हमास-इज़रायल युद्ध में बर्बादी के इमकान बढ़े

युद्ध भले दो देशों के बीच होता हो, लेकिन उसका असर पूरी दुनिया पर होता है और यहां तो दो देश भी नहीं है। हमास फिलिस्तीन नहीं है, फिलिस्तीन के लिए सहानुभूति रखने वाला एक ऐसा इस्लामिक संगठन है, जिसके पक्ष में कब कई अरब देश जंग में न कूद जाएं, भला कौन जानता है? अभी भी जिस तरह से ईरान ने हमास की पीठ थपथपायी है, सऊदी अरब ने सारे किंतु परंतु एक तरफ रखकर इज़रायल से संयम बरतने के लिए और हमास को सीधे तौर पर कुछ भी नहीं कहा है। इससे साफ है कि चाहे कतर हो या मिस्र इन सब देशों की अगर सीधे-सीधे हमास के प्रति सहानुभूति न भी हो, तो भी समूचे अरब जगत के लिए फिलिस्तीन का मुद्दा, बिरादराना मुद्दा तो है ही और इज़रायल की मनमानी कहीं न कहीं इस्लामिक गरिमा को भी तो ठेस पहुंचा रही है। इसलिए अगर कोई यह मानता हो कि इज़रायल गाजा में घुसकर मनमानी करेगा और किसी भी मुस्लिम देश की तरफ से कोई सक्रिय प्रतिक्रिया नहीं होगी, तो ऐसा सोचना दिवास्वप्न होगा।
भले आंकड़ों, इतिहास और अर्थव्यवस्था की नज़र से इज़रायल हमास, फिलिस्तीन या कुछ अरब देशों पर भारी पड़ रहा हो, लेकिन जब एक बार पूरा युद्ध शुरु हो जाता है, तब दुनिया की बड़ी से बड़ी अर्थव्यवस्थाएं हांफने लगती हैं। अमरीका दुनिया के सामने एक बड़ा उदाहरण है कि किस तरह से उसे वियतनाम, ईराक और अफगानिस्तान के खिलाफ जंग में हांफ जाना पड़ा था। जबकि अमरीका की अर्थव्यवस्था इज़रायल के मुकाबले न सिर्फ दसियों गुणा बड़ी बल्कि कहीं ज्यादा बुनियादी और ठोस अर्थव्यवस्था है। जबकि इज़रायल की अर्थव्यवस्था मूलत: तकनीकी पर आधारित है। बुनियादी संसाधनों का इज़रायल के पास अभाव है। इसलिए अगर उसके सबसे बड़े बैंक हापोलिन ने आशंकित युद्ध का आंकलन महज 27 अरब शेकेल किया है, तो यह बड़ा भ्रामक आंकलन है, क्योंकि हापोलिन के आंकलन में यह पहले से मान लिया गया है कि युद्ध एक तरफा होगा। इज़रायल हमास को सबक सिखाने के नाम पर उसे नेस्तनाबूद कर देगा और पूरी दुनिया डरकर चुप रहेगी। युद्ध के आंकलन इतने सतही और एक तरफा नहीं होते। दो सामान्य लोग भी जब एक-दूसरे के खिलाफ मरने मारने पर उतारु हो जाते हैं तो फर्क नहीं पड़ता कि एक व्यक्ति दूसरे से कितना ताकतवर है। गैर ताकतवर व्यक्ति भी अपनी तरफ से ताकतवर व्यक्ति को चोट पहुंचाने, उसे नुकसान पहुंचाने में पीछे नहीं रहता।
हमास-इजरायल युद्ध की अंतिम परिणति अब तक के इतिहास से ही नहीं, अब तक के अनुमानों से भी कहीं ज्यादा भयावह हो सकती है। इतिहास में इज़रायल बनाम अरब या इज़रायल बनाम फिलिस्तीन या इजरायल बनाम मिस्र और सीरिया के युद्ध इसलिए मौजूदा और आशंकित युद्ध के मुकाबले कहीं नहीं ठहरते; क्योंकि जब ये लड़े गये थे तब दुनिया इस कदर ग्लोबल नहीं थी। जैसे आज हर देश प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दूसरे देश या देशों पर निर्भर है। आज वैश्विक अर्थव्यवस्था में 70 प्रतिशत से ज्यादा हिस्सा विभिन्न अर्थव्यवस्थाओं में अंतर्गुम्फित है। कहने का मतलब यह कि वैश्विक अर्थव्यवस्था की कहीं भी कोई कड़ी टूटती है तो पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था में उसका असर होता है। अगर ऐसा न होता तो रूस और यूक्रेन के युद्ध से विश्व अर्थव्यवस्था लगभग एक से डेढ़ प्रतिशत पीछे न चली गई होती और अगले दो सालों के आंकलन में भी रूस यूक्रेन युद्ध की बुरी छाया साफ तौर पर न दिख रही होती। वास्तव में आज की स्थिति में ग्लोबल अर्थव्यवस्था के लिए हमास बनाम इज़रायल का युद्ध जले या कटे में नमक छिड़कने की तरह होगा।
