर 1973 के मिस्र और सीरिया द्वारा किए गये हमले के बाद सबसे भयानक हमला है। दोनों गुट एक-दूसरे पर बेरहमी से हमला कर रहे हैं और अब तक हज़ारों गुनाहगार और बेगुनाह मारे जा चुके हैं। इज़रायल ने गाज़ा पट्टी की बिजली पानी बंद करके चारों ओर नाकाबंदी कर दी है और खाना और दवाईयां आदि किसी भी ज़रूरी वस्तु की आपूर्ति पर सख्ती के साथ पाबंदी लगा दी है। वर्णनीय है कि कई वर्षों से इज़रायल जैसी सुपर पावर के नाक में दम करके रख देने वाला गाज़ा पट्टी सिर्फ 45 कि.मी. लम्बा और 6 से 10 कि.मी. चौड़ा धरती का एक छोटा सा टुकड़ा है। 
इस झगड़े का सबसे बड़ा कारण इज़रायल द्वारा यरूशलम शहर पर कब्ज़ा है। इस शहर में मुसलमान, यहूदी और इसाइयों के सबसे अधिक पवित्र धार्मिक स्थान हैं। मुसलमान कभी भी बर्दाश्त नहीं कर सकते कि इज़रायल उनकी पवित्र अल अकसा मस्ज़िद पर कंट्रोल रखे। हमास ने अपने इस हमले का नाम भी अल अकसा स्ट्रोम (तूफान) रखा है। यरूशलम इज़रायल की राजधानी है और विश्व का अकेला शहर है जो यहूदियों, ईसाईयों और मुसलमानों द्वारा समान रूप में पवित्र माना जाता है। यहूदियों का सबसे पवित्र स्थान वेलिंग वाल (पश्चिमी दीवार), ईसाईयों की डोम ऑफ रौक चर्च और मुसलमानों की अल अकसा मस्ज़िद यहां बिल्कुल साथ-साथ हैं। यरूशलम की स्थापना आज से करीब 3000 वर्ष पहले यहूदी कबीलों ने की थी और यह विश्व का सबसे प्राचीन शहर है। इस समय यह शहर काफी फैल चुका है और इसकी जनसंख्या करीब दस लाख है। पहले इज़रायल की राजधानी तेलअवीव होती थी लेकिन सन् 1980 में अरब देशों के भारी विरोध के बावजूद उसने यरूशलम को अपनी राजधानी घोषित कर दिया। यरूशलम में 70 प्रतिशत यहूदी, 39 प्रतिशत अरबी और एक प्रतिशत अन्य जाति के लोग रहते हैं।
वेलिंग वॉल (वैस्टर्न वॉल)- वेलिंग वॉल या वैन पाने वाली दीवार यहूदी राजा हैरोड महान द्वारा सन् 19 बी.सी. में बनाए गये यहूदी मन्दिर (टैम्पल माऊंट)  का बचा हुआ हिस्सा है। यह चूना पत्थरों की बनी हुई है और इसकी लम्बाई 488 मीटर और ऊंचाई 19 मीटर है। सन् 70 ई. में रोमनों ने टैंपल माऊंट को बिल्कुल तबाह कर दिया था और सिर्फ यह दीवार ही बची थी। इसके साथ ही यहूदियों का शासन भी समाप्त हो गया था जिस कारण टैम्पल माऊंट दोबारा न बन सका। यहूदियों को देश निकाला दे दिया गया और वह पूरे विश्व में बिखर गए। परन्तु जब भी मौका मिलता, वह वेलिंग वॉल की यात्रा करते और दीवार के सामने खड़े होकर मन्दिर को याद करके जोर-जोर से रोते थे। यह व्यवहार अब भी चल रहा है। इसी कारण इस दीवार का नाम वेलिंग वॉल या वैन पाने वाली दीवार पड़ गया। 1948 में इज़रायल की स्थापना होने के बाद कट्टर यहूदियों ने मन्दिर दोबारा बनाने की कोशिश की लेकिन अल अकसा मस्ज़िद के बिल्कुल साथ होने के कारण मुसलमानों ने इसका सख्त विरोध किया था और कई बार भयानक दंगे भी हुए थे। अब भी दोनों गुटों को अलग-अलग रखने के लिए अलग-अलग प्रवेश द्वार है और पुलिस का भारी बंदोबस्त रहता है।