विश्व अर्थव्यवस्था की अनिश्चितता इस युद्ध के कारण और ज्यादा बढ़ जायेगी। क्योंकि बुनियादी अर्थव्यवस्था पहले से ही लंगड़ी है और चोट का सामान्य ज्ञान कहता है कि अगर पहले से चोट खायी किसी जगह पर और चोट पहुंचायी जाए तो उसकी हालत बहुत ही बुरी हो जाती है। आई.एम.एफ. ने पहले से ही साल 2024 की वैश्विक आर्थिक वृद्धि को पिछले साल के तीन प्रतिशत के मुकाबले में 2.9 प्रतिशत कर दिया था। जो कि हमास-इजरायल, खूनखराबे के पहले का आंकलन है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष ने कहा है कि बढ़ती ब्याज दरों, यूक्रेन-रूस युद्ध के चलते बढ़े भू-राजनीतिक तनावों के चलते विश्व अर्थव्यवस्था ने अपनी गति खो दी है और अब यह इजरायल-हमास तनाव दुनिया को और गहरे गड्ढे में गिरा देगा।
इसका कुछ कुछ अंदाजा इसी बात से लगता है कि इन पंक्तियों के लिखे जाने के समय तक हमास, इज़रायल तनाव का एक सप्ताह गुजरा है और इस एक सप्ताह में ही तेल की कीमतों में लगभग 4 प्रतिशत की वृद्धि हो चुकी है। आई.एम.एफ. के मुख्य अर्थशास्त्री पियरे- ओलिवियर गौरींचस ने मोरक्को के मराकास में संगठन की वार्षिक बैठक के दौरान पत्रकारों से कहा है कि साल 2023 की आर्थिक वृद्धि दर 2022 से कम है और अगर हमास-इजरायल युद्ध भड़कता है, तो यह और पिछड़ सकती है। आई.एम.एफ. का अनुमान है कि अगर यह युद्ध नहीं रूकता है तो तेल की कीमतों में 10 प्रतिशत से ज्यादा की वृद्धि हो जायेगी और यह वृद्धि सकारात्मक नहीं नकारात्मक होगी, यानी यह तेल की बढ़ती खपत के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि नहीं होगी बल्कि युद्ध के कारण कम उत्पादन और औद्योगिक गतिविधियों के धीमे या ठंडे पड़ने के कारण तेल की कम खपत के परिणामस्वरूप होगी यानी महंगाई भी बढ़ेगी और आमदनी भी घटेगी।
अर्थशास्त्रियों का अनुमान है कि अगर अगले एक पखवाड़े के भीतर फिलिस्तीन इज़रायल की सरजमीं पर शांति नहीं लौटी तो दुनियावी अर्थव्यवस्था को करीब साढ़े तीन लाख करोड़ डॉलर के बराबर का नुक्सान इसकी पहली तिमाही के पूरे होने तक होगा। इसलिए दुनिया के अर्थशास्त्रियों ने अपील की है कि जितना जल्दी हो सके, हमास-इज़रायल तनाव कम होना चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता तो मुद्रास्फीति की दर में जो फिलहाल कमी आयी है, उसे बरकरार रखने के लिए दुनिया के सभी देशों की बड़ी या संघीय बैंकों को बड़े पैमाने पर ब्याज दरें बढानी होगी जिसका असर भारत में 11 करोड़ से ज्याद ईएमआई भरने वालों को यह होगा कि उनकी पहले से ही लचकी कमर टूट ही जायेगी। अगर हम भारत के संबंध में इसे देखें तो हमास इजरायल युद्ध से सबसे ज्यादा प्रभावित होने वाला भारत ही होगा। क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में सिर्फ इजरायल ही नहीं समूचे मध्य पूर्व का बहुत महत्व है। क्योंकि भारतीय अर्थव्यवस्था में एनर्जी का स्रोत मध्यपूर्व ही है। हमास-इजरायल जंग से हमारे तेल की आपूर्ति बाधित तो होगी ही, कीमतें भी आसमान छुएंगी। भारत में तेल की कीमतों के बढ़ जाने का मतलब है हमारे हर प्रोडक्ट का महंगा हो जाना जो अंतत निर्यात को कमजोर करता है। इसलिए भारत को बढ़चढ़कर शांति बहाली के प्रयास में निवेश करना चाहिए। 

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