चर्च ऑफ होली सेपुलचर - चर्च ऑफ होली सेपुलचर पुराने यरूशलम में उस स्थान पर स्थित है जहां ईसा मसीह को सूली पर चढ़ाया गया था। इसका निर्माण बाइजनटाइन साम्राज्य के बादशाह कांसटनटाइन महान् ने सन् 326 ई. को शुरू करवाई थी जो सन् 335 में मुकम्मल हुई। यह ईसाईयों का एक सबसे अधिक पूजनीय स्थान है और हर वर्ष विश्व से लाखों ईसाई इसकी यात्रा करने के लिए यहां आते हैं। कहते हैं कि सम्राट कांसटनटाइन को इस संबंधी सपना आया था और उसने अपनी मां हैलेना को यह स्थान ढूंढने के लिए भेजा था। हैलेना ने यरूशलम के बिशप मासरियस की मदद से इस स्थान की निशानदेही की तो उसको इस स्थान से तीन असली क्रॉस मिले। रोमनों ने यहां ब्रहस्पत (जूपिटर) और शुक्र (वीनस) का मन्दिर बनाया हुआ था। जब उस मन्दिर को गिराकर मलबा साफ किया गया तो उसकी नींव में से वह गुफा भी मिल गई जहां क्रॉस पर चढ़ाने के बाद ईसा मसीह को दफनाया गया था। उस स्थान पर ही इस चर्च की स्थापना की गई है।
इस चर्च को कई बार तबाही का सामना करना पड़ा। सन् 614 ई. में ईरान के बादशाह खुसरो ने यरूशलम पर कब्ज़ा कर लिया और चर्च को जला दिया। लेकिन जल्द ही बाइजनटाइन सम्राट हरकेलियस ने यरूशलम ईरानियों से छीन लिया और चर्च का दोबारा निर्माण किया गया। इसके बाद अरबों ने यरूशलम पर कब्ज़ा कर लिया पर उन्होंने चर्च के साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की। खलीफा अल हाकिम बिन अमरल्लाह ने सन् 1009 ई. में इस चर्च को बिल्कुल ही नष्ट कर दिया। सन् 1027 में नए खलीफा अली अज़हीर और बाइजनटाइन सम्राट कांस्टनटाइन नौवें के बीच हुए एक समझौते के तहत इसके कुछ हिस्से का निर्माण भी किया गया। सन् 1095 ई. को पोप ने यरूशलम पर कब्ज़ा करने के लिए धर्मयुद्ध (क्रूसेड) का ऐलान कर दिया जिसमें हिस्सा लेने के लिए यूरोप के सभी देशों ने अपने सैनिक भेजे। सन् 1096 ई. में ईसाईयों का यरूशलम पर कब्ज़ा हो गया। नए राजा गौडफरे ने यूरोपियन राजाओं की सहायता से चर्च का निर्माण मुकम्मल करवाया। 1810 में चर्च की दोबारा बड़े स्तर पर मुरम्मत की गई और यह मौजूदा रूप में विश्व के सामने आई।
अल अकसा मस्ज़िद : अल अकसा मस्ज़िद इस्लाम में मक्का और मदीना के बाद सबसे अधिक पवित्र धार्मिक स्थान माना जाता है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार इस स्थान से हज़रत मुहम्मद जन्नत को गए थे। सबसे पहले बगदाद के खलीफा उमर ने इस स्थान पर एक सी छोटी मस्ज़िद का निर्माण करवाया था। लेकिन बड़े स्तर पर अल अकसा का निर्माण खलीफा अबू अल मलिक ने 680 ई. में शुरू करवाया जो उसके बेटे खलीफा अल वालिद के शासन के समय 705 ई. में मुकम्मल हुई। यह मस्ज़िद 746 ई. में आए एक भूकम्प के कारण पूरी तरह तबाह हो गई और इसका दोबारा निर्माण खलीफा अल मनसूर ने 754 ई. में करवाया पर सन् 1033 में आए एक और भयानक भूकम्प के कारण यह दोबारा तबाह हो गई और इसका दोबारा निर्माण खलीफा अली ज़हीर ने करवाया। इसके बाद तुर्की, मिस्र, सऊदी अरब और जार्डन के बादशाहों सहित अनेक श्रद्धालुओं ने इस की इमारत और खूबसूरती को बढ़ाने में अपना योगदान डाला।
इसका भवन निर्माण कला इस्लामिक है और इसमें एक ही समय 5000 व्यक्ति नमाज़ पढ़ सकते हैं। इसके दो बड़े और कई छोटे गुंबद और चार मीनार हैं। मीनारों की ऊंचाई 37 मीटर है। इसके अंदर और बाहर इस्लाम जगत के बेहतरीन उस्ताद कारीगरों द्वारा कुरान की आइतें और फूल पौधों की अति सूक्षम और खूबसूरत मीनाकारी और सजावट की गई है। इसका प्रबंध एक जार्डनी-फिलिस्तीनी वक़्फ संभालता है।

-पंडोरी सिधवां।
